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तहसीलदार की सैलरी से काटिए 2 लाख रुपये... बुलडोजर एक्शन पर उड़ीसा हाईकोर्ट की सख्ती

उड़ीसा हाईकोर्ट ने कटक के बालीपुर गांव में सामुदायिक केंद्र को बिना कानूनी प्रक्रिया के तोड़े जाने को 'बुलडोजर न्याय' करार दिया. कोर्ट ने तहसीलदार की सैलरी से 2 लाख रुपये वसूलने और विभागीय जांच का आदेश दिया. सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों की अनदेखी पर चिंता जताते हुए, राज्य अधिकारियों को विध्वंस प्रक्रिया की ट्रेनिंग देने को कहा गया.

तहसीलदार की सैलरी से काटिए 2 लाख रुपये... बुलडोजर एक्शन पर उड़ीसा हाईकोर्ट की सख्ती
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नवनीत कुमार
Edited By: नवनीत कुमार

Updated on: 26 Jun 2025 12:36 PM IST

ओडिशा के कटक जिले के बालीपुर मौजा गांव में एक दशकों पुरानी सामुदायिक संरचना को प्रशासन ने अचानक ध्वस्त कर दिया, जिससे गांव के निवासियों में रोष फैल गया. मामला तब और गंभीर हो गया जब सामने आया कि इस विध्वंस के खिलाफ पहले से दो उच्च न्यायालयी आदेश मौजूद थे. इसके बाद गांव वालों ने उड़ीसा उच्च न्यायालय में याचिका दायर की, जिस पर न्यायमूर्ति एस.के. पाणिग्रही की पीठ ने सुनवाई करते हुए प्रशासन के इस कृत्य को गैरकानूनी और लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ बताया.

कोर्ट ने विशेष रूप से प्रशासनिक मशीनरी द्वारा कानून को ताक पर रखकर कार्रवाई करने की प्रवृत्ति की आलोचना की. न्यायालय ने कहा कि, "जब राज्य किसी न्यायिक आदेश की प्रतीक्षा किए बिना गोपनीय तरीके से ध्वस्तीकरण करता है, तो यह विधि की प्रक्रिया को ताक पर रखता है और यह कार्य एक वैध शासन की बजाय अधिनायकवादी शैली का संकेत देता है." अदालत ने इसे “बुलडोजर न्याय” का बढ़ता और खतरनाक उदाहरण बताया.

तहसीलदार की सैलरी से वसूला जाएगा मुआवजा

कोर्ट ने अपने निर्णय में राज्य सरकार को प्रभावित ग्रामीणों को 10 लाख रुपये मुआवजा देने का आदेश दिया. लेकिन खास बात यह रही कि इस मुआवजे में से 2 लाख रुपये तहसीलदार की सैलरी से सीधे वसूले जाएंगे. कोर्ट ने कहा कि व्यक्तिगत जिम्मेदारी तय किए बिना प्रशासनिक जवाबदेही संभव नहीं है. इस फैसले से स्पष्ट है कि यदि कोई सरकारी अधिकारी कानूनी प्रक्रिया की अनदेखी करता है, तो वह व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी होगा.

कार्रवाई पर अदालत का तंज

कोर्ट ने ध्वस्तीकरण की पूरी प्रक्रिया को संदिग्ध बताया. अदालत ने टिप्पणी की कि "जिस गति और गोपनीयता के साथ यह कार्रवाई की गई, उससे यह किसी प्रशासनिक प्रक्रिया की बजाय गुप्त कार्रवाई प्रतीत होती है." कोर्ट ने यह भी कहा कि यह घटना प्रशासन की जवाबदेही और पारदर्शिता के बुनियादी सिद्धांतों के खिलाफ है और ऐसी कार्रवाइयों से लोगों का राज्य पर से विश्वास उठ सकता है.

सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की अनदेखी पर भी सवाल

अदालत ने स्पष्ट किया कि नवंबर 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने सभी प्रकार के ध्वस्तीकरण से पहले 15 दिन की पूर्व सूचना अनिवार्य कर दी थी, लेकिन इस मामले में न तो कोई नोटिस दिया गया और न ही प्रभावित लोगों को अपनी बात कहने का मौका मिला. यह न सिर्फ सुप्रीम कोर्ट की अवमानना है, बल्कि संविधान प्रदत्त नागरिक अधिकारों का भी उल्लंघन है.

राज्य अधिकारियों के विभागीय जांच के आदेश

कोर्ट ने ओडिशा के मुख्य सचिव को निर्देश दिया है कि राज्य के सभी राजस्व और नगरपालिका अधिकारियों को सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों से अवगत कराया जाए और ऐसे मामलों में कानूनी प्रक्रिया के पालन की ट्रेनिंग दी जाए. इसके अलावा, संबंधित तहसीलदार के खिलाफ विभागीय जांच शुरू करने का भी आदेश दिया गया है. इससे यह संकेत गया है कि न्यायिक अवमानना के मामलों में अब व्यक्तिगत जवाबदेही तय होगी.

सरकारी फंड से हुआ था पुनर्निर्माण

अदालती रिकॉर्ड के अनुसार, जिस सामुदायिक केंद्र को ढहाया गया, वह 1985 से अस्तित्व में था और 2016-18 में सरकार के फंड से इसका पुनर्निर्माण भी कराया गया था. ऐसे में इसे अचानक गैरकानूनी बताकर तोड़ देना न केवल अनुचित है बल्कि सरकारी धन के दुरुपयोग का मामला भी बनता है. बावजूद इसके, जुलाई 2023 में अथगढ़ उप-कलेक्टर ने इसे हटाने का आदेश दिया, जिस पर तहसीलदार ने जल्दबाज़ी में कार्रवाई कर दी.

कानून से ऊपर कोई नहीं

इस फैसले ने पूरे देश में हो रहे बुलडोजर अभियानों पर भी परोक्ष रूप से सवाल खड़े किए हैं. अदालत ने यह स्पष्ट कर दिया कि संवैधानिक संस्थाओं और लोकतंत्र में विश्वास रखने वाले देश में कानून का पालन सर्वोपरि है. प्रशासनिक शक्ति का इस्तेमाल मनमानी के लिए नहीं, बल्कि कानून के दायरे में रहकर होना चाहिए. यह आदेश प्रशासनिक जवाबदेही, संवैधानिक नैतिकता और विधि शासन की रक्षा की दिशा में एक अहम कदम माना जा रहा है.

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