''मैं अकेला बचा, लेकिन ज़िंदा रहना अब सज़ा लगती है”, बोले अहमदाबाद एयर इंडिया क्रैश के इकलौते सर्वाइवर
एयर इंडिया के उस भीषण विमान हादसे में 241 लोगों की मौत हुई थी, लेकिन उनमें से सिर्फ एक शख्स विश्वासकुमार रमेश जीवित बच पाए. अहमदाबाद से लंदन जा रही बोइंग 787 फ्लाइट के क्रैश में अपने छोटे भाई को खो चुके विश्वासकुमार अब भी शारीरिक और मानसिक आघात (PTSD) से गुजर रहे हैं. बीबीसी न्यूज से बातचीत में उन्होंने कहा कि वह खुद को “सबसे खुशकिस्मत इंसान” मानते हैं, लेकिन भीतर से पूरी तरह टूट चुके हैं. हादसे के बाद उनकी मां गहरे सदमे में हैं, जबकि वह खुद पत्नी और बेटे से बात तक नहीं कर पा रहे.;
अहमदाबाद में हुए एयर इंडिया के उस दर्दनाक विमान हादसे से सिर्फ एक ही शख्स जिंदा बचा - विश्वासकुमार रमेश. 241 यात्रियों की जान लेने वाले इस भीषण क्रैश के बाद जब वह लंदन जाने वाली फ्लाइट के मलबे से बाहर निकले, तो पूरी दुनिया उन्हें देखकर हैरान रह गई. विश्वासकुमार कहते हैं, “मैं सबसे लकी आदमी हूं, लेकिन मैं शारीरिक और मानसिक रूप से बहुत पीड़ित हूं.”
बीबीसी न्यूज से बातचीत में भावुक विश्वासकुमार रमेश ने बताया कि वह अब भी यह यकीन नहीं कर पा रहे कि वह बच गए. उन्होंने कहा, “मैं अकेला सर्वाइवर हूं. अब भी मुझे विश्वास नहीं होता. ये एक चमत्कार है. लेकिन मैंने सब कुछ खो दिया - मेरा छोटा भाई अजय, जो कुछ सीटों दूर बैठा था, उसी हादसे में मारा गया.”
‘अब मैं अकेला हूं, बात करने का मन नहीं करता’
39 वर्षीय विश्वासकुमार रमेश, जो इंग्लैंड के लीसेस्टर में रहते हैं, जून में हुए इस हादसे के बाद से पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (PTSD) से जूझ रहे हैं. उन्होंने बताया कि वे अपनी पत्नी और चार साल के बेटे से भी बात नहीं कर पा रहे. “अब मैं बस कमरे में अकेला बैठा रहता हूं. किसी से बात नहीं करना चाहता. सब कुछ खत्म हो गया है,” उन्होंने कहा.
जब हादसा हुआ, तब बोइंग 787 विमान अहमदाबाद से लंदन जा रहा था. टेकऑफ के कुछ सेकंड बाद ही विमान में आग लग गई और वह गिर गया. हादसे के तुरंत बाद सोशल मीडिया पर वायरल हुए वीडियो में दिखा कि कैसे धुएं और आग के बीच विश्वासकुमार मलबे से बाहर निकल रहे थे. हादसे में 169 भारतीय, 52 ब्रिटिश नागरिक और 19 ज़मीन पर मौजूद लोग मारे गए. यह घटना न सिर्फ भारत बल्कि पूरी दुनिया को हिला देने वाली थी.
चमत्कारिक बचाव और दर्दनाक यादें
विश्वासकुमार ने बताया कि हादसे के समय वह सीट 11A पर बैठे थे. टक्कर के बाद उन्होंने किसी तरह सीट बेल्ट खोली और धुएं से भरे विमान के फ्यूज़लाज में बने एक छेद से बाहर रेंगकर निकल आए. उन्हें गंभीर चोटें आईं - पैर, कंधे, घुटने और पीठ में अब भी दर्द बना हुआ है. “चलने में तकलीफ होती है. धीरे-धीरे चलता हूं. मेरी पत्नी अब भी मेरा सहारा बनती है,” उन्होंने कहा. हादसे के बाद अस्पताल में उनका इलाज चला, जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उनसे मिलने पहुंचे थे. डॉक्टरों ने उन्हें PTSD का मरीज बताया, लेकिन इंग्लैंड लौटने के बाद उन्हें कोई मानसिक या शारीरिक उपचार नहीं मिला.
‘हर दिन दर्दनाक है’
बीबीसी को दिए इंटरव्यू में विश्वासकुमार बोले, “मेरे लिए ये हादसा ज़िंदगी का सबसे बड़ा मोड़ है. शारीरिक और मानसिक रूप से टूट चुका हूं. मेरी मां पिछले चार महीनों से हर दिन घर के दरवाजे पर बैठी रहती हैं, किसी से बात नहीं करतीं. पूरी फैमिली बिखर गई है.” उनके साथ मौजूद कम्युनिटी लीडर संजय पटेल और प्रवक्ता रैड सीगर ने बताया कि विश्वासकुमार अब भी हादसे की यादों में खोए रहते हैं और उनसे बात करना बेहद मुश्किल है. कई बार इंटरव्यू के दौरान वे भावनाओं में टूटकर रो पड़े.
एयर इंडिया से नाराज़गी और जवाब की मांग
विश्वासकुमार के परिजनों ने एयर इंडिया पर लापरवाही का आरोप लगाया है. उनका कहना है कि एयरलाइन ने अभी तक ठीक से उनका हाल तक नहीं पूछा. “जो लोग इस त्रासदी के जिम्मेदार हैं, उन्हें यहां आकर पीड़ितों से मिलना चाहिए, उनकी ज़रूरतें समझनी चाहिए,” पटेल ने कहा. एयर इंडिया ने विश्वासकुमार को £21,500 (करीब ₹22 लाख) का अंतरिम मुआवजा दिया है, लेकिन उनके प्रतिनिधि कहते हैं कि यह रकम उनकी जरूरतों के मुकाबले बहुत कम है. हादसे से पहले विश्वासकुमार और उनका भाई अजय दमन-दीव में फिशिंग बिजनेस चलाते थे, जो अब पूरी तरह बर्बाद हो गया है. परिवार के प्रवक्ता रैड सीगर ने कहा, “हमने एयर इंडिया को तीन बार मीटिंग के लिए आमंत्रित किया, लेकिन हर बार हमें नज़रअंदाज़ किया गया. ये शर्मनाक है कि आज हमें मीडिया के ज़रिए अपनी बात रखनी पड़ रही है.”
एयर इंडिया का बयान
एयर इंडिया, जो अब टाटा ग्रुप के स्वामित्व में है, ने एक बयान जारी कर कहा, “कंपनी के वरिष्ठ अधिकारी पीड़ित परिवारों से मिल चुके हैं और अपनी गहरी संवेदनाएं व्यक्त की हैं. विश्वासकुमार रमेश के प्रतिनिधियों से भी मुलाकात का प्रस्ताव दिया गया है, और हमें उम्मीद है कि इस पर सकारात्मक प्रतिक्रिया मिलेगी.” कंपनी ने यह भी कहा कि उन्होंने बीबीसी इंटरव्यू से पहले ही बैठक का प्रस्ताव भेजा था. एयरलाइन का दावा है कि वह सभी प्रभावित परिवारों की मदद को अपनी “सर्वोच्च प्राथमिकता” मानती है.
लंबा सफर अभी बाकी है
विश्वासकुमार रमेश का कहना है कि उन्होंने मौत को बहुत करीब से देखा है. “मैं बच गया, लेकिन अंदर से मर चुका हूं,” उन्होंने कहा. विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसे हादसे के बाद मानसिक रिकवरी में कई साल लग सकते हैं. उनके सलाहकारों का कहना है कि विश्वासकुमार को अभी लंबी थेरेपी और आर्थिक सहायता की जरूरत है ताकि वह अपनी ज़िंदगी को दोबारा संभाल सकें. “वह खो गए हैं, टूट चुके हैं, लेकिन उनकी कहानी इंसानियत की ताकत दिखाती है,” उनके प्रवक्ता सीगर ने कहा. एयर इंडिया क्रैश के इस इकलौते सर्वाइवर की ज़िंदगी आज उम्मीद और दर्द का संगम बन चुकी है - एक तरफ चमत्कारिक बचाव की कहानी, और दूसरी तरफ खोए परिवार, टूटे सपने और न खत्म होने वाली मानसिक पीड़ा.