बीवी से न लो पंगा, चली जाएगी नौकरी! मद्रास हाईकोर्ट के फैसले से छिड़ी नई बहस, सरकारी और प्राइवेट कर्मचारियों पर क्‍या असर?

मद्रास हाईकोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में कहा है कि पत्नी द्वारा दर्ज मैरिटल केस में दोषी पाए जाने पर सरकारी कर्मचारी को बर्खास्त किया जा सकता है. कोर्ट ने इसे ‘दुराचरण’ मानते हुए तमिलनाडु सर्विस रूल्स के तहत वैध ठहराया. यह फैसला बताता है कि अब व्यक्तिगत विवाद भी सरकारी नौकरी पर असर डाल सकते हैं. कई राज्यों में ऐसे नियम पहले से मौजूद हैं.;

Edited By :  प्रवीण सिंह
Updated On :

सरकारी कर्मचारियों के व्यक्तिगत जीवन और उनके पेशेवर आचरण के बीच की रेखा अब और धुंधली होती जा रही है. हाल ही में मद्रास हाईकोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में कहा कि अगर कोई सरकारी कर्मचारी अपनी पत्नी द्वारा दर्ज वैवाहिक विवाद (मैरिटल डिस्प्यूट) में आपराधिक रूप से आरोपी पाया जाता है, तो उसे नौकरी से हटाया जा सकता है. इस मामले में एक डेंटल असिस्टेंट को उसकी पत्नी द्वारा दर्ज मामले में दोषी पाए जाने पर 2017 में बर्खास्त किया गया था.

कर्मचारी ने बर्खास्तगी को चुनौती दी, लेकिन हाईकोर्ट ने तमिलनाडु गवर्नमेंट सर्वेंट्स कंडक्ट रूल्स, 1973 के तहत यह कहते हुए बर्खास्तगी को सही ठहराया कि सरकारी कर्मचारी से कार्यालय के बाहर भी ईमानदार और मर्यादित आचरण की अपेक्षा की जाती है. यह फैसला न केवल सरकारी, बल्कि निजी क्षेत्र के कर्मचारियों पर भी दूरगामी प्रभाव डाल सकता है.

क्या है मामला?

तमिलनाडु के एक सरकारी कर्मचारी, जो एक सरकारी अस्पताल में डेंटल असिस्टेंट के पद पर थे, को पत्नी द्वारा दर्ज कराए गए मैरिटल केस में आरोपी पाए जाने के बाद 2017 में नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया. इसके खिलाफ उन्होंने अदालत का दरवाजा खटखटाया, लेकिन 17 जून 2025 को मद्रास हाईकोर्ट ने सरकार के पक्ष में फैसला सुनाया, और पत्नी द्वारा दर्ज मैरिटल केस को ही 'दुराचरण (misconduct)' मानते हुए बर्खास्तगी को सही ठहराया.

हाईकोर्ट का तर्क: दफ्तर के बाहर भी ईमानदारी जरूरी

मद्रास हाईकोर्ट ने कहा कि किसी सरकारी कर्मचारी से सिर्फ कार्यस्थल पर ही नहीं, बल्कि सामाजिक जीवन में भी ईमानदारी और चरित्र की उम्मीद की जाती है. कोर्ट के अनुसार, तमिलनाडु गवर्नमेंट सर्वेंट्स कंडक्ट रूल्स 1973 के तहत मैरिटल विवाद भी दुराचरण के दायरे में आता है, और इस पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की जा सकती है.

क्या कहता है नियम 19(2)?

इस मामले में जिस नियम का हवाला दिया गया वो है Rule 19(2), उसके अनुसार यदि कोई सरकारी कर्मचारी पहले से विवाहित है और दूसरी शादी करता है या पत्नी-बच्चों की जिम्मेदारी नहीं निभाता, तो यह नैतिक पतन (moral turpitude) की श्रेणी में आता है. यह बिगैमी (bigamy), दहेज, घरेलू हिंसा या उपेक्षा जैसे मामलों में भी लागू हो सकता है.

मामले की टाइमलाइन (Timeline)

  • 28 जनवरी 2013: सरकारी अस्पताल में डेंटल असिस्टेंट पद पर नियुक्ति
  • 13 जुलाई 2017: पत्नी के केस में दोषी पाए जाने पर बर्खास्तगी
  • 1 फरवरी 2018: कर्मचारी ने बर्खास्तगी को चुनौती दी, रिट कोर्ट ने उसके पक्ष में फैसला दिया
  • 17 जून 2025: हाईकोर्ट ने सरकार के फैसले को वैध ठहराया और रिट कोर्ट का आदेश रद्द किया

क्या अन्य राज्यों में भी ऐसे नियम हैं?

  • उत्तर प्रदेश, राजस्थान, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश आदि राज्यों में भी समान नियम हैं.
  • MP Civil Services Conduct Rules, 1965 में बिना सरकारी अनुमति के दूसरी शादी को सजा योग्य माना गया है.
  • Uttar Pradesh Rules (1956) के तहत भी यही प्रावधान है.
  • तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में भी पुनर्विवाह के लिए पूर्व अनुमति जरूरी है.

प्राइवेट सेक्टर में क्या होता है?

प्राइवेट कंपनियों में कोई कर्मचारी मैरिटल केस में दोषी ठहराया जाता है, तो कंपनी अपने HR नियमों के तहत डिसिप्लिनरी एक्शन ले सकती है. विशेष रूप से VP या डायरेक्टर जैसे पदों के लिए बैकग्राउंड चेक में मैरिटल रिकॉर्ड का भी महत्व होता है. हालांकि निजी जीवन में दखल देना सीमित होता है, लेकिन क्रिमिनल रिकॉर्ड या नैतिकता पर सवाल कंपनी की प्रतिष्ठा को प्रभावित कर सकते हैं.

क्या यह फैसला अंतिम है?

नहीं. इकोनॉमिक टाइम्‍स की रिपोर्ट के अनुसार यह फैसला ‘इंटरप्रेटेशन’ (व्याख्या) पर आधारित है. इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है. भारत में मैरिटल विवाद को 'दुराचरण' मानने का स्पष्ट कानून नहीं है, लेकिन यदि FIR दर्ज हो और ट्रायल शुरू हो, तो विभागीय कार्रवाई का अधिकार सरकार के पास है.

Similar News