दुल्हन बनने वाले दिन ही 'हसीना' को क्यों आया सजा-ए-मौत का फरमान! कौन थे शेख हसीना के पति? जानें बांग्लादेश में कैसे हैं हालात
बांग्लादेश की अपदस्थ पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को 17 नवंबर कभी नहीं भूल सकता. यही वह तारीख है जब 1967 में उनकी शादी एमए वाज़ेद मियां से हुई थी और 2025 में इसी दिन इंटरनेशनल क्राइम्स ट्रिब्यूनल ने उन्हें मौत की सज़ा सुनाई. सोशल मीडिया पर बहस छिड़ी है कि क्या यह तारीख जानबूझकर चुनी गई. पहले फैसला 14 नवंबर को आना था, जिसे अचानक 17 नवंबर कर दिया गया. कई इसे साजिश बता रहे हैं, जबकि कुछ इसे संयोग कहते हैं. हसीना और उनकी पार्टी इस फैसले को “राजनीतिक बदले” की कार्रवाई बता रही है.
बांग्लादेश की सत्ता से बेदखल हो चुकीं पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के लिए 17 नवंबर हमेशा एक पेचीदा तारीख रही है. यह वही दिन है जब अंतरराष्ट्रीय अपराध अधिकरण (ICT)—जिसे कभी हसीना सरकार ने ही स्थापित किया था. उन्हें मौत की सजा सुनाई. यह संयोग और भी गहरा इसलिए हो गया क्योंकि ठीक 58 साल पहले, 17 नवंबर 1967 को इसी दिन हसीना ने प्रसिद्ध भौतिक विज्ञानी एम.ए. वाजेद मियां से विवाह किया था.
सोशल मीडिया पर इस तारीख को लेकर जोरदार बहस छिड़ गई है. कई यूज़र्स आरोप लगा रहे हैं कि हसीना के खिलाफ फैसला सुनाने के लिए 17 नवंबर को जानबूझकर चुना गया. वहीं कुछ लोग कहते हैं कि यह सिर्फ एक इत्तेफाक है. दिलचस्प यह है कि प्रारंभिक योजना के अनुसार, फैसले की तारीख 14 नवंबर तय की गई थी, जिसे बाद में बदलकर 17 नवंबर किया गया.
सोशल मीडिया पर विवाद: क्या तारीख जानबूझकर चुनी गई?
ICT ने 13 नवंबर को घोषणा की कि शेख हसीना और उनके दो शीर्ष सहयोगियों पर फैसला 17 नवंबर को सुनाया जाएगा. इस फैसले के बाद कई बांग्लादेशी मीडिया प्लेटफॉर्म्स ने इस तारीख के प्रतीकात्मक मायने पर सवाल उठाए. Centrist Nation TV ने फेसबुक पर लिखा कि '17 नवंबर हसीना के लिए एक बेहद अहम तारीख है. 1967 में उनकी शादी की सालगिरह से लेकर 2025 में मिली मौत की सजा तक.'
ढाका के प्रमुख डिजिटल प्लेटफॉर्म The Headlines ने X पर लिखा कि 17 नवंबर को शेख हसीना को मानवता के खिलाफ अपराध वाले मामले में ऐतिहासिक फैसले का सामना करना पड़ा. एक ऐसा दिन जो 1967 में एम.ए. वाजेद मियां से उनकी शादी की सालगिरह से भी जुड़ा हुआ है, जिससे इस बड़े न्यायिक निर्णय में एक निजी पहलू भी जुड़ गया.'
कुछ उपयोगकर्ताओं ने ICT के फैसले की तारीख बदलने के पीछे राजनीतिक मंशा की आशंका जताई. एक यूज़र ने फेसबुक पर दावा किया कि 'डॉ. यूनुस बहुत चालाक हैं. इस मामले का फैसला कुछ दिन पहले सुनाया जाना था, लेकिन उन्होंने तारीख बदलकर 17 नवंबर कर दी, क्योंकि वह हसीना की शादी की सालगिरह है. एक अन्य ने लिखा कि हमारी पूर्व प्रधानमंत्री, कातिल शेख हसीना को शादी की सालगिरह मुबारक."
हसीना की प्रतिक्रिया: फैसले को बताया ‘पूर्व-नियोजित साजिश’
फैसला आने के बाद Awami League और शेख हसीना ने मुहम्मद यूनुस पर राजनीतिक प्रतिशोध का आरोप लगाया. उन्होंने ICT को "rigged" करार देते हुए कहा कि इस प्रक्रिया का लक्ष्य अवामी लीग को कमजोर करना था. हसीना ने आरोप लगाया कि उन्हें निष्पक्ष सुनवाई नहीं मिली और यह फैसला पहले से तय था. उनके शब्दों में, यह सब यूनुस और उनके “extremist allies” की सोची-समझी रणनीति थी, ताकि उन्हें राजनीति से बाहर किया जा सके.
कौन थे शेख हसीना के पति वाजेद मियां?
एम.ए. वाजेद मियां बांग्लादेश के उन दुर्लभ वैज्ञानिकों में से थे जिन्होंने राजनीति और विज्ञान दोनों ही क्षेत्रों में अपनी गहरी पकड़ बनाई. उन्होंने 1963 में पाकिस्तान एटॉमिक एनर्जी कमीशन में काम शुरू किया. कराची स्थित Atomic Energy Research Center से जुड़े रहे. पाकिस्तान सरकार ने उनकी नौकरी "अन्यायपूर्ण तरीके से समाप्त" कर दी, जिसके बाद वह युद्ध से पहले पूर्वी पाकिस्तान लौट आए. बांग्लादेश बनने के बाद उन्होंने Bangladesh Atomic Energy Commission में फिर काम शुरू किया.
वाजेद मियां ने भौतिकी से लेकर राजनीति तक अनेक विषयों पर किताबें लिखीं, जिनमें प्रमुख हैं- बंगबंधु शेख मुजीब को घेरे कुछ घटनाएं और बांग्लादेश’, और ‘बांग्लादेश की राजनीति और सरकार का चरित्र’. उनका निधन मई 2009 में हुआ, ठीक कुछ महीने बाद जब हसीना ने तीसरी बार बांग्लादेश की प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली थी.
परिवार- दो बच्चे- सजीब वाजेद जॉय और साइमा वाजेद पुतुल. शेख हसीना और वाजेद मियां के दो बच्चे हैं- सजीब वाजेद जॉय, जिन्हें बांग्लादेश की डिजिटल पहल का चेहरा माना जाता है. साइमा वाजेद पुतुल, जो मानसिक स्वास्थ्य और ऑटिज़्म जागरूकता पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काम करती हैं.
क्या 17 नवंबर सिर्फ एक इत्तेफाक था?
ICT की मूल तारीख 14 नवंबर थी, लेकिन इसे बदलकर 17 नवंबर करना कई सवाल खड़े करता है. कुछ लोग इसे सादा संयोग बताते हैं, जबकि सोशल मीडिया का एक बड़ा हिस्सा इसे रणनीतिक राजनीतिक प्रतीकवाद के रूप में देख रहा है. फिलहाल इस पर कोई आधिकारिक स्पष्टीकरण नहीं आया है, लेकिन बांग्लादेश की राजनीति में यह तारीख अब इतिहास का महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुकी है.





