शेख हसीना की जान अब भारत के हाथ में... पूर्व पीएम के प्रत्यर्पण के लिए कौन-कौन से हथकंडे अपना सकता है बांग्लादेश?

बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को ढाका की ICT-1 कोर्ट ने ‘क्राइम्स अगेंस्ट ह्यूमैनिटी’ में मौत की सज़ा सुनाई, लेकिन वह इस समय भारत की सुरक्षा में हैं—और अब उनकी जान पूरी तरह भारत के फैसले पर टिकी है. 2024 के छात्र विद्रोह, सैकड़ों मौतों, हज़ारों घायलों, सेना की तटस्थता और सरकार के पतन के बाद हसीना देश छोड़कर भारत पहुंचीं थीं. अब सवाल ये है कि क्या भारत उन्हें प्रत्यर्पित करेगा? क्या इस सज़ा का भारत में कोई कानूनी प्रभाव है? क्या UN इस फैसले को लागू करा सकता है? और अगर भारत उन्हें न सौंपे, तो दक्षिण एशिया की भू-राजनीति किस दिशा में जाएगी? पूरा मामला पढ़ें—जहां कानून, कूटनीति और शक्ति एक-दूसरे को चुनौती दे रहे हैं.;

( Image Source:  ANI )
Edited By :  नवनीत कुमार
Updated On : 18 Nov 2025 8:20 AM IST

ढाका में चले गोलियों के तूफ़ान ने सिर्फ़ एक सरकार को नहीं गिराया-उसने बांग्लादेश की राजनीति की धरती को ऐसे चीर दिया कि उसका कंपन आज भी पूरे दक्षिण एशिया में महसूस किया जा रहा है. जिस छात्र आंदोलन को शुरुआत में सिर्फ आरक्षण सुधार का विरोध समझा गया था, वही कुछ ही घंटों में ऐसे विद्रोह में बदल गया जिसने सैकड़ों जिंदगियाँ निगल लीं, हजारों को घायल कर दिया और सत्ता के पूरे ढांचे को ध्वस्त कर दिया. धूल हटने के बाद बचा सिर्फ़ अराजकता का एक अंतहीन विस्तार… और सत्ता से भागती एक प्रधानमंत्री.

आज वही शेख हसीना-जो कभी ढाका की सबसे शक्तिशाली आवाज़ थीं-भारत के संरक्षण में, एक गोपनीय ठिकाने पर अपने राजनीतिक भविष्य और जीवन के अगले अध्याय का इंतज़ार कर रही हैं. लेकिन इसी बीच ढाका की कोर्ट ने उन पर "क्राइम्स अगेंस्ट ह्यूमैनिटी" में मौत की सज़ा सुना दी है, जिसने पूरे क्षेत्र को एक नए कूटनीतिक संकट में धकेल दिया है. असली सवाल अब यह नहीं है कि हसीना दोषी हैं या नहीं-बल्कि यह कि उनकी किस्मत का फ़ैसला अब अदालत नहीं, भारत की नीति करेगी.

वह 48 घंटे जिसने इतिहास बदल दिया

2024 में बांग्लादेश में आरक्षण नीति सुधार के विरोध में शुरू हुआ छात्र आंदोलन, अंदाज़े से कहीं बड़ा विस्फोट साबित हुआ. सिर्फ दो दिनों में यह विरोध प्रदर्शन देशव्यापी आक्रोश में तब्दील हो गया. सड़कों पर भीड़ उमड़ पड़ी, इंटरनेट ब्लैकआउट लगा, और सुरक्षा बलों ने कठोर कार्रवाई शुरू की. कुछ अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट्स के अनुसार, 1,200 से अधिक लोगों की मौत और 20,000 से ज़्यादा घायल होने की घटनाएं दर्ज हुईं-जो बांग्लादेश के इतिहास का सबसे बड़ा नागरिक विद्रोह बन गया.

जब सेना ने रास्ता बदल लिया

सरकार ने दबाव बढ़ाने के लिए आक्रामक ऑपरेशन शुरू किए, लेकिन परिदृश्य तब पलट गया जब सेना ने "न्यूट्रल" स्टैंड ले लिया. संसद भंग की गई, राजनीतिक संरचना टूटी, और ढाका अराजकता में डूब गया. हालात काबू से बाहर होते देख अगस्त 2024 में शेख हसीना भारत की ओर भागीं-जहां उन्हें "नेगेटिव सिक्योरिटी शील्ड" दी गई, यानी पहचान गुप्त रखते हुए सरकारी सुरक्षा.

ICT-1 ने हसीना को माना ‘युद्ध अपराधी’

17 नवंबर को इंटरनेशनल क्राइम्स ट्राइब्यूनल-1 ने तीन बड़े आरोपों के आधार पर हसीना को मौत की सज़ा दी. प्रदर्शनकारियों पर एयरस्ट्राइक की मंज़ूरी, शहरी इलाकों में सैन्य निशाना साधने का आदेश और व्यापक मानवाधिकार उल्लंघन. ट्राइब्यूनल ने निष्कर्ष दिया-राज्य ने अपने नागरिकों को दुश्मन समझकर युद्ध-स्तर की कार्रवाई की.

एक कॉल, जिसने पूरा मुकदमा मोड़ दिया

अभियोजन पक्ष की ओर से एक कथित कॉल रिकॉर्डिंग पेश की गई जिसमें हसीना को कहा जाता है कि, “मेरे खिलाफ दर्ज केस मुझे मारने का लाइसेंस देते हैं.” अदालत ने इसे उनके इरादे की स्वीकारोक्ति माना और इसे "क्राइम्स अगेंस्ट ह्यूमैनिटी" के केंद्र में रखा. हालांकि रिकॉर्डिंग के असली होने पर बांग्लादेश और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गंभीर सवाल उठाए गए.

‘यह न्याय नहीं, राजनीतिक सफाया है’

भारत में मौजूद हसीना ने इस फैसले को “कंगारू ट्रायल”, “राजनीतिक बदले की कार्रवाई” और अवामी लीग को चुनाव से बाहर करने की रणनीति बताया. उन्होंने कहा कि अदालत निष्पक्ष नहीं, बल्कि अंतरिम प्रशासन के एजेंडा का हिस्सा है. उनका रुख साफ था-वे इस सज़ा को मान्यता नहीं देतीं.

भारत में सज़ा का क्या रहेगा कानूनी प्रभाव

कानूनी तौर पर ICT-1 की मौत की सज़ा भारत में मान्य नहीं होती. भारत की अदालतें विदेशी फैसलों को तब तक नहीं मानतीं, जब तक वे खुद उसकी समीक्षा न करें. इसलिए भारत में मौजूद हसीना पर इस फैसले का कोई कानूनी असर नहीं होगा.

क्या कर सकता है बांग्लादेश?

ICT-1 कोई UN-सुपरवाइज़्ड कोर्ट नहीं है. UN सिर्फ ICC और ICJ के फैसले लागू करवा सकता है. इसका मतलब- UN भारत को हसीना को सौंपने के लिए बाध्य नहीं कर सकता. बांग्लादेश सिर्फ राजनीतिक या कूटनीतिक दबाव बना सकता है, कानूनी नहीं.

क्या भारत उन्हें ढाका भेज सकता है?

भारत और बांग्लादेश के बीच प्रत्यर्पण संधि है, लेकिन भारत के तीन बड़े फ़िल्टर हैं. राजनीतिक प्रतिशोध का खतरा, निष्पक्ष ट्रायल की कमी और मौत की सज़ा का जोखिम. इनमें से कोई एक भी कंडीशन प्रत्यर्पण रोकने के लिए पर्याप्त है. इस मामले में तीनों मौजूद हैं, इसलिए भारत का मना करना पूरी तरह वैध होगा.

भेजा तो संकट, न भेजा तो दूरी

अगर भारत सौंपता है तो...

  • अवामी लीग समर्थकों में भारत-विरोध बढ़ेगा
  • दक्षिण एशिया में भारत की छवि प्रभावित होगी
  • “भारत पड़ोसी की राजनीति बदलता है” वाला नैरेटिव मजबूत होगा

अगर भारत नहीं सौंपता है तो...

  • बांग्लादेश चीन की ओर झुक सकता है
  • सुरक्षा और सीमा सहयोग प्रभावित हो सकता है
  • कूटनीतिक तनाव बढ़ सकता है

यानी-दोनों विकल्प जोखिम भरे हैं.

रणनीति ही जीवन बनेगी

भारत तीन रास्तों में से कोई चुन सकता है...

  • Silent Asylum: शरण जारी, प्रत्यर्पण पर चुप्पी.
  • Human Rights Shield: साफ तौर पर कहना-राजनीतिक बदले और मौत की सज़ा की वजह से प्रत्यर्पण असंभव.
  • Conditional Extradition: फांसी हटाकर निष्पक्ष अंतरराष्ट्रीय ट्रायल की शर्त.

लेकिन एक सच्चाई अटल है- हसीना का भविष्य अब ढाका नहीं, दिल्ली की कूटनीति लिखेगी. यह सिर्फ एक कानूनी केस नहीं, बल्कि एशिया की सबसे बड़ी भू-राजनीतिक पहेली बन चुका है.

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