ताशकंद समझौता क्या है, जिससे पीछे हट सकता है पाकिस्तान? जानें भारत पर क्या होगा असर
ताशकंद समझौता भारत और पाकिस्तान के बीच 1965 के युद्ध के बाद किया गया एक शांति समझौता है, जिसका उद्देश्य दोनों देशों के बीच दुश्मनी खत्म करना और भविष्य में आपसी विवादों को बातचीत से सुलझाना था. यह समझौता ताशकंद (अब उज्बेकिस्तान की राजधानी) में 10 जनवरी 1966 को हुआ. आइए, इस समझौते के बारे में विस्तार से जानते हैं...;
Tashkent Agreement 1966 : जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल को हुए आतंकी हमले में 26 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी. इस हमले के बाद भारत ने सिंधु जल समझौते को निलंबित कर दिया, जिससे पाकिस्तान बौखलाया हुआ है. उसने भी शिमला समझौते को निलंबित कर दिया. अब वह ताशकंद समझौते से भी बाहर निकलने की धमकी दे रहा है.
ऐसे में सवाल उठता है कि ताशंकद समझौता क्या है, यह कब हुआ और अगर पाकिस्तान इसे निलंबित करता है तो इसका भारत पर क्या असर होगा? आइए, इन सभी सवालों के जवाब जानते हैं...
ताशकंद समझौता (Tashkent Agreement) क्या है?
- ताशकंद समझौता भारत और पाकिस्तान के बीच 1965 के युद्ध के बाद शांति बहाल करने के लिए किया गया एक ऐतिहासिक समझौता है.
- यह समझौता 10 जनवरी 1966 को तत्कालीन सोवियत संघ (अब उज्बेकिस्तान) की राजधानी ताशकंद में हुआ था.
- ताशकंद समझौता भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री और पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति जनरल अयूब खान के बीच सोवियत संघ के प्रधानमंत्री एलेक्सी कोसिगिन की मध्यस्थता में हुआ था.
- इसका उद्देश्य दोनों देशों के बीच दुश्मनी खत्म करना और भविष्य में आपसी विवादों को बातचीत से सुलझाना था.
ताशकंद समझौता के प्रमुख बिंदु:
- भारत और पाकिस्तान दोनों देशों ने युद्ध के पहले की स्थिति (स्थिति 5 अगस्त 1965) पर लौटने पर सहमति जताई.
- दोनों देशों ने एक-दूसरे की क्षेत्रीय संप्रभुता का सम्मान करने और द्विपक्षीय संबंध सुधारने पर जोर दिया.
- दोनों पक्षों ने युद्धबंदियों की वापसी और राजनयिक संबंध बहाल करने का निर्णय लिया.
- भारत और पाकिस्तान ने भविष्य में किसी भी प्रकार के विवाद को बातचीत और शांतिपूर्ण तरीकों से सुलझाने की प्रतिबद्धता जताई.
ताशकंद समझौते का असर
ताशकंद समझौता 1965 के भारत-पाक युद्ध को औपचारिक रूप से समाप्त करने का माध्यम बना. हालांकि, समझौते पर हस्ताक्षर के कुछ ही घंटों बाद, 11 जनवरी 1966 को प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का ताशकंद में ही रहस्यमय परिस्थितियों में निधन हो गया.
ताशकंद समझौते का महत्व
यह शीतयुद्ध काल में सोवियत संघ की प्रभावी कूटनीति का उदाहरण था. भारत और पाकिस्तान के बीच भविष्य के संबंधों के लिए एक दिशा तय करने वाला समझौता था. इस समझौते ने यह दर्शाया कि अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता कैसे युद्ध जैसे संकटों को समाप्त कर सकती है।
पाकिस्तान के ताशकंद समझौते से पीछे हटने से भारत पर क्या असर होगा?
- सीमा पर तनाव बढ़ सकता है: अगर पाकिस्तान समझौते को नहीं मानता, तो LOC (लाइन ऑफ कंट्रोल) या अंतरराष्ट्रीय सीमा पर संघर्ष और घुसपैठ की घटनाएँ बढ़ सकती हैं.
- सैन्य दबाव बढ़ेगा: भारत को अपनी सीमा पर सेना की तैनाती बढ़ानी पड़ सकती है, जिससे रक्षा बजट और रणनीतिक संसाधनों पर दबाव पड़ेगा.
- अंतरराष्ट्रीय मंच पर मामला उठाना पड़ सकता है: भारत को संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं में इस मुद्दे को मजबूती से उठाना पड़ेगा, ताकि पाकिस्तान की जवाबदेही तय हो.
- द्विपक्षीय संबंध और बिगड़ सकते हैं: भारत-पाक के बीच पहले से ही नाजुक संबंध और अधिक खराब हो सकते हैं- व्यापार, कूटनीति और आपसी संवाद ठप पड़ सकता है.
- आंतरिक राजनीति में बहस तेज होगी: भारत में विपक्ष सरकार से सवाल कर सकता है कि पाकिस्तान पर भरोसा क्यों किया गया था। इससे घरेलू राजनीति में मुद्दा गर्म हो सकता है.
- आतंकवाद और सुरक्षा को खतरा: ताशकंद समझौते में शांति बनाए रखने की बात थी. अगर पाकिस्तान इससे पीछे हटता है, तो आतंकवादी गतिविधियों को प्रोत्साहन मिल सकता है, खासकर कश्मीर क्षेत्र में.