SIR को लेकर ममता का हमला! EC को फिर लिखी चिट्ठी, आवासीय परिसरों में पोलिंग स्टेशनों पर उठाए सवाल

SIR प्रक्रिया को लेकर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने चुनाव आयोग को सोमवार को फिर एक चिट्ठी लिखी है. उन्होंने आवासीय परिसरों में पोलिंग स्टेशन बनाने, BLO की नियुक्ति और सत्यापन प्रक्रिया पर गंभीर सवाल उठाए हैं. मुख्य चुनाव आयुक्त से तत्काल हस्तक्षेप की मांग की है. जानें क्या है पूरा मामला?;

( Image Source:  ANI )
Edited By :  धीरेंद्र कुमार मिश्रा
Updated On : 24 Nov 2025 6:27 PM IST

Special Intensive Revision (SIR): एसआईआर को लेकर पश्चिम बंगाल में विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने चुनाव आयोग को दूसरी बार चिट्ठी लिखते हुए कई बड़े फैसलों पर कड़ा ऐतराज़ जताया है. उन्होंने चिट्ठी मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार को लिखी है. आरोप लगाया कि SIR के नाम पर मतदाताओं को परेशान किया जा रहा है. आवासीय परिसरों में पोलिंग स्टेशन बनाने जैसे कदम बेहद संदिग्ध हैं. ममता ने इसे लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को गंभीर उल्लंघन करार दिया है. साथ ही EC (चुनाव आयोग) से तत्काल हस्तक्षेप की मांग की है.

आवासीय परिसरों पोलिंग स्टेशन क्यों?

सीएम ममता बनर्जी ने ईसी को लिखी चिट्ठी के जरिए आवासीय परिसरों में पोलिंग स्टेशन बनाने पर गंभीर आपत्ति जताई है. उन्होंने कहा है कि रिहायशी परिसरों में सुरक्षा व्यवस्था संदिग्ध रहती है. पोलिंग बूथ निजी प्रबंधन पर निर्भर हो जाते हैं, जो चुनाव प्रक्रिया को प्रभावित कर सकते हैं. इससे राजनीतिक दलों के एजेंट और आम मतदाता दोनों को असुविधा होती है. बूथ कैप्चरिंग का जोखिम बढ़ता है. इसके असर को दूरगामी बताते हुए, उन्होंने चेतावनी दी, "ऐसे फैसले के असर का चुनावी प्रक्रिया की निष्पक्षता पर गंभीर असर पड़ेगा."

उन्होंने राज्य चुनाव आयोग के मुख्य अधिकारी द्वारा डाटा एंट्री के काम को आउटसोर्स करने और प्राइवेट हाउसिंग में पोलिंग बूथ बनाने के प्रपोजल पर भी सवाल उठाए हैं. उन्होंने डाटा कर्मचारियों को आउटसोर्स करने के लिए चीफ इलेक्टोरल ऑफिसर (CEO) द्वारा जारी एक सेंट्रलाइज्ड रिक्वेस्ट फॉर प्रपोजल पर सवाल उठाया.

अपने लेटर में बनर्जी ने मुख्य चुनाव आयुक्त से कहा, "मैं आपको दो परेशान करने वाली लेकिन जरूरी घटनाओं के बारे में लिखने के लिए मजबूर हूं, जो मेरे ध्यान में लाई गई हैं, और जो, मेरे विचार से, आपके तुरंत दखल की ज़रूरत हैं" उनका पहला एतराज CEO, पश्चिम बंगाल के "संदिग्ध RfP" से जुड़ा है.

डाटा एंट्री ऑपरेटर्स बाहर से रखने की जरूरत क्यों?

हाल ही में यह बात सामने आई है कि CEO पश्चिम बंगाल ने डिस्ट्रिक्ट इलेक्शन ऑफिसर्स (DEOS) को SIR से जुड़े या चुनाव से जुड़े दूसरे डेटा के काम के लिए कॉन्ट्रैक्ट पर डेटा एंट्री ऑपरेटर्स और बांग्ला सहायता केंद्र (BSK) के स्टाफ को काम पर न रखने का निर्देश दिया है. साथ ही, CEO के ऑफिस ने एक साल के लिए 1,000 डेटा एंट्री ऑपरेटर्स और 50 सॉफ्टवेयर डेवलपर्स को हायर करने के लिए एक रिक्वेस्ट फॉर प्रपोजल (RFP) जारी किया है.

उन्होंने तर्क दिया कि डिस्ट्रिक्ट ऑफिसों में पहले से ही काफी क्वालिफाइड स्टाफ है और उन्हें अपना इंतजाम करने का अधिकार है. ऐसे में किसी बाहरी एजेंसी से स्टाफ आउटसोर्स करने की क्या जरूरत है? अगर अर्जेंट जरूरत है तो DEOs को खुद ऐसी हायरिंग करने का पूरा अधिकार है. तो फिर, CEO का फील्ड ऑफिस की तरफ से यह रोल क्यों ले रहा है? क्या यह काम किसी पॉलिटिकल पार्टी के कहने पर अपने फायदे के लिए किया जा रहा है?

निष्पक्ष जांच की अपील

सीएम ममता बनर्जी ने मुख्य चुनाव आयुक्त से इन मुद्दों को पूरी गंभीरता, निष्पक्षता और पारदर्शिता के साथ जांचने की अपील है. यह जरूरी है कि कमीशन की गरिमा, निष्पक्षता और विश्वसनीयता पर कोई आंच न आए और किसी भी हालत में इससे समझौता न हो.

अब तक 17 की मौत

Special Intensive Revision (SIR) को लेकर पश्चिम बंगाल में विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है. देश के 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में चल रहे स्पेशल इंटेंसिव रिविजन (SIR) अभियान के बीच बूथ लेवल अफसरों (बीएलओ) की मौतें चिंता का कारण बन गई है. अभी तक इस प्रक्रिया में 17 लोगों की मौत हुई है. पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरल, राजस्थान में एसआईआर को लेकर स्थित गंभीर बनी हुई है. जबकि मध्य प्रदेश, गोवा, गुजरात, छत्तीसगढ़, पुडुचेरी, अंडमान और निकोबार और लक्षद्वीप विरोध की खबरें उतनी जो शोर से मीडिया में नहीं हैं जितनी बंगाल, तमिलनाडु, केरल और राजस्थान में हैं, लेकिन यह जरूरी हिस्सा है SIR की राष्ट्रीय प्रक्रिया का.

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