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मोहनजोदड़ो, हड़प्पा, कालीबंगा और लोथल... किसी 'अजूबे' से कम नहीं सिंधु धाटी सभ्यता का इतिहास, जानें क्यों हुआ इसका पतन

मोहनजोदड़ो, हड़प्पा, कालीबंगा और लोथल जैसे शहरों वाली सिंधु घाटी सभ्यता अपनी उन्नत नगर योजना, जल प्रबंधन और व्यापार प्रणाली के लिए मशहूर थी. सिंधु घाटी सभ्यता का एक नाम सरस्वती सभ्यता भी है. जानें इसका उदय कैसे हुआ और पतन के पीछे कौन-कौन से प्रमुख कारण जिम्मेदार थे.

मोहनजोदड़ो, हड़प्पा, कालीबंगा और लोथल... किसी अजूबे से कम नहीं सिंधु धाटी सभ्यता का इतिहास, जानें क्यों हुआ इसका पतन
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सिंधु घाटी सभ्यता और उसके पतन का इतिहास आज भी एक रहस्मयी कहानी है. एक ऐसी कहानी जिसके इतिहास को लेकर आज भी सामने आने का काम बाकी है. इसके बारे में भी कहानियां पुरातत्विक खोजों और उससे मिले तथ्य व कार्बन ​डेटिंग पर आधारित हैं. इसमें मोहनजोदड़ो के विशाल स्नानागार, हड़प्पा के नगर नियोजन, कालीबंगा और लोथल में मिले जुते खेतों और अग्निकुंडों जैसे कई पहलू शामिल हैं.

सिंधु घाटी सभ्यता का इतिहास सिटी कल्चर और कृषि पर आधारित अर्थव्यवस्था, तत्कालीन स्थापत्य कला, नगर नियोजन चौंकाने वाली व्यवस्था से जुड़ी है. ऐसा इसलिए कि जिस मानव सभ्यता को लेकर आज का इंसान इतराता नजर आ रहा है, उसका अस्तित्व इससे भी पहले भी सिंधु घाटी सभ्यता दौरान प्रचलन में थे, जो मानव सभ्यता के विकास क्रम में काल के गर्त में समा गए या सिंधु नदी की तलहट्टियों में आज भी छुपे हुए हैं. यही वजह है कि सिंधु की सभ्यता को लेकर इतिहासकारों और पुरातत्वविद आज भी शोध में जुटे है.

यह मामला एक बार फिर उस समय चर्चा आया जब रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने सिंधु को लेकर यह बयान दे दिया कि कल ये फिर से हिन्दुस्तान का हिस्सा हो सकता है. हड़प्पा सभ्यता और रक्षा मंत्री के बयान को लेकर दिल्ली विश्वविद्यालय के आत्मा राम सनातन धर्म कॉलेज में इतिहास के प्रोफेसर डॉ. अजीत कुमार का कहना है कि सिंघु घाटी या हड़प्पा या इंडस वैली ​सिविलाइजेशन में कई रहस्य छुपे हैं. इसे पूरी तरह से सामने लाना आज भी एक दुरुह कार्य है.

शोध से मिले फैक्ट ही है असली कहानी

प्रोफेसर अजीत कुमार का कहना है कि रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह का यह बयान सिंधु सभ्यता के विस्तार, उसकी अहमियत और सांस्कृतिक पहलुओं को लेकर दिया है. तथ्यात्मक (फैक्चुअल) दृष्टि से उनका बयान पूरी तरह से सही है. ऐसा इसलिए कि इतिहास के संदर्भ में भारतीय उपमहाद्वीप मतलब एशियन और ईस्ट एशियन कंट्री से लिया जाता है. उनका बयान भी प्राचीन काल खंडों के संदर्भों में ही समझा जाना चाहिए. उन्होंने अपने बयान के जरिए सिंधु घाटी सभ्यता को फिर से स्थापित करने की कोशिश की है.

इसका एक नाम 'सरस्वती' सभ्यता भी है

उन्होंने कहा, "सिंधु घाटी सभ्यता या हड़प्पा सभ्यता प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक है. अभी के समय में इसका फैलाव विस्तृत तौर पर भारत, पाकिस्तान और अफगानिस्तान जो कि प्राचीन काल में भारतीय महाद्वीप कहलाता है का हिस्सा रहा है. अभी तीनों ही देशों में इसका विस्तार और इतिहास पूर्ण रूप से इसकी लिपि नहीं पढ़े जाने के कारण नहीं हो पाया है. बाद के इतिहासकारों ने इसे सरस्वती सभ्यता का भी नाम दिया है."

भारतीय लेखकों में हिस्टोरियन उपेंद्र सिंह की पुस्तक 'अ अर्ली एंड मिडिएवल हिस्ट्री' और प्राचीन इतिहास के चर्चित प्रोफेसर डी. एन. झा का 'प्राचीन इतिहास' है, जो हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषा में उपलबध है. इसे दुनिया भर के अकादमिक संस्थानों में पढ़ाया जाता है.

सिंधु घाटी सभ्यता का अंत जलवायु परिवर्तन और बार-बार हुए भयंकर भूकंप की वजह से हुआ. बाद में आर्यन आक्रमण ने इसके विनाश की अंतिम कथा लिख दी. कुछ इतिहासकारों का कहना है कि भूकंप, नदी के मार्ग में बदलाव और बाढ़ जैसे प्राकृतिक घटनाओं ने इस सभ्यता के पतन में अहम भूमिका निभाई.

'सिंधु से जुड़ी कोई कहानी नहीं'

प्रोफेसर अजीत कुमार कहते हैं, सिंधु घाटी सभ्यता से जुड़ी कोई कहानी नहीं है. इसकी चर्चा उस समय शुरू हुई जब ब्रिटिश राज के दौरान 1856 में लाहौर से करांची तक रेल तत्कालीन सरकार ने रेल लाइन के निर्माण का काम शुरू किया. तब कुछ मजदूरों को यह पता नहीं चला रेल लाइन बिछाने के दौरन सूखी जमीन के नीचे से जो पकी हुई ईंटें निकलीं ,जिसका इस्तेमाल पटरी बिछाने के दौरान पुल निर्माण व अन्य कार्यों के लिए किया वेा और कुछ नहीं बल्कि प्राचीन हड़पा के अवशेष थे.

ऐसे हुआ सिंधु घाटी सभ्यता का खुलासा

इसके बाद 1920 के पुरातात्विक खुदाई हुई तो तब इस प्रचीन सभ्यता के बारे में दुनिया को पता चला. पहले पुरातत्वविदों ने र्मौर्य साम्राज्य का अवशेष माना. जब इसकी खुदाई आगे बढ़ी तो असली सच्चाई सामने आई. खुदाई और शोध अध्ययनों से पता चला कि यह तो सिंघु घाटी सभ्यता के हड़पा और मोहनजोदड़ो शहर का हिस्सा है. ये शहर सिंधु नदी के किनारे बसे थे. खोज से इस बात का खुलासा हुआ कि भारतीय उपमहाद्वीप में विकसित ये शहर 'अद्वितीय सभ्यता' का हिस्सा है. एक ऐसी जो शिल्पकला, स्थापत्य कला और विज्ञान के तथ्याों पर आधारित थी. यही वजह है कि इसे अद्वितीय माना लिया गया.

बाद में इसे सिंधु घाटी सभ्यता या हड़प्पा सभ्यता नाम दिया गया. एक साल पहले ही भारत सरकान 20 सितंबर 1924 के दिन को इसे शताब्दी वर्ष के रूप मनाया था. सिंधु घाटी सभ्यता भारत, पाकिस्तान और अफगानिस्तान व उसके आसपास ​के हिस्सों तक फैली थी.

दरअसल, सिंधु घाटी सभ्यता भारत के साथ विश्व की सबसे प्राचीन सभ्यताओं में से एक है. सिंधु घाटी सभ्यता को लेकर विगत 100 वर्षों में भारतीय इतिहास और पुरातत्व में अभूतपूर्व रुचि और शोध हुए. वैज्ञानिक खुदाई, नवीनतम तकनीकों (जैसे कार्बन डेटिंग), और अंतरराष्ट्रीय शोध सहयोग ने सभ्यता की इस समझ को और मजबूत किया. इस दौरान मिले पुरातात्विक खोजों ने भारतीय उपमहाद्वीप की प्राचीन समृद्धि और सामाजिक, सांस्कृतिक विविधता को उजागर किया है.

सिंधु धाटी से जुड़े अहम पहलू

हड़प्पा: यह सभ्यता के सबसे पुराने खोजे गए शहरों में से एक है और इसी के नाम पर इसे हड़प्पा सभ्यता भी कहा जाता है.

मोहनजोदड़ो: यहां से मिले विशाल स्नानागार (Great Bath) और एक नर्तकी की कांस्य प्रतिमा सभ्यता की कला और वास्तुकला को दर्शाती है. यहां से मिले अन्नागार शायद सैंधव सभ्यता की सबसे बड़ी इमारतें थीं.

कालीबंगा और लोथल: इन दोनों स्थानों पर जुते हुए खेत और नक्काशीदार ईंटों के प्रयोग के साक्ष्य मिले हैं. लोथल से एक बंदरगाह भी मिला है.

धार्मिक जीवन: मोहनजोदड़ो से मिली मुहर पर एक तीन मुख वाले देवता की मूर्ति पाई गई है, जिसके चारों ओर हाथी, गैंडा, चीता और भैंसा हैं. इसके अलावा, हड़प्पा की मोहरों पर एक ऋृंगी (एक सींग वाला) पशु का अंकन मिलता है. कुछ विद्वानों का मानना है कि यह मूर्ति 'पशुपति' की हो सकती है.

कृषि और व्यापार: यह सभ्यता उन्नत कृषि और व्यापक व्यापार नेटवर्क पर फली-फूली. लोथल और सुतकोतदा जैसे बंदरगाहों से व्यापार होता था. लोथल और चन्हूदड़ों में मनके बनाने के कारखाने मिले हैं.

समाज: खुदाई से प्राप्त अवशेष बताते हैं कि सिंधु घाटी सभ्यता के लोग पक्के मकानों में रहते थे और उनका सोच अत्यंत विकसित था.

पतन से जुड़ी कहानी

सिंधु घाटी सभ्यता का इतिहास एक प्राचीन शहरी सभ्यता के विकास, उसके उन्नत शहरी नियोजन और फिर धीरे-धीरे उसके पतन की कहानी से जुड़ा है. यह सभ्यता लगभग 3300 ईसा पूर्व से 1300 ईसा पूर्व तक अस्तित्व में थी. मुख्य रूप से सिंधु नदी और उसकी सहायक नदियों के किनारे विकसित हुई, इसलिए इसका नाम सिंधु घाटी सभ्यता पड़ा. इसकी खोज 20वीं सदी के तीसरे दशक में पुरातत्वविदों द्वारा की गई, जब उन्होंने हड़प्पा (पंजाब) और मोहनजोदड़ो (सिंध) जैसे शहरों के खंडहरों का उत्खनन किया.

विकास और विस्तार

यह सभ्यता कांस्य युग की थी और प्राचीन मिस्र व मेसोपोटामिया के साथ-साथ दुनिया की तीन सबसे पुरानी सभ्यताओं में से एक थी. यह अपने समय की बहुत उन्नत सभ्यता थी, जिसमें परिष्कृत शहरी योजना, मजबूत जल आपूर्ति और निकासी प्रणालियां और एक शुरुआती लेखन प्रणाली थी.

जेम्स लुईस ने शुरू की थी खोज

खोज: इसकी कहानी 1829 में शुरू हुई जब जेम्स लुईस (चार्ल्स मेसन) ने हड़प्पा के खंडहरों की खोज की. हालांकि शुरुआत में इसे महत्व नहीं दिया गया। बाद में, 1920 के दशक में, पुरातत्वविदों ने इस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर खुदाई की और एक पूरी शहरी संस्कृति को उजागर किया.

पतन

लगभग 1800 ईसा पूर्व तक, सभ्यता का पतन होने लगा. इसके कई कारण माने जाते हैं, जिनमें जलवायु परिवर्तन और नदी प्रणालियों में बदलाव प्रमुख हैं. शहरों की उन्नत जल निकासी व्यवस्था और स्नानघरों को नुकसान पहुंचा और लेखन लुप्त होने लगा. विद्वानों ने अन्य सिद्धांतों में आर्यन आक्रमण को भी एक कारण माना, लेकिन जलवायु परिवर्तन को अधिक संभावना माना जाता है.

अस्तित्व

सभ्यता के दो प्रमुख शहर हड़प्पा और मोहनजोदड़ो, धीरे-धीरे लुप्त हो गए, लेकिन उनकी विरासत आज भी हमें उनके पुरातात्विक अवशेषों के रूप में मिलती है. आज, उनके द्वारा छोड़े गए कई स्थल जैसे कालीबंगा (राजस्थान) में खुदाई के दौरान मिली, जो दुनिया के पहले जुते हुए खेतों में से एक है.

राजनाथ सिंह ने क्या कहा?

केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने एक कार्यक्रम में कहा, 'सीमाएं बदल सकती हैं. उन्होंने यह भी जोड़ा कि आज सिंध भले ही भारत में न हो, लेकिन सभ्यता के दृष्टिकोण से यह भारत का हिस्सा रहा है. हो सकता है कि कल को सिंध फिर से भारत में वापस आ जाए.” राजनाथ सिंह ने सिंधू (इंडस) नदी का जिक्र करते हुए उसकी सांस्कृतिक और धार्मिक दृष्टि से महत्व को रेखांकित किया और कहा कि यह नदी हिंदू-मुस्लिम दोनों समुदायों के लिए गहरी आध्यात्मिक जान देना वाली है.

पाकिस्तान का रिएक्शन

  • पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने राजनाथ सिंह के बयान की कड़ी निंदा की है, इसे 'भ्रम से भरा' और विस्तारवादी हिंदुत्व मानसिकता बताया है.
  • पाकिस्तानी पक्ष ने कहा है कि इस तरह के बयान क्षमता से परे दावे हैं और अंतरराष्ट्रीय कानूनों को चुनौती देते हैं.
  • कुछ रिपोर्ट्स में यह कहा गया है कि पाकिस्तान इस बयान को भारत की भू-राजनीतिक युद्धनीति का हिस्सा मान रहा है और यह वार्ता में तनावरहित स्थिति को बिगाड़ सकता है.
  • यह बयान भारत-पाक सुरक्षा और राजनैतिक तनाव को और तेज कर सकता है. खासकर उन इलाकों में जहाँ विभाजन की यादें अभी भी ताजा हैं.
  • राजनाथ सिंह का कथन इतिहास-सभ्यता का लिंक लगाकर सीमाओं की राजनीतिक बहस को फिर से खोलेगा. यह वापसी का दार्शनिक और प्रतीकात्मक संदेश हो सकता है, लेकिन व्यवहार में यह एक संवेदनशील मुद्दा है.
  • पाकिस्तान के लिए यह एक चेतावनी भी हो सकती है कि भारत सिर्फ सैन्य दृष्टिकोण नहीं बल्कि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दावों को भी राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल कर सकता है.
  • इस तरह के बयान दोनों देशों की जनता में राष्ट्रवाद की भावनाओं को और भड़क सकते हैं, जिससे मतभेद बढ़ सकते हैं और शांति वार्ता को कठिनाई हो सकती है.

सिंध का इतिहास

  • सिंध प्रांत आज पाकिस्तान में स्थित है और इसकी राजधानी कराची है.
  • सिंध की सभ्यता बहुत पुरानी है. यह सिंधु घाटी सभ्यता का केंद्र था, जहां मोहेंजो-दारो जैसे महान प्राचीन स्थल मिले हैं.
  • बाद में यह क्षेत्र मौर्य, ग्रीक, पार्थियन और कुषाण साम्राज्यों के अधीन आया.
  • 711 ईस्वी में अरबों ने सिंध पर अधिकार किया, जिसने यहां इस्लाम के प्रसार की शुरुआत की.
  • मुगल काल में सिंध फिर से एक महत्वपूर्ण हिस्सा बना और 1843 में ब्रिटिश हुकूमत ने सिंध पर कब्जा किया.
  • ब्रिटिश इंडिया की प्रणाली में सिंध को बाद में बॉम्बे प्रेसिडेंसी में शामिल किया गया था.
  • विभाजन (1947) के बाद यह पाकिस्तान में चला गया. बाद में 1970 में सिंध को एक अलग प्रांत का दर्जा मिला.
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