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शेख हसीना के पास सजा-ए-मौत से बचने के कौन-कौन से रास्ते हैं? अगर नहीं चुना तो राजनीतिक करियर हो जाएगा तबाह

बांग्लादेश की अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना को ICT ने छात्र आंदोलन की हिंसा में मानवता के खिलाफ अपराधों का दोषी ठहराते हुए फांसी की सजा सुनाई है. हसीना तकनीकी रूप से सुप्रीम कोर्ट में अपील कर सकती हैं, लेकिन इसके लिए 17 दिसंबर 2025 तक बांग्लादेश जाकर आत्मसमर्पण करना अनिवार्य है.भारत में शरण लिए बैठी हसीना ने फैसले को 'फर्जी, राजनीतिक और अवैध' बताते हुए प्रक्रिया पर सवाल उठाए हैं. यदि वह समय सीमा तक पेश नहीं हुईं, तो सजा अंतिम हो जाएगी और आवामी लीग की राजनीतिक वापसी लगभग असंभव हो जाएगी.

शेख हसीना के पास सजा-ए-मौत से बचने के कौन-कौन से रास्ते हैं? अगर नहीं चुना तो राजनीतिक करियर हो जाएगा तबाह
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( Image Source:  statemirrornews )

Sheikh Hasina Death Sentence ICT Verdict: बांग्लादेश की अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना के लिए हालात बेहद गंभीर होते जा रहे हैं. इंटरनेशनल क्राइम ट्रिब्यूनल (ICT) ने पिछले वर्ष छात्र आंदोलन के दौरान भड़की हिंसा और मौतों के लिए उन्हें मानवता के खिलाफ अपराध का दोषी ठहराते हुए फांसी की सजा सुना दी है. इस फैसले ने न केवल शेख हसीना की राजनीतिक वापसी पर ताला जड़ दिया है, बल्कि उनकी पार्टी बांग्लादेश आवामी लीग के भविष्य पर भी सीधे-सीधे खतरा खड़ा कर दिया है.

शेख हसीना के पास अब क्या विकल्प हैं?

तकनीकी रूप से शेख हसीना के पास ICT के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट की अपीलेट डिवीजन में अपील का रास्ता मौजूद है, लेकिन यह रास्ता कड़ा और शर्तों से भरा हुआ है. ICT कानून की धारा 21 के अनुसार, फांसी की सजा पाए दोषी को 30 दिनों के भीतर बांग्लादेश में गिरफ्तार होना होगा या कोर्ट में आत्मसमर्पण करना होगा. तभी सुप्रीम कोर्ट में अपील दाखिल करने का कानूनी अधिकार मिलता है...

हसीना के लिए यह डेडलाइन 17 दिसंबर 2025 तय हुई है. यदि वह इस तारीख तक बांग्लादेश की किसी भी अदालत में पेश नहीं होतीं, तो उनका अपील का अधिकार अपने आप खत्म हो जाएगा और फांसी की सजा अंतिम हो जाएगी. सुप्रीम कोर्ट को उसके बाद अधिकतम 60 दिनों में फैसला सुनाना होता है, यानी पूरा प्रोसेस फरवरी 2026 तक खत्म हो जाएगा.

क्या हसीना बांग्लादेश लौटेंगी?

शेख हसीना फिलहाल भारत में शरण लिए हुई हैं और ICT को 'फर्जी, धांधली वाली और राजनीतिक रूप से संचालित कठपुतली अदालत' बता चुकी हैं. उन्होंने साफ़ संकेत दिए हैं कि उन्हें बांग्लादेश की न्यायिक प्रक्रिया पर भरोसा नहीं है. यही कारण है कि उनका स्वेच्छा से जाकर गिरफ्तार होना या कोर्ट में आत्मसमर्पण करना लगभग असंभव माना जा रहा है.

यदि वह वापस नहीं लौटतीं तो उनकी राजनीतिक वापसी हमेशा के लिए रुक सकती है. आवामी लीग पर लगे प्रतिबंध को चुनौती देने का कानूनी रास्ता भी खत्म हो जाएगा और पार्टी के चुनावी भविष्य पर भी स्थायी असर पड़ेगा. यानी आने वाले 30 दिन हसीना और उनकी पार्टी के राजनीतिक अस्तित्व के लिए निर्णायक होंगे.

ICT के फैसले पर हसीना का कड़ा हमला

शेख हसीना ने ICT के फैसले को 'पक्षपातपूर्ण, अवैध और राजनीतिक षड्यंत्र' बताया है. उनका कहना है, उन्हें अपनी पसंद का वकील रखने की इजाज़त नहीं दी गई, मुकदमा उनकी अनुपस्थिति में चलाया गया, उन्हें अपना पक्ष रखने का उचित मौका नहीं मिला और ट्रिब्यूनल का मकसद उन्हें सत्ता से हटाना और आवामी लीग को खत्म करना है.

हसीना ने दावा किया, “दुनिया का कोई भी पेशेवर कानूनविद् इस ट्रिब्यूनल को वैध नहीं मानेगा. यह जनादेशविहीन अदालत है, जिसका लक्ष्य सिर्फ मुझे और मेरी पार्टी को राजनीतिक रूप से खत्म करना है.”

कैसे शुरू हुआ संकट?

5 अगस्त 2024 को छात्र आंदोलन के उग्र होने के बाद हालात अचानक बिगड़ गए. बढ़ती हिंसा, मौतों और अव्यवस्था के बीच शेख हसीना देश छोड़कर भारत में शरण लेने को मजबूर हुईं. बाद में अंतरिम सरकार और ICT ने उन पर आंदोलन कुचलने, बर्बरता करने और कई मौतों की जिम्मेदारी का आरोप लगाया.

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