भारत के लिए थिएटर कमांड कितना जरूरी, जल्‍दबाजी को लेकर चेतावनी क्‍यों दे रहे वायुसेना प्रमुख?

भारत में थिएटर कमांड तीनों सेनाओं को एकीकृत कर सीमा पर तेजी से और प्रभावी कार्रवाई सुनिश्चित करने का मॉडल है. CDS जनरल अनिल चौहान इसे 'दो मोर्चों की युद्ध तैयारी' के लिए आवश्यक मानते हैं, जबकि एयरफोर्स प्रमुख A.P. सिंह जल्दबाजी से संभावित कमजोरियों की चेतावनी दे रहे हैं. उनका मानना है कि सीमित हवाई शक्ति का विभाजन हवाई संचालन को प्रभावित कर सकता है.;

( Image Source:  Sora AI )
Edited By :  प्रवीण सिंह
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'थिएटर कमांड' - रक्षा क्षेत्र में यह चार अक्षरों का बदलाव भारत के सैन्य संगठन में संभावित एक क्रांतिकारी बदलाव की ओर इशारा करता है. मौजूदा समय में भारतीय सेना, नौसेना और वायुसेना अलग-अलग कमांड ढांचे के तहत काम करती हैं, जिससे सामरिक सरलीकरण और आपसी तालमेल में चुनौतियां आती हैं. इसी आवश्यकता ने थिएटर कमांड की अवधारणा को जन्म दिया.

इस संदर्भ में, वर्तमान CDS जनरल अनिल चौहान का कहना है कि तीनों सेनाओं को एकीकृत संरचना में जोड़ना देश की युद्ध क्षमताओं को गुणात्मक रूप से बढ़ाएगा. इसके लिए Inter-Services Organisations (Command, Control and Discipline) Act, 2023 पारित किया गया और इसके अंतर्गत नए नियमों की अधिसूचना जारी कर दी गई है.

लेकिन, भारतीय वायुसेना के प्रमुख, एयर चीफ मार्शल A.P. सिंह ने इस जल्‍दबाजी पर सवाल उठाया है. सिंह ने चीन और अमेरिका जैसे मॉडलों की नक़ल से बचने की सलाह दी और कहा कि ऑपरेशन सिंदूर के उदाहरण से ज्ञात होता है कि वर्तमान कार्यप्रणालियों से ही सफल संचालन संभव है.

थिएटर कमांड क्या है?

थिएटर कमांड का मतलब है एक ऐसा साझा कमांड ढांचा जिसमें तीनों सेनाओं (आर्मी, नेवी, एयरफोर्स) को एक ही छतरी के नीचे लाकर, एक ही कमांडर के नेतृत्व में किसी खास क्षेत्र में काम करना. उदाहरण के लिए, यदि उत्तरी सीमा पर चीन के साथ संघर्ष होता है तो वहां की थिएटर कमांड में आर्मी की ग्राउंड फोर्स, वायुसेना की एयर डिफेंस और नेवी की जरूरत पड़ने वाली यूनिट्स सभी मिलकर ऑपरेशन करेंगी. इस मॉडल को अमेरिका, चीन और रूस पहले ही लागू कर चुके हैं और उन्हें तेजी से निर्णय लेने और संसाधनों के सही इस्तेमाल का फायदा मिला है.

भारत में थिएटर कमांड की जरूरत क्यों?

भारत के सामने एक साथ पश्चिम में पाकिस्तान और उत्तर में चीन जैसी दोहरी चुनौती है. मौजूदा ढांचे में आर्मी, नेवी और एयरफोर्स के अलग-अलग कमांड हैं और उनके बीच अक्सर समन्वय में समय लगता है. थिएटर कमांड लागू होने से एकीकृत रणनीति बनेगी और दुश्मन की किसी भी अचानक कार्रवाई का तुरंत जवाब दिया जा सकेगा. रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि यह भारत की 'दो मोर्चों पर युद्ध' की तैयारी को और मजबूत करेगा.

वायुसेना की चिंता क्या है?

एयरफोर्स प्रमुख ने साफ कहा है कि, भारत की वायुसेना सिर्फ आर्मी को सपोर्ट करने वाली ताकत नहीं है, बल्कि एक स्वतंत्र और निर्णायक युद्ध शक्ति है. वायुसेना के पास सीमित संख्या में फाइटर जेट और स्क्वाड्रन हैं. अगर उन्हें कई थिएटर कमांड में बांट दिया गया तो प्रभावी हवाई शक्ति घट जाएगी. एयरफोर्स चाहती है कि थिएटर कमांड बनाते समय एयर पावर को पूरे देश के लिए केंद्रीकृत रखा जाए, न कि क्षेत्रीय स्तर पर बंटा हुआ.

राजनीति और रणनीति का पहलू

केंद्र सरकार इस प्रोजेक्ट को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और तत्कालीन चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) जनरल बिपिन रावत के विज़न के रूप में आगे बढ़ा रही है. वर्तमान CDS जनरल अनिल चौहान इस पर काम कर रहे हैं, लेकिन वायुसेना के कड़े रुख के कारण बातचीत का दौर जारी है. विशेषज्ञों का कहना है कि जल्दबाजी में लागू किया गया मॉडल सेना की ताकत बढ़ाने की बजाय उलझनें पैदा कर सकता है.

भविष्य की दिशा

भारत के लिए थिएटर कमांड का मतलब है - तेजी से फैसले लेना, तीनों सेनाओं का अधिकतम तालमेल और सीमाओं पर युद्ध की स्थिति में मजबूत जवाब. लेकिन यह तभी संभव है जब सभी सेनाओं की चिंताओं को संतुलित किया जाए और एक भारतीय मॉडल बनाया जाए, न कि किसी दूसरे देश की कॉपी.

थिएटर कमांड भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति का अहम हिस्सा बन सकता है. लेकिन एयरफोर्स प्रमुख की चेतावनी यह याद दिलाती है कि सुधार का मतलब जल्दबाजी नहीं है. यदि सरकार और सेनाएं मिलकर संतुलित ढांचा तैयार करती हैं, तो भारत की रक्षा क्षमता आने वाले दशकों के लिए और भी ज्यादा मजबूत हो जाएगी.

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