'भर्ती के बीच नहीं हो सकता नियम में बदलाव', गवर्नमेंट जॉब को लेकर सुप्रीम कोर्ट की बड़ी टिप्पणी

सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी भर्ती में नियमों के संबंध में बड़ा फैसला सुनाया है. कोर्ट ने कहा कि सरकारी भर्ती नियमों को बीच में तब तक नहीं बदला जा सकता जब तक कि मौजूदा प्रक्रिया विशेष रूप से इसकी इजाजत न दे. इस फैसले से ऐसी ही सरकारी नौकरी की परीक्षाओं के लिए आवेदन करने वाले युवाओं पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ेगा. साथ ही भर्ती की प्रक्रिया पर भी असर देखने को मिलेगा.;

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Edited By :  निशा श्रीवास्तव
Updated On : 7 Nov 2024 4:56 PM IST

Supreme Court On Government Job: सरकारी नौकरी करना हर किसी का सपना होता है. लोगों का मानना होता है कि एक बार गवर्नमेंट जॉब लग जाए फिर लाइफ सेट है. लेकिन सुनने में जितना आसान लगता है, असल में काफी मुश्किल है. कई नियमों और परीक्षा पास करके नौकरी मिलती है.

सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी भर्ती में नियमों के संबंध में बड़ा फैसला सुनाया है. कोर्ट ने कहा कि सरकारी भर्ती नियमों को बीच में तब तक नहीं बदला जा सकता जब तक कि मौजूदा प्रक्रिया विशेष रूप से इसकी इजाजत न दे.

सरकारी भर्ती नियम पर क्या बोला कोर्ट?

सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने गुरुवार को कहा कि सार्वजनिक सेवाओं में भर्ती के लिए उम्मीदवारों के चयन के नियम या प्रोसेस को बीच में नहीं बदल सकते. पारदर्शिता और गैर-भेदभाव सार्वजनिक भर्ती की पहचान होनी चाहिए. इस फैसले से ऐसी ही सरकारी नौकरी की परीक्षाओं के लिए आवेदन करने वाले युवाओं पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ेगा. साथ ही भर्ती की प्रक्रिया पर भी असर देखने को मिलेगा.

पिछले फैसले को रखा बरकरार

सुप्रीम कोर्ट ने आंध्र प्रदेश राज्य (2008) के मामले में सर्वोच्च न्यायालय के पिछले फैसले को बरकरार रखा है. जिसमें कहा गया था कि भर्ती प्रक्रिया के नियमों को बीच में नहीं बदला जा सकता है. कोर्ट ने कहा कि के. मंजूश्री निर्णय अच्छा कानून है और इसे गलत नहीं ठहराया जा सकता. पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि किसी भी बदलाव के नियमों को संविधान के अनुच्छेद 14 का पालन करना होगा. जिससे किसी के साथ निष्पक्षता और मनमानी न हो.

भर्ती प्रक्रिया में न हो मनमानी-SC

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भर्ती के नियमों को भी अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और 16 (सार्वजनिक रोजगार में भेदभाव न करना) के मानक को पूरा करना जरूरी है. यानी किसी के साथ मनमानी नहीं होनी चाहिए. कोर्ट ने कहा कि सेलेक्शन लिस्ट में नाम आने से कैंडिडेट को नौकरी पाने का पूरा अधिकार नहीं मिल जाता है. इसके लिए भर्ती प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है और बीच में बदलाव से कैंडिडेट की टेंशन बढ़ जाती है.

क्या है मामला?

यह मामला राजस्थान उच्च न्यायालय में 2013 में शुरू हुआ था. जब सरकारी पदों के लिए भर्ती प्रक्रिया के दौरान कुछ नियमों में संशोधन किया गया था. जिन उम्मीदवारों ने पहले ही लिखित परीक्षा और मौखिक परीक्षा पूरी कर ली थी, उन्हें बताया गया कि केवल कम से कम 75 प्रतिशत अंक प्राप्त करने वाले ही नियुक्ति के लिए योग्य होंगे. इसके बाद उम्मीदवार कोर्ट पहुंचे थे.

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