Pahalgam Attack: अपने घर की हालत बदतर, फिर पहलगाम में क्यों कूदा पाकिस्तान? हैरान कर देगा अंदर का सच-EXPLAINER

22 अप्रैल 2025 को जम्मू और कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले ने पाकिस्तान की भीतरी अस्थिरता को उजागर किया. पाकिस्तान, जो अपने ही विभिन्न क्षेत्रों जैसे बलूचिस्तान, सिंध और खैबर पख्तूनख्वा में संघर्षों का सामना कर रहा है, ने इस हमले के जरिए दुनिया का ध्यान अपनी समस्याओं से हटाने की कोशिश की. विशेषज्ञों के अनुसार, यह हमला पाकिस्तान के अंदरूनी संकटों से ध्यान भटकाने के लिए किया गया था. हालांकि, यह पाकिस्तान के लिए एक खतरनाक कदम साबित हो सकता है, क्योंकि इसके परिणामस्वरूप भारत से कड़ी प्रतिक्रिया और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर और अलगाव हो सकता है.;

By :  संजीव चौहान
Updated On : 3 May 2025 6:08 AM IST

Pahalgam Attack: वैसे भी एक अदद चीन को छोड़कर दुनिया का कोई देश पाकिस्तान को काबिल नहीं मानता है. चीन भी पाकिस्तान को नंबर एक का ‘मूर्ख’ ही समझता है. चूंकि भारत के लिए धूर्त पाकिस्तान, चीन के लिए सोने का अंडा देने वाली मुर्गी है. इसलिए चीन की मजबूरी है भारत पर दबाव बनाए रखने और पाकिस्तान से अपना उल्लू सीधा करने के लिए, पाकिस्तान की वाह-वाही करते रहना. वरना मक्कार चीन भी यह तो समझता है कि आज नहीं तो कल. पाकिस्तान का बेड़ा तो गर्क होना ही है. पाकिस्तान को लेकर कमोबेश चीन की सी ही सोच अमेरिका की भी है. वह भी पाकिस्तान को ‘इस्तेमाल करो और फेंक दो’ वाले फंडे पर प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से पाल-पोसकर रखे है.

इस सबके बीच 22 अप्रैल 2025 को पाकिस्तान ने भारत के अधिकार क्षेत्र वाली जम्मू-कश्मीर घाटी के पहलगाम (बैसरन घाटी पर्यटन स्थल) में जो तांडव खेला है. उसका असर सिर्फ भारत पर ही नहीं पड़ा है. अपितु भारत ने तो अपने दु:ख की इस घड़ी में आतंकवाद की नजर से पाकिस्तान को, पहलगाम कांड पर दुनिया के सामने नंगा कर डाला है. ऐसे में दुनिया भर के विदेश-सामरिक, राजनीतिक नीति विशेषज्ञों, खुफिया-जांच एजेंसियों की माने तो, पहलगाम में कराया गया आतंकवादी हमला पाकिस्तान के ताबूत में आखिरी कील भी साबित होने की पूरी-पूरी उम्मीद है.

पाक में गृहयुद्ध से हालात, भारत से कैसे लड़ेगा?

2000 के दशक के आसपास भारतीय खुफिया एजेंसी RAW में तीसरे पायदान के प्रमुख रह चुके पूर्व अफसर बोले, “जो पाकिस्तान बीते कुछ साल से दाल-चावल-नमक, चीन-तेल के लिए कत्ल-ए-आम पर उतारू है. जिस पाकिस्तान के अंदरूनी राजनीतिक, आर्थिक सामाजिक हालात बदतर हुए पड़े हों. जो देश खुद गृहयुद्ध के कगार पर खड़ा हो. जिसका खजाना खुद उसी के हुक्मरानों-मिलिट्री अफसरों, आईएसआई ने लूट के खा लिया हो. सोचिए उस पाकिस्तान ने अपने कितने बुरे दौर में पहलगाम में हमला करवा कर वहां माचिस की तीली जलाकर फेंकी है. मुझे तो पूरी आशंका है कि अगर भारत इस बार जवाब देगा तो, पाकिस्तान द्वारा पहलगाम में जलाकर फेंकी गई माचिस की तीली में कहीं वो खुद ही जलकर भस्म न हो जाए.”

“विनाशकाले-विपरीत बुद्धि” पर पाकिस्तान

पूर्व रॉ अफसर की इन्हीं तमाम दलीलों को 1974 बैच के पूर्व आईपीएस और उत्तर प्रदेश के रिटायर्ड पुलिस महानिदेशक डॉ. विक्रम सिंह भी सही मानते हैं. उनके मुताबिक, ‘विनाशकाले विपरीत बुद्धि वाली कहावत पाकिस्तान ने इस वक्त खुद पर लागू की है. पाकिस्तान अपने ही विवादित इलाकों जैसे खैबर पख्तूनख्वा, सिंध और अपने हिस्से में मौजूद कश्मीर (पाक के कब्जे वाला कश्मीर) में चल रही लड़ाई से नहीं निपट पा रहा है. बलूचिस्तान, हर आए दिन पाकिस्तान में खून-खराबा अंजाम दे रहा है. ऐसे में पाकिस्तान ने पहलगाम में हाथ डालकर खुद ही अपने निपटने का इंतजाम कर लिया है. यह सिर्फ मुझे ही नहीं भारत सहित पूरी दुनिया को दिखाई दे रहा है.’

 

पाकिस्तान 1971 की सी आग में झुलस रहा

सीमा सुरक्षा बल यानी बीएसएफ के रिटायर्ड महानिदेशक और वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी प्रकाश सिंह कहते हैं, ‘पाकिस्तान इस वक्त उसी तरह की आग में झुलस रहा है जैसा कि साल 1971 में, पूर्वी पाकिस्तान जो अब बांग्लादेश बन चुका है, की मांग को लेकर हुआ था. आज 53-53 साल बाद अगर अंदरूनी हालात देखे जाएं तो पाकिस्तान फिर उसी मुकाम पर आ खड़ा हुआ दिखाई दे रहा है. उस वक्त भारत ने पाकिस्तान की उस कमजोर नस को पकड़कर, उससे पूर्वी पाकिस्तान को अलग करके जैसे बांग्लादेश बनवा डाला. उसी तरह से अब पाकिस्तान के लिए बलूचिस्तान, सिंध, पंजाब (पाकिस्तान के हिस्से वाला), खैबर पख्तूनख्वा और उसके हिस्से वाला कश्मीर मुसीबत बन सकता है. इस बात को पाकिस्तान अभी नहीं समझ रहा है. जब यह सब उसके हाथ से निकल जाएंगे, तब पाकिस्तान को गलती का अहसास होगा.’

सिंध में भी पाकिस्तान का जबरदस्त विरोध

बात अगर पाकिस्तान की अपनों से ही लड़ाई का करें तो, इसमें उसका सिंध स्टेट भी शामिल है. जो कि पाकिस्तान के दूसरा बड़ा स्टेट कहा जाता है. यहां सिंधियों की संख्या बहुतायत में है. यह राज्य और इस राज्य के लोग आए दिन खुद को पाकिस्तान से अलग करने की मांग को लेकर विरोध प्रदर्शन आदि करते रहते हैं. यह राज्य अक्सर नहरों को लेकर होने वाले विवादों में भी फंसा देखा-सुना जाता रहा है. राज्य के लोग पाकिस्तान की यहां प्रस्तावित नहर परियोजना का अक्सर कड़ा विरोध करते हैं. करीब चार अरब डॉलर लागत वाली इस परियोजना में पाकिस्तान 6 नहरें बनाने को बार-बार कोशिश करता है. जिसे सिंधी बाहुल्य राज्य की जनता फलीभूत ही नहीं होने दे रही है. कृषि प्रधान यह राज्य मूल रूप से पानी पर ही निर्भर है. मगर नहरें बनाए जाने से राज्य के लोगों को अंदेशा है कि उनसे इनके राज्य का पानी छीनकर पाकिस्तान की भ्रष्ट हुकूमत अन्य राज्यों को बेच देगी.

लंदन में डिप्टी सेक्रेटरी रहे पूर्व रॉ अफसर बोले...

अमेरिका, पाकिस्तान, सऊदी अरब, दुबई, कनाडा जैसे देशों में कई साल भारतीय खुफिया एजेंसी रॉ में काम कर चुके डिप्टी सेक्रेटरी स्तर के पूर्व रॉ अधिकारी के मुताबिक, “आज इस वक्त पाकिस्तान के अंदरूनी जो हैं, वो उसके लिए भस्मासुर का काम करेंगे. इस नजर से बलूचिस्तान का मुद्दा सबसे ज्यादा पाकिस्तान को नुकसान पहुंचाएगा. बलूचिस्तान जिस तरह से आज की तारीख में पाकिस्तानी हुकूमत और उसकी फौज की नाम में दम किए हैं. ठीक उसी तरह से 1971 में जब पूर्व पाकिस्तान भारत की मदद से बांग्लादेश बन गया, तब पाकिस्तानी फौज ने नए नए बने बांग्लादेश के हिस्से में गए लोगों के ऊपर जुल्म ढहाना शुरू कर दिया था. तब भारत की हुकूमत और फौज को सामने आकर पाकिस्तान को डाउन करना पड़ा था.”

POK भारत और पाकिस्तान दोनों को मुसीबत

“ऐसा नहीं है कि भारत ही अपने हिस्से वाले जम्मू कश्मीर को बचाने के लिए जूझ रहा है. पाकिस्तान के सामने पाक अधिकृत कश्मीर भी उतनी ही बड़ी समस्या है, जितनी मुसीबत भारत के पास मौजूद जम्मू कश्मीर घाटी को बचाने की चिंता हिंदुस्तान को है. पाक अधिकृत कश्मीर के लोग अक्सर अपनी ही आर्मी और हुकूमत (पाकिस्तानी) के खिलाफ खुलकर सड़कों पर उतरते रहते हैं. पीओके वाले भी पाकिस्तान से मांग करते हैं कि वे उसे अपनी हद से बाहर स्वतंत्र करें. पाक अधिकृत कश्मीर वाले तो हमेशा से ही पाकिस्तान से कहते हैं कि वो उन्हें छोड़े, तो वे (पीओके) एक ही दिन में भारत में जाकर मिल जाएं. कुल जमा मैं 34 साल की अपनी रॉ की नौकरी के अनुभव से बताऊं या जो देख चुका हूं और आज देख रहा हूं, उसके मुताबिक पाकिस्तान में तो अंदरूनी मारकाट मची ही है. पाकिस्तान ने भारत के कब्जे वाले कश्मीर की भी शांति इसीलिए छीन ली है ताकि, भारत अपने हिस्से वाले कश्मीर को बचाने की जद्दोजहद से ही जूझता रहे.”

यह जानना भी जरूरी है.

अब से 53-54 साल पहले यानी सन् 1971-1972 में पाकिस्तान जिस तरह से बांग्लादेश (तब पूर्वी पाकिस्तान) बनने के दौरान चौतरफा घिरा हुआ था. उससे बदतर हालात पाकिस्तान के आज हैं. इस वक्त वह न केवल भारत से जूझ रहा है. अपितु बलूचिस्तान, सिंध, पाकिस्तान वाला पंजाब का हिस्सा, पाक अधिकृत कश्मीर, गिलगित बटालिस्तान को अपनी हदों में जबरिया ही सही, मगर बनाए रखने के लिए भी जूझ रहा है. यह सभी उल्लिखित स्थान हालांकि पाकिस्तान की हदों से हर कीमत पर बाहर निकलने को उतावले हैं. क्योंकि यह सभी राज्य-इलाके खुद को बीते 70 साल से पाकिस्तान का हिस्सा मानते ही नहीं है. यह सब कहते हैं कि वे तो भारत का हिस्सा हैं थे और आइंदा भी भारत का ही अभिन्न अंग बनेंगे. जबकि इसके एकदम विपरीत दूसरी ओर पाकिस्तान इन इलाकों को और यहां के बाशिदों को, हिंदुस्तानी और काफिर कहते हैं.

बलूचिस्तान से आए दिन की खूनी टक्कर

इन सबमें हाल-फिलहाल जिनसे पाकिस्तान की सीधी और खूनी टक्कर आए दिन हो रही है, वो है बलूचिस्तान इलाका. जिसकी अपनी आर्मी तक है. अक्सर आए दिन बलूचिस्तान के लोग और वहां की फौज पाकिस्तान और उसकी फौज के नींद उड़ा देने वाले साबित हो रहे हैं. पाकिस्तान जिस तरह से बलूचिस्तान से जूझ रहा है, मौजूदा वक्त में उसे अपने ही घर में कोई दूसरा भारत-समर्थक राज्य या जगह टक्कर नहीं दे पा रहा है. फिर चाहे वो सिंध, बटालिस्तान हो या फिर पाक अधिकृत पंजाब का इलाका.

पाकिस्तान अपनों की सिर-फुटव्वल से दुखी

बलोच लिबरेशन आर्मी, पाकिस्तान और उसकी फौज से खूनी मोर्चा खोले हुए है. वह अब से 53-54 साल पहले, पाकिस्तान द्वारा पूर्वी पाकिस्तान (अब का बंग्लादेश) के ऊपर चलाए गए ऑपरेशन सर्चलाइट की याद दिलाने के लिए काफी है. आज जिस तरह से पाकिस्तान बलोच के आंदोलनकारियों का दमन अपनी सेना के बलबूते करने पर आमादा है. ठीक उसी तरह से साल 1971 में पाकिस्तानी फौज और उसकी हुकूमत ने पूर्वी पाकिस्तान के लोगों पर भी हथियारों के बलबूते सवारी गांठने की नाकाम कोशिश की थी.

पाकिस्तान के लिए एक साथ कई मुसीबतें है

स्टेट मिरर हिंदी से बात करते हुए भारतीय खुफिया एजेंसी के पूर्व डिप्टी डायरेक्टर कहते हैं, “पाकिस्तान का खैबर पख्तूनख्वा जिसे संक्षिप्त में KPKके नाम से भी पहचाना जाता है, एक कई साल से हिंसा से बदहाल है. यहां हमेशा तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान यानी टीटीपी की नजरें गड़ी रहती हैं. टीटीपी यहां अक्सर खूनी हमले करती-करवाती रहती है. विशेषकर इस राज्य में तब से ज्यादा खून-खराबा बढ़ गया है, जबसे टीटीपी को अफगानिस्तान की मौजूदा तालिबान हुकूमत का प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से साथ मिला है.

यह वही इलाका है जिसके चलते पाकिस्तानी की सत्ताशीन हुकूमत और मिलिट्री व आईएसआई की सांसें हमेशा अटकी रहती हैं कि, न मालूम यहां से कब किस बड़े खूनी बबाल की खबर आ जाए. यहां जब जब भी खून खराबा होता है तो पूरे पाकिस्तान में कोहराम मचता है. बबाल भी कई कई सप्ताह तक चलता है. यहां इस्लामिक स्टेट-खुरासान का भी खासा हस्तक्षेप है. खुरासान के इशारे पर ही इस इलाके में शियाओं के ऊपर जबरदस्त हमले होते रहते हैं. खबरों की मानें तो बीते साल यानी 2024 में इस इलाके में 2000 के करीब लोग इन घरेलू हिंसाओं में मारे जा चुके हैं.”

अपनी लगाई आग में न जल जाए पाकिस्तान

इन तमाम एक्सपर्ट्स से बात के आधार पर यह समझना बेहद आसान है कि, भले ही पाकिस्तान भारत के लिए आएदिन क्यों न समस्या की जड़ हो. मगर चैन से वह खुद भी नहीं जी पा रहा है. इन अंदरूनी बदतल हालातों में रही सही कसर पाकिस्तान ने, पहलगाम में आतंकवादी हमला करवाकर अपने पैर पर खुद ही कुल्हाड़ी मारकर पूरी कर ली है. इससे साफ जाहिर है कि कहीं ऐसा न हो जो माचिस की जलती हुई तीली पाकिस्तान ने पहलगाम में आतंकवादी हमले के रूप में जलाकर फेंकी है, उससे लगी आग में पाकिस्तान खुद भी जलकर नष्ट न हो ले.

यहां इस संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता ह कि जिस तरह पाकिस्तानी हुकूमत अपनी ही फौज और खुफिया एजेंसी आईएसआई से जूझ रही है. जिस तरह से उसके कई अपने ही राज्य हाथ धोकर पाकिस्तान के पीछे पड़े हैं. बढ़ते हुए दबाव के चलते उन सबका (आजादी मांग रहे राज्यों) ध्यान बांटने के लिए पाकिस्तानी हुकूमत या वहां की फौज और खुफिया एजेंसी ने ही, यह चाल चली हो कि भारत के कब्जे वाले (पहलगाम) इलाके में कहीं जबरदस्त आतंकवादी हमला करवा डाला जाए, तो अपनों को और बाहर वालों का (दुनिया के बाकी देशों का) ध्यान उस आतंकवादी घटना की ओर चला जाएगा. और कुछ वक्त के लिए ही सही पाकिस्तानी फौज, हुकूमत और आईएसआई अपनी जान से सुरक्षित कर सकेगी.

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