‘घर की चिंता छोड़ो, देश की रक्षा करो’, सैनिकों के लिए अनोखी न्यायिक योजना; ऑपरेशन सिंदूर से निकली नई सोच
भारतीय सैनिकों और उनके परिवारों के लिए ऐतिहासिक पहल के तहत NALSA वीर परिवार सहायता योजना 2025 शुरू की गई है. इस योजना का उद्देश्य सैनिकों को कानूनी बोझ से मुक्त करना है ताकि वे देश की सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित कर सकें. अब सीमा पर तैनात जवानों के पारिवारिक कानूनी मामलों की लड़ाई अदालतों में NALSA लड़ेगा. यह सहायता BSF, CRPF, ITBP जैसी अर्द्धसैनिक बलों के जवानों को भी मिलेगी। योजना का शुभारंभ न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने श्रीनगर में किया.

अब तक सैनिकों के लिए नारा था ‘देश के लिए जान न्यौछावर’, लेकिन एक सवाल हमेशा बना रहा - क्या इन जवानों की पारिवारिक समस्याओं का बोझ भी उनके कंधों पर होना चाहिए? भारत में पहली बार एक ऐसी ऐतिहासिक पहल हुई है, जो इस प्रश्न का जवाब देती है. NALSA वीर परिवार सहायता योजना 2025 नामक इस नई स्कीम के तहत, सीमा पर तैनात सैनिकों और उनके परिवारों को अब कानूनी लड़ाई अकेले नहीं लड़नी पड़ेगी. न्यायपालिका ने यह जिम्मेदारी उठाई है कि जब जवान देश की सीमाओं पर मोर्चा संभालें, तो उनके घर-परिवार से जुड़े कानूनी विवादों का बोझ न रहे.
इस स्कीम की शुरुआत श्रीनगर में न्यायमूर्ति सूर्यकांत करेंगे. यह वही न्यायमूर्ति हैं, जो जल्द ही भारत के मुख्य न्यायाधीश बनने वाले हैं. इस योजना की प्रेरणा ऑपरेशन सिंदूर के दौरान सैनिकों की वीरता और बलिदान को देखकर मिली. अब एक स्पष्ट संदेश है: “आप सीमा पर देश की रक्षा करें, हम आपके परिवार की रक्षा करेंगे.”
क्यों है यह योजना ऐतिहासिक?
अब तक भारत में सैनिकों के लिए कई आर्थिक और सामाजिक कल्याण योजनाएं आईं, लेकिन कानूनी सहायता का मुद्दा कभी प्राथमिकता में नहीं आया. यह पहल न केवल पहली बार सैनिकों की कानूनी लड़ाई लड़ने की जिम्मेदारी उठाती है, बल्कि एक भावनात्मक और संवेदनशील संदेश भी देती है - सैनिक केवल युद्ध के मैदान में नहीं लड़ते, वे परिवार के भीतर भी लड़ते हैं. प्रॉपर्टी विवाद, घरेलू हिंसा के आरोप, बच्चों की कस्टडी या जमीन-जायदाद के मामले - इन सभी ने कई जवानों की ड्यूटी को तनावपूर्ण बनाया.
NALSA का दायरा और जिम्मेदारी
राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (NALSA) अब सैनिकों और उनके परिवारों को देश के किसी भी कोने में कानूनी प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करेगा. अगर कोई जवान लद्दाख या सियाचिन में तैनात है और उसके गृह राज्य में जमीन विवाद का मामला चल रहा है, तो उसे अब छुट्टी लेकर अदालत में पेश होने की जरूरत नहीं होगी. NALSA का नेटवर्क केस को हैंडल करेगा और हर स्टेट लीगल सर्विस अथॉरिटी (SLSA) को यह जिम्मेदारी दी जाएगी.
किसे मिलेगा लाभ?
- भारतीय सेना, नौसेना और वायुसेना के जवान
- अर्धसैनिक बलों के कर्मी: BSF, CRPF, ITBP, CISF आदि
शहीदों के परिवार, रिटायर्ड सैनिक भी जरूरत पड़ने पर इस स्कीम के तहत सहायता ले सकते हैं.
ऑपरेशन सिंदूर की प्रेरणा
सूत्रों के मुताबिक, न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने यह योजना तब सोची जब उन्होंने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान जवानों की जान की बाजी लगाने वाली कहानियां सुनीं. वह यह देखकर भावुक हो गए कि देश की रक्षा करने वाले सैनिक अक्सर अपने परिवार की छोटी-छोटी कानूनी समस्याओं से परेशान रहते हैं. उन्होंने कहा था, “जब हम न्यायपालिका में बैठे हैं, तो क्यों न इस कर्तव्य को भी निभाएं कि हमारे सैनिक घर की चिंताओं से मुक्त रह सकें.”
कानूनी लड़ाई में कैसे मिलेगी मदद?
- फ्री लीगल एडवोकेट्स की नियुक्ति
- मामलों की तेजी से सुनवाई के लिए विशेष समन्वय
- जरूरत पड़ने पर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए सैनिकों के बयान
- घरेलू हिंसा, जमीन विवाद, पारिवारिक विवाद जैसे मामलों में प्राथमिकता
राष्ट्रीय सुरक्षा और सैनिकों का मनोबल
यह योजना सिर्फ कानूनी मदद नहीं, बल्कि मनोबल बढ़ाने का बड़ा कदम है. सीमावर्ती इलाकों में तैनात सैनिकों के लिए सबसे बड़ा तनाव परिवार की सुरक्षा और केस-कचहरी की जद्दोजहद होती है. इस योजना से वे बेफिक्र होकर ड्यूटी कर सकेंगे.
NALSA वीर परिवार सहायता योजना सिर्फ एक योजना नहीं, बल्कि एक भावनात्मक सुरक्षा कवच है. यह उस सोच को बदलता है कि सैनिक सिर्फ युद्धभूमि के लिए जिम्मेदार हैं.