20 साल बाद उद्धव और राज ठाकरे आए साथ, महाराष्ट्र की सियासत में क्या हैं इस 'भाईचारे' के मायने?
करीब 20 साल बाद उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे फिर से एक ही सियासी प्लेटफॉर्म पर आ गए. दोनों का साथ आना महाराष्ट्र और मराठा राजनीति के लिए बड़े संकेत है. ऐसा इसलिए कि हाल ही में नगर परिषदों और पंचायतों के चुनाव में शिवसेना को करारी हार का सामना करना पड़ा है. आने वाले दिनों में बीएमसी (BMC) का चुनाव होना है. ऐसे में दोनों भाइयों के बीच ‘भाईचारा’ सिर्फ भावनात्मक नहीं, बल्कि मराठी अस्मिता, शहरी वोट बैंक और बीएमसी समेत 29 नगर निगम चुनावों की दिशा बदलने वाला भी साबित हो सकता है.;
महाराष्ट्र की राजनीति एक बार नया मोड़ लेती दिखाई दे रही है. ऐसा इसलिए कि एक बार फिर ठाकरे बंधु एक मंच पर आ गए हैं. ठाकरे परिवार का रिश्ता हमेशा से भावनाओं, मतभेदों और सत्ता-समीकरणों के इर्द-गिर्द घूमता रहा है. साल 2005 के बाद पहली बार उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे का सार्वजनिक रूप से एक मंच पर आना, महज पारिवारिक मेल-मिलाप नहीं है. महाराष्ट्र में यह एक बड़ा सियासी संकेत है. ऐसे समय में जब शिवसेना दो धड़ों में बंटी है, बीजेपी शहरी महाराष्ट्र में आक्रामक है और कांग्रेस–एनसीपी अपने आधार को बचाने में जुटी हैं. तब यह ‘भाईचारा’ मराठी राजनीति को फिर से केंद्र में ला सकता है. हालांकि, 286 नगर निकायों और पंचायतों में संपन्न चुनाव शिवसेना यूबीटी (UBT) के लिए चौंकाने वाले रहे हैं. ऐसे में यह सवाल स्वाभाविक है - क्या यह गठजोड़ मराठी वोटों का बिखराव रोकेगा? क्या इसका सीधा असर बीएमसी जैसे शिवसेना के शहरी किलों पर पड़ेगा? दूसरी तरफ बीजेपी के नेताओं का कहना है कि निगम चुनावों में भी ठाकरे भाइयों को करारा जवाब मिलेगा. इस बार वो बीएमसी का किला भी नहीं बचा पाएंगे.
‘भाईचारे’ के सियासी मायने क्या?
- मराठा राजनीति में उद्धव–राज का साथ आना मराठी पहचान को फिर से फ्रंटलाइन पर लाता है. शहरी महाराष्ट्र] खासकर मुंबई, ठाणे, पुणे में यह मुद्दा लंबे समय से बिखरा रहा है. साझा मंच से यह संदेश गया कि मराठी एजेंडा बंटा नहीं, बल्कि संगठित हो सकता है.
- अभी तक शिवसेना यूबीटी और मनसे अलग-अलग लड़कर मराठी वोटरों को बांटते रहे है. साथ आने से वोट ट्रांसफर की संभावना बढ़ सकती है, जो सीधे तौर पर बीजेपी और कांग्रेस–एनसीपी के गणित को प्रभावित करेगी.
- महंगाई, बुनियादी सुविधाएं, ट्रैफिक, हाउसिंग मुद्दों पर मराठी अस्मिता का फ्रेम जुड़ते ही शहरी मतदाता का झुकाव बदल सकता है.
BMC समेत 29 निगम चुनावों पर कितना पड़ेगा असर?
उद्धव और राज के एक मंच पर आने से मराठी वोटों का ध्रुवीकरण हो सकता है. तय है इसका फायदा उद्धव गुट की सांगठनिक पकड़ और राज ठाकरे की शहरी अपील वाले मतदाताओं को होगा.
ठाकरे परिवार की सबसे बड़ी चुनौती
- ठाकरे परिवार के सामने सबसे बड़ी चुनौती बीजेपी का मजबूत शहरी नेटवर्क और संसाधन प्लस शिवसेना शिंदे गुट का उने साथ होना है. इसके बावजूद अगर सीट-बंटवारा और साझा प्रचार प्रभावी रहा, तो बीएमसी में मुकाबला त्रिकोणीय से द्विकोणीय हो सकता है.
- चुनाव आयोग द्वारा घोषित 29 नगर निगमों में से शिवसेना की बीएमसी नगर निगम, ठाणे, कल्याण-डोंबिवली, नवी मुंबई, पुणे, पिंपरी-चिंचवड़, नासिक, औरंगाबाद में अच्छी पकड़ है. इनमें से कई पर मनसे का भी असर है. ऐसे में जहां शिवसेना की परंपरागत पकड़ है, वहां पर सीट कन्वर्जन बेहतर हो सकता है.
- शिवसेना के पक्ष में यह तब जाएगा जब ठाकरे बंधु ग्राउंड फैक्टर यानी स्थानीय नेतृत्व, उम्मीदवार चयन और गठबंधन अनुशासन को निर्णायक साबित करने में सफल होंगे.
क्या है जोखिम?
उद्धव और राज के बीच साझा फैसलों में मतभेद उभर सकते हैं. दो अलग संगठनों यानी शिवसेना यूबीट और मनसे के कार्यकर्ताओं का तालमेल चुनौती रहेगा. विपक्ष को काउंटर करने की रणनीति, बीजेपी का आक्रामक शहरी अभियान और नैरेटिव काउंटर भी दोनों के सामने सबसे बड़ी बाधा है.
तय है उद्धव–राज का साथ महाराष्ट्र की राजनीति में गेम-चेंजर बनने की क्षमता भले ही रखता है, लेकिन उसे कई बाधाओं से पार पाना होगा. खासकर शहरी निकाय चुनावों के बाद बीएमसी चुनाव उद्धव ठाकरे की शिवसेना के लिए लिटमस टेस्ट जैसा है. अगर यह भाईचारा रणनीति, अनुशासन और साझा एजेंडे के साथ मैदान में उतरा तो 20 साल बाद मराठी राजनीति की धुरी फिर से ठाकरे ब्रांड के इर्द-गिर्द घूम सकती है.
गरमाई महाराष्ट्र की राजनीति
पहले भरोसा खोया, अस्तित्व बचाने आए एक साथ - देवेंद्र फडणवीस
शिवसेना यूबीटी (UBT) और MNS गठबंधन पर महाराष्ट्र के CM देवेंद्र फडणवीस ने कहा, "वे ऐसा माहौल बना रहे हैं जैसे रूस और यूक्रेन आखिरकार साथ आ गए हों और जेलेंस्की और पुतिन आखिरकार बातचीत कर रहे हों. दो पार्टियां जो अपने अस्तित्व के संकट का सामना कर रही हैं, जिन्होंने बार-बार अपनी भूमिकाएं बदली हैं और लोगों का भरोसा खोया है, जिन्होंने तुष्टीकरण की नीति अपनाई है और अपना वोट बैंक खो दिया है, वे अपने अस्तित्व को बचाने के लिए एक साथ आए हैं. अगर वे अपने अस्तित्व को बचाने के लिए आते हैं तो वे चुनाव नहीं जीत सकते. दोनों भाइयों के पास कोई विचारधारा नहीं बची है. वे अवसरवाद की राजनीति कर रहे हैं."
उद्धव और राज ठाकरे 2006 में वैचारिक मतभेदों की वजह से अलग हो गए थे. उस समय राज ठाकरे ने महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना MNS बनाई. उनका एजेंडा आक्रामक मराठी अस्मिता और तेज बयानबाजी वाला रहा.
उद्धव ठाकरे ने अपेक्षाकृत संतुलित और गठबंधन आधारित राजनीति को चुना, खासकर 2019 के बाद कांग्रेस-एनसीपी के साथ सरकार बनाकर. इस बीच दोनों के बीच व्यक्तिगत संबंध पूरी तरह टूटे नहीं, लेकिन राजनीतिक प्रतिस्पर्धा ने दूरी बनाए रखी.
अचानक नजदीकियां क्यों बढ़ी?
महाराष्ट्र में बीजेपी की मजबूत पकड़ और शिंदे गुट के जरिए शिवसेना का विभाजन - दोनों ठाकरे नेताओं के लिए अस्तित्व का सवाल बन गया है. भाषा, रोजगार और मुंबई की पहचान जैसे मुद्दे फिर से राजनीति के केंद्र में आ गए हैं, जिस पर दोनों नेताओं का कॉमन ग्राउंड है. बीएमसी चुनाव और भविष्य के विधानसभा-लोकसभा समीकरणों में वोटों का बिखराव रोकना दोनों की मजबूरी बनती जा रही है.
क्या होगा सियासी असर
BMC शिवसेना की परंपरागत ताकत रही है. उद्धव-राज का साथ आना बीजेपी की राह सबसे मुश्किल बना सकता है. राज ठाकरे की पकड़ शहरों में है, जबकि उद्धव का नेटवर्क अर्ध-शहरी और ग्रामीण इलाकों में भी मौजूद है. यह संयोजन भौगोलिक संतुलन पैदा कर सकता है.
महाविकास अघाड़ी (MVA) के भीतर उद्धव की स्थिति मजबूत होगी. हालांकि राज ठाकरे का कांग्रेस-एनसीपी से रिश्ता अभी भी सवाल बना रहेगा. इसके बावजूद क्या यह मूल एक स्थायी सियासी प्रयोग बनेगा या चुनावी मौसम का अस्थायी मेल साबित होगा?
इसकी चर्चा आज इसलिए हो रही कि कि शिवसेना (UBT) प्रमुख उद्धव ठाकरे और MNS प्रमुख राज ठाकरे ने अपनी पत्नियों के साथ 24 दिसंबर को शिवाजी पार्क में पार्टी संस्थापक बालासाहेब ठाकरे के स्मारक पर श्रद्धांजलि दी. यह जनवरी में BMC चुनावों के लिए गठबंधन की औपचारिक घोषणा से पहले चचेरे भाइयों के एक साथ आने का प्रतीक है. UBT सेना इस गठबंधन को मराठी मानुष के लिए आवाज उठाने वाला मानती है.
शिवसेना यूबीटी और एमएनएस कार्यकर्ताओं के लिए इस घटना का मतलब है कि दोनों चचेरे भाइयों के बीच करीब 20 साल पुरानी दूरी खत्म हो गई है. कार्यकर्ताओं को उम्मीद है कि पंचायत चुनावों में मिली हार के बाद BMC चुनाव पार्टियों के लिए बेहतर खबर लाएंगे.
नगर निकाय और पंचायत चुनाव परिणाम से ठाकरे बंधु को कितना नुकसान?
हाल ही में 288 सीटों यानी 246 नगर परिषदों और 42 नगर पंचायतों पर महाराष्ट्र में चुनाव संपन्न हुए हैं. इस चुनाव में महायुति गठबंधन (NDA) को बंपर जीत हासिल हुई. 288 सीटों में से महायुति को 207 सीटों पर जीत मिली. महायुति में बीजेपी 117, एकनाथ शिंदे की शिवसेना 53 और NCP अजित को 37 सीटों पर जीत मिली. विपक्षी महा विकास अघाड़ी (MVA) गठबंधन 44 सीटों तक सीमित रहा. इसमें कांग्रेस कांग्रेस को 28, शरद पवार की NCP को केवल 7 और शिवसेना (UBT) को 9 सीटें हासिल हुईं. 32 सीटें अन्य को मिली. इस परिणाम ने शिवसेना यूबीटी और मनसे को सकते में डाल रखा है. महाराष्ट्र के सियासी जानकारों का कहना है कि निकाय चुनाव परिणाम ने दोनों को एक साथ आने को मजबूर कर दिया.
प्यार के लिए नहीं, स्वार्थ के लिए आए साथ - नवनीत राणा
अमरावती से पूर्व सांसद और बीजेपी नेता नवनीत राणा ने ठाकरे बंधुओं के एक पर कहा, "मैं यह बताना चाहती हूं कि जिस तरह उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे आज एक परिवार के तौर पर साथ आ रहे हैं, वह ऊपर से देखने में अच्छा लग सकता है, जैसे दो भाई एक हो रहे हैं, लेकिन यह स्वार्थ के लिए है, प्यार या पारिवारिक स्नेह के लिए नहीं. यह गठबंधन पूरी तरह से राजनीतिक फायदे और अपना प्रभाव फिर से बनाने के लिए है. उद्धव ठाकरे की पार्टी, जिसमें कभी मुख्यमंत्री बनाने की ताकत थी, अब नगर निगम और स्थानीय निकाय चुनावों में सबसे आखिरी नंबर पर है, और बहुत कम चेयरमैन चुने गए हैं."
उद्धव-राज नहीं बचा पाएंगे BMC का किला - संजय केलकर
महाराष्ट्र के ठाणे से बीजेपी विधायक संजय केलकर का कहना है कि शिवसेना यूबीटी (UBT) और मनसे पर से महाराष्ट्र के लोगों का भरोसा टूट चुका है. उन्होंने प्रदेश की राजनीति में पिछले वर्षों में ऐसे प्रयोग किए, जो बाला साहेब के विचारों के उलट साबित हुए. यही वजह है कि महाराष्ट्र के नगर परिषद और नगर पंचायत चुनावों में प्रदेश की जनता ने दोनों भाइयों के मुंह पर तमाचा मारा है. उन्होंने कहा कि बीजेपी और महायुति में शामिल दल बीएमसी सहित 29 नगर निगमों के प्रस्तावित चुनाव में ऐतिहासिक प्रदर्शन करेगी. इस बार बीएमसी में शिवसेना का किला ध्वस्त होना तय है. वो लोग अपने किले को बचाने की जद्दोजहद में जुटे हैं, लेकिन वैसा होगा नहीं, जैसा वो चाहते हैं.
बीएमसी समेत 29 निगमों के लिए 16 जनवरी को डाले जाएंगे वोट
महाराष्ट्र राज्य चुनाव आयोग ने पूरे राज्य में 29 नगर निगमों के चुनाव की घोषणा की है, जिसमें बृहन्मुंबई नगर निगम (BMC), पुणे नगर निगम (PMC) और पिंपरी-चिंचवड़ नगर निगम (PCMC) शामिल हैं. बीएमसी सहित सभी नगर निगमों के लिए वोटिंग 15 जनवरी को होगी और वोटों की गिनती 16 जनवरी को होगी.