‘सबका बीमा, सबकी रक्षा’, क्या है नया इंश्योरेंस संशोधन बिल 2025? पॉलिसीहोल्डर के हितों सहित 15 प्वाइंट में समझें पूरा प्लान
New Insurance Amendment Bill 2025: केंद्र सरकार का नया बीमा संशोधन बिल 2025, भारत के बीमा सेक्टर में बड़ा बदलाव लाने की तैयारी में है. ‘सबका बीमा, सबकी रक्षा’ के लक्ष्य के तहत इस बिल में पॉलिसीहोल्डर हित, फटाफट क्लेम सेटलमेंट, ज्यादा विकल्प और निवेश को बढ़ावा देने जैसे अहम प्रावधान इसमें शामिल हैं. 15 प्वाइंट में समझें सरकार का पूरा प्लान.;
New Insurance Amendment Bill 2025: भारत में बीमा कवरेज को व्यापक बनाने और उपभोक्ताओं के हितों को मजबूत करने के लिए केंद्र सरकार बीमा संशोधन बिल 2025 लेकर आई है. यह बिल दशकों पुराने बीमा कानूनों को आधुनिक जरूरतों के अनुसार ढालने की कोशिश है. ताकि बीमा सस्ता, पारदर्शी और हर नागरिक की पहुंच में हो सके. सरकार इसे ‘सबका बीमा, सबकी रक्षा’ मिशन का आधार मान रही है. इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक केंद्रीय मंत्रिमंडल ने शुक्रवार (12 दिसंबर) को सबका बीमा सबकी रक्षा (बीमा कानूनों में संशोधन) बिल 2025 को मंजूरी दे दी, जिससे संसद में इसे पेश करने का रास्ता साफ हो गया है.
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यह बिल भारत के बीमा ढांचे को बदलने की कोशिश करता है, जिसमें आधुनिकीकरण, व्यापक कवरेज और मजबूत नियामक निगरानी के घोषित लक्ष्य के साथ बीमा अधिनियम 1938, जीवन बीमा निगम अधिनियम 1956, और IRDAI अधिनियम 1999 में बड़े बदलाव प्रस्तावित किए गए हैं.
बीमा कानूनों में संशोधन बिल 2025 क्या है?
बीमा कानूनों में संशोधन बिल 2025 केंद्र सरकार द्वारा लाया गया प्रस्तावित विधेयक है, जिसका उद्देश्य भारत के बीमा सेक्टर को अधिक लचीला, प्रतिस्पर्धी और निवेश-अनुकूल बनाना है. इस बिल के जरिए इंश्योरेंस एक्ट 1938, LIC एक्ट 1956 और IRDAI से जुड़े नियमों में बड़े बदलाव किए जाने का प्रस्ताव है.
Insurance Bill 2025 को 15 प्वाइंट में ऐसे समझें
1. बीमा कंपनियों के लिए नए लाइसेंसिंग नियम का प्रस्ताव.
2. एक ही कंपनी को लाइफ, जनरल और हेल्थ बीमा की इजाजत (Composite License)
3. न्यूनतम पूंजी (Capital Requirement) में राहत.
4. बीमा कंपनियों को एक से ज्यादा पार्टनर रखने की अनुमति.
5. विदेशी निवेश (FDI) नियमों में ढील.
6. छोटे और स्टार्ट-अप बीमा खिलाड़ियों का इस सेक्टर में एंट्री आसान.
7. माइक्रो-इंश्योरेंस और ग्रामीण बीमा को बढ़ावा.
8. बीमा प्रोडक्ट्स को जल्दी मंजूरी का प्रावधान.
9. IRDAI को अधिक नियामकीय शक्ति.
10. कंज्यूमर शिकायत निवारण को मजबूत करना.
11. क्लेम सेटलमेंट में टाइम-बाउंड प्रोसेस.
12. पॉलिसी होल्डर के हित सर्वोपरि करने का प्रावधान.
13. डिजिटल बीमा और ऑनलाइन पॉलिसी को बढ़ावा.
14. पेनल्टी और जुर्माने के नियमों में बदलाव.
15. बीमा सेक्टर में Ease of Doing Business को प्राथमिकता.
बीमा बिल में नया क्या है?
संशोधित बीमा बिल 2025 में Composite License की सुविधा (एक कंपनी, कई तरह के बीमा) और Multiple Partners मॉडल की इजाजत दी गई है. पूंजी और निवेश से जुड़े नियमों में लचीलापन है. स्टार्ट-अप और इनोवेशन को बढ़ावा. बीमा कंपनियों के पार्टनर कौन-कौन हो सकते हैं, की स्पष्ट व्याख्या शामिल है. नए बिल के तहत बीमा कंपनी में पार्टनर बन सकते हैं. इनमें भारतीय और विदेशी दोनों कंपनियां शामिल हैं. ये कंपनियां प्राइवेट इक्विटी फर्म, संस्थागत निवेशक और ज्वाइंट वेंचर पार्टनर के रूप में हो सकता है.
विदेशी निवेश (FDI) कितना?
मौजूदा नियमों के अनुसार बीमा सेक्टर में FDI सीमा 74% तक सीमित है. नए बिल में इसे लेकर अधिक लचीलापन देने का प्रस्ताव है. अंतिम सीमा सरकार की अधिसूचना पर निर्भर होगी. भारत में लगभग 70 बीमा कंपनियां हैं. जबकि दुनिया में लगभग 10,000 हैं. अगर इनमें से एक छोटा सा हिस्सा भी भारत में आने का फैसला करता है, तो आने वाली पूंजी बहुत बड़ी होने की उम्मीद है.
कंज्यूमर के लिए नए बीमा बिल में खास क्या?
केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित व संशोधित बीमा बिल 2025 में क्लेम सेटलमेंट में देरी पर सख्ती, शिकायत निवारण सिस्टम मजबूत, ज्यादा विकल्प, सस्ती पॉलिसी, पारदर्शिता और जवाबदेही, और पॉलिसी होल्डर के हित को प्राथमिकता दी गई है. बीमा क्षेत्र को स्थिर और टिकाऊ निवेश आकर्षित करने, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण को सुविधाजनक बनाने, बीमा पैठ और सामाजिक सुरक्षा बढ़ाने और 2047 तक सभी के लिए बीमा के लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद मिलेगी.
नया बीमा बिल पुराने कानून से अलग कैसे?
नए बीमा बिल 2025 में लचीले नियम हैं. अलग-अलग बीमा लाइसेंस की सुविधा है. कंपनियों को ज्यादा निवेश की छूट सहित ज्यादा कॉम्पिटिशन का प्रावधान है.
बिल की जरूरत क्यों?
भारत में बीमा की पहुंच अभी कम लोगों तक है. इसमें ज्यादा निवेश और इनोवेशन की जरूरत है. ग्लोबल स्टैंडर्ड के मामले में पीछे है. उसके साथ भारतीय बीमा बिल को तालमेल बनाने की कोशिश इस बिल में है. उपभोक्ता संरक्षण नियमों को मजबूत किया गया है. इस बिल को संसद के चल रहे शीतकालीन सत्र में पेश होने की उम्मीद है. इसको लेकर बहस छिड़ने की पूरी संभावना है. क्योंकि यह उद्योग की उम्मीदों, उपभोक्ता संरक्षण और सरकार के व्यापक वित्तीय क्षेत्र सुधार एजेंडे के बीच संतुलन बनाने की कोशिश करता है.
बीमा सेक्टर को ग्लोबलाइज्ड करने की दिशा में बड़ा कदम
इसमें कोई शक नहीं है कि FDI लिमिट को 100% तक बढ़ाना भारत के इंश्योरेंस सेक्टर को ग्लोबलाइज करने की दिशा में एक बड़ा कदम है. सरकार को उम्मीद है कि इस सुधार से ज्यादा विदेशी पूंजी आएगी, प्रोडक्ट इनोवेशन को बढ़ावा मिलेगा. अंडरराइटिंग, रिस्क मैनेजमेंट और कस्टमर एक्सपीरियंस में कॉम्पिटिशन बढ़ेगा. सबसे जरूरी बात यह है कि इससे ग्लोबल बेस्ट प्रैक्टिस तक पहुंच भी मिलेगी. सोफिस्टिकेटेड अंडरराइटिंग मॉडल और डिजिटल क्लेम प्लेटफॉर्म से लेकर एडवांस्ड रिस्क-असेसमेंट टूल तक जिससे इंडस्ट्री की मजबूती और सर्विस क्वालिटी बढ़ेगी. ये सभी बदलाव मिलकर इस बीमा सेक्टर को कस्टमर-सेंट्रिक और टेक्नोलॉजी के लिहाज से मजबूत इंश्योरेंस इकोसिस्टम की नींव रखेंगे.भारत का इंश्योरेंस सेक्टर 2030 तक दोगुने से ज्यादा होने की राह पर है. इस सेक्टर का ग्रॉस रिटर्न प्रीमियम ₹25 लाख करोड़ तक पहुंच सकता है.
विदेशी इंश्योरेंस कंपनियों के लिए रियायत
री-इंश्योरेंस कंपनियों की एंट्री को आसान बनाने और देश में ज्यादा रीइंश्योरेंस क्षमताएं बनाने के लिए, विदेशी रीइंश्योरेंस कंपनियों के लिए नेट ओन्ड फंड्स की जरूरत को ₹5,000 करोड़ से घटाकर ₹1,000 करोड़ करने का प्रस्ताव है. यह ग्लोबल रीइंश्योरेंस कंपनियों की लंबे समय से चली आ रही मांग थी. नियमों में इस ढील का मकसद छोटी और नई उम्र की रीइंश्योरेंस कंपनियों को भारत में आकर्षित करना है, जिससे एक ऐसे सेगमेंट में कॉम्पिटिशन बढ़ेगा जिस पर अभी पब्लिक सेक्टर की GIC Re का दबदबा है.
इसके अलावा, LIC को उन देशों के कानूनों और रेगुलेटरी नियमों के अनुसार अपने विदेशी ऑपरेशन को रीस्ट्रक्चर और अलाइन करने की अनुमति दी जाएगी, जिनमें वह काम करती है. यह फ्लेक्सिबिलिटी LIC को विदेशी कंप्लायंस जरूरतों के हिसाब से ज्यादा तेजी से ढलने, अपनी ग्लोबल मौजूदगी को मजबूत करने और घर पर कई लेवल की मंजूरी की वजह से होने वाली देरी को कम करने में मदद करेगी. कुल मिलाकर, इन बदलावों का मकसद LIC के गवर्नेंस फ्रेमवर्क को मॉडर्न बनाना है, जिससे देश की सबसे बड़ी इंश्योरेंस कंपनी घरेलू और इंटरनेशनल दोनों बाजारों में ज्यादा रिस्पॉन्सिव, प्रतिस्पर्धी और प्रभावी ढंग से काम करने में सक्षम हो सके.
कम्पोजिट लाइसेंस क्या है?
मौजूद बिल में सबसे खास कमियों में से एक कम्पोजिट लाइसेंस के प्रावधानों की गैरमौजूदगी है, जो एक लंबे समय से प्रतीक्षित सुधार था जिसकी कई इंश्योरेंस कंपनियों ने जोरदार वकालत की थी. मौजूदा इंश्योरेंस एक्ट 1938 के तहत इंश्योरेंस कंपनियां सख्त सीमाओं तक सीमित हैं. लाइफ इंश्योरेंस कंपनियां सिर्फ लाइफ पॉलिसी दे सकती हैं. जबकि जनरल इंश्योरेंस कंपनियों को लाइफ सेगमेंट में आने की मनाही है. इस सख्त अलगाव ने दशकों से इंडस्ट्री प्रभावित किया है. नए बिल में कम्पोजिट लाइसेंस इस परिदृश्य को मौलिक रूप से बदल देगा. इस योजना के तहत एक ही इंश्योरेंस कंपनी को लाइफ और नॉन-लाइफ दोनों सेगमेंट में काम करने की अनुमति मिलती. यह सेक्टर के लंबे समय से चले आ रहे बंटवारे को खत्म कर देगा और इंश्योरेंस कंपनियों को इंटीग्रेटेड, बंडल ऑफर डिजाइन करने में सक्षम बनाएगा. कम्पोजिट लाइसेंस को इंडस्ट्री के लिए गेम-चेंजर के रूप में देखा जाता है.
नया बीमा संशोधन बिल 2025 की क्या हैं कमियां?
FDI में ढील से विदेशी बीमा कंपनियों का प्रभाव बढ़ सकता है, जिससे घरेलू कंपनियों की प्रतिस्पर्धात्मक स्थिति कमजोर होने की आशंका है. निजी और विदेशी निवेश बढ़ने से बीमा कंपनियां लाभ को प्राथमिकता दे सकती हैं, जिससे क्लेम रिजेक्शन बढ़ने का खतरा ज्यादा है.
एक ही कंपनी द्वारा लाइफ, हेल्थ और जनरल बीमा देने से जोखिम बढ़ेगा और वित्तीय संकट की स्थिति में बड़ा नुकसान हो सकता है. ग्रामीण, गरीब और कमजोर वर्गों के लिए बीमा कंपनियां कम रुचि दिखा सकती हैं, क्योंकि वहां मुनाफा सीमित होता है.
नए बिल में IRDAI को अधिक शक्तियां देने की व्यवस्था है. इससे नियामकीय मनमर्जी को बढ़ावा मिलेगा. साथ ही जवाबदेही में कमी का शक है. सार्वजनिक क्षेत्र की बीमा कंपनियों पर दबाव LIC और अन्य सरकारी बीमा कंपनियों को निजी खिलाड़ियों से कड़ी टक्कर और सामाजिक योजनाओं के साथ प्रतिस्पर्धा का दोहरा दबाव झेलना पड़ सकता है.
पॉलिसीहोल्डर सुरक्षा के प्रावधान स्पष्ट नहीं है. क्लेम सेटलमेंट को टाइम-बाउंड करने की बात है, लेकिन समय-सीमा दंड की परिभाषा स्पष्ट नहीं है. नया बीमा संशोधन बिल 2025 जहां बीमा सेक्टर को आधुनिक और निवेश-अनुकूल बनाने की कोशिश है, वहीं इसके कुछ प्रावधान उपभोक्ता संरक्षण, नियामकीय संतुलन और सामाजिक जिम्मेदारी को लेकर सवाल खड़े करते हैं.