Pahalgam Terror Attack: कलमा पढ़कर कैसे बची हिंदू प्रोफेसर की जान? रूह कंपा देने वाली कहानी उन्हीं की जुबानी
पहलगाम आतंकी हमले में डिब्रूगढ़ यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर देबाशीष भट्टाचार्य ने जान बचाने के लिए कलमा पढ़ा. हमले के दौरान एक आतंकी उनके पास आया, लेकिन जब उन्होंने कलमा पढ़ना शुरू किया, तो वो उन्हें छोड़कर चला गया. देबाशीष की कहानी इंसानी सूझबूझ और उस खौफनाक मंजर की गवाही है, जिसने 28 लोगों की जान ले ली और कई ज़िंदगियां हमेशा के लिए बदल दीं.;
Pahalgam Terror Attack: कलमा पढ़कर कैसे बची हिंदू प्रोफेसर की जान? रूह कंपा देने वाली कहानी उन्हीं की जुबानी"अगर मैं उस वक्त कलमा नहीं पढ़ता, तो शायद आज ज़िंदा न होता…", ये शब्द हैं डिब्रूगढ़ के असम यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर देबाशीष भट्टाचार्य के, जो उस खौफनाक पहलगाम आतंकी हमले में बाल-बाल बच गए, जहां 28 लोगों की जान चली गई. छुट्टियों पर परिवार के साथ कश्मीर गए बंगाली विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर देबाशीष अपनी पत्नी और बेटे के साथ बैसारन में एक पेड़ के नीचे आराम कर रहे थे. तभी अचानक उनकी नींद उस भयावह फुसफुसाहट से टूटी, जिसमें लोग कलमा पढ़ रहे थे.
वो बताते हैं, "मुझे कुछ समझ नहीं आया, लेकिन मैंने भी कलमा पढ़ना शुरू कर दिया. तभी एक आतंकवादी, जो आर्मी जैसी वर्दी में था, मेरी तरफ आया और मेरे बगल में लेटे एक शख्स के सिर में गोली मार दी." "वो फिर मेरी ओर घूमा और पूछा, 'क्या कर रहे हो?' मैंने और जोर से कलमा पढ़ा. पता नहीं क्या हुआ, लेकिन वो पलटा और चला गया."
घुड़सवार की मदद से पहुंचे होटल
बस उसी पल प्रोफेसर ने अपनी पत्नी और बेटे का हाथ पकड़ा और पहाड़ की ओर भागने लगे. "हम दो घंटे तक चलते रहे, घोड़े के खुरों के निशानों का पीछा करते हुए. एक घुड़सवार मिला, जिससे मदद मिल सकी और हम होटल वापस पहुंचे." आज देबाशीष और उनका परिवार श्रीनगर में हैं, लेकिन दिल अभी भी उस पल में फंसा है. उन्होंने कहा, “मैं अब भी यकीन नहीं कर पा रहा कि जिंदा हूं,”
जब ‘कलमा’ बन गई ज़िंदगी और मौत के बीच की दीवार
पुलिस के मुताबिक, मंगलवार सुबह बैसारन में सैर पर निकले पर्यटकों पर आतंकियों ने घात लगाकर हमला किया. पहले सभी को एक जगह इकट्ठा किया गया, फिर पुरुषों और महिलाओं को अलग किया गया. पहचान की पुष्टि के बाद कुछ लोगों को दूर से स्नाइपर जैसी बंदूक से मारा गया, जबकि कई लोग खून बहने से तड़पते रहे. ये हमला जानबूझकर ऐसी जगह किया गया जहां मदद देर से पहुंचे, ताकि मौत का आंकड़ा बढ़े. मरने वालों में UAE और नेपाल के दो विदेशी पर्यटक और भारत के कई राज्यों कर्नाटक, महाराष्ट्र, हरियाणा और यूपी के लोग शामिल हैं. इस हमले की जिम्मेदारी ली है रेजिस्टेंस फ्रंट (TRF) ने, जो पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा का ही नया चेहरा माना जाता है.
नाम से तय होती पहचान
इस पूरे हमले में एक बात और भी सामने आई, आतंकियों की नजर में पहचान सिर्फ नाम से तय होती है, इंसानियत से नहीं. लेकिन देबाशीष जैसे लोग उस पहचान से ऊपर उठकर ज़िंदा लौटे. कभी हिम्मत, कभी सूझबूझ, और शायद किसी अदृश्य ताकत के भरोसे.