एक ही लड़की से दो भाईयों ने शादी तो कर ली, पर इंटिमेट रिलेशन का क्या? कमरे के बाहर टोपी रखने और...
हाल ही में हिमाचल प्रदेश की खूबसूरत वादियों से दो भाइयों का महिला से शादी करने का वीडियो वायरल हुआ था. जो हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले का था जहां बहु-विवाह की प्राचीन परंपरा सदियों से चली आ रही है. लेकिन वहीं यह शादी सवालों के घेरे में आई कि आखिर एक महिला दो पतियों के साथ किसी तरह से एडजस्ट करती है खासतौर पर भावनात्मक और इंटिमेंट रिलेशन के तौर पर.;
हिमाचल प्रदेश की खूबसूरत वादियों में जहां आधुनिकता की लहर धीरे-धीरे बह रही है, वहीं कुछ प्राचीन परंपराएं अब भी अपनी जड़ों में मजबूती से टिके हुए हैं. ऐसी ही एक अनोखी और रोचक परंपरा है हिमाचल की बहुपतित्व या बहु-पति विवाह. यह प्रथा खासतौर पर हिमाचल के सीमांत जिले सिरमौर के ट्रांस-गिरि क्षेत्र और वहां की हट्टी जनजाति में आज भी जीवित है, जहां एक ही महिला दो या अधिक भाइयों से शादी करती है और सभी पतियों के साथ पारिवारिक जीवन बिताती है.
हाल ही में यह परंपरा फिर से चर्चा में आ गई जब शिलाई गांव के दो भाइयों प्रदीप और कपिल नेगी ने जनजातीय परंपराओं का पालन करते हुए सुनीता चौहान से एक साथ शादी किया। सुनीता ने खुद मीडिया से बातचीत में कहा कि यह शादी उनकी स्वेच्छा से, पारिवारिक सहमति से और गर्व के साथ हुआ. उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि उन पर किसी प्रकार का दबाव नहीं था.
परंपरा के पक्ष में है कानून
यह परंपरा केवल एक सामाजिक अभ्यास नहीं, बल्कि इसे हिमाचल प्रदेश के राजस्व कानूनों और भारतीय दंड संहिता की धारा 494 व 495 के अंतर्गत भी मान्यता प्राप्त है. इन धाराओं में एक से अधिक विवाह की स्थिति को संज्ञान में लिया जाता है, लेकिन चूंकि हट्टी जनजाति की यह परंपरा मान्य रीति-रिवाजों के अंतर्गत आती है, इसलिए इसे अपराध की श्रेणी में नहीं गिना जाता.
पीएचडी थीसिस से मिले प्रमाण
हिमाचल के पहले मुख्यमंत्री डॉ. वाई.एस. परमार ने इसी परंपरा पर अपने पीएचडी थीसस लिखी है. जिसपर उन्होंने गहन रिसर्च की है, जिसमें बताया गया है कि पत्नी को यह अधिकार होता है कि वह अपने पतियों के साथ समय का विभाजन कैसे करे. परमार ने एक दिलचस्प विवरण शेयर किया कि कभी-कभी यह बताने के लिए कि पत्नी उस रात किस भाई के साथ है, कमरे के बाहर एक टोपी या जूता रखा जाता है. लेकिन अधिकांश गरीब परिवारों के पास एक ही कमरा होता है, जहां सभी एक साथ रहते हैं. शोध में यह भी जिक्र किया गया है कि पत्नी सभी पतियों को समान प्यार और समय देती है, जिससे आपसी ईर्ष्या या कलह की संभावना बेहद कम हो जाती है.
ऐसे बैलेंस बनाती है महिलाएं
इस तरह के शादी में पत्नी न केवल संबंधों का संतुलन बनाए रखती है, बल्कि घर की घर संचालन की भी कमान अपने हाथ में रखती है जैसे रसोई, खेत, पशु और बच्चों की देखभाल उसके ज़िम्मे होते हैं. अगर कार्यभार ज़्यादा हो तो परिवार में एक और महिला को जोड़ने की अनुमति होती है, जो तब सभी भाइयों की पत्नी बन जाती है. इसका उद्देश्य श्रम विभाजन और पारिवारिक सामंजस्य को बनाए रखना है.
आज भी जीवित है यह परंपरा
हट्टी जनजाति के बुज़ुर्ग और सामाजिक प्रतिनिधि मानते हैं कि यह प्रथा अब भी लगभग 150 गांवों में प्रचलित है. हालांकि आजकल ये विवाह अधिकतर निजता के साथ, खुले मंच पर नहीं, बल्कि पारिवारिक सीमाओं के भीतर संपन्न होते हैं. कुछ लोग इस परंपरा की तुलना ‘लिव-इन रिलेशनशिप’ से करते हैं. जिसे लेकर एक स्थानीय लॉ स्टूडेंट ने पीटीआई से बातचीत में कहा, 'जब लिव-इन रिलेशनशिप को सामाजिक स्वीकृति मिल सकती है, तो सदियों पुरानी जनजातीय परंपराएं क्यों नहीं? यह सवाल आज की जनरेशन को सोचने पर मजबूर करता है कि क्या परंपरा को केवल इसलिए ठुकरा देना चाहिए क्योंकि वह ‘असामान्य’ लगती है?.
समाज के ढांचे को मजबूत बनाता यह रिवाज
दिलचस्प बात यह है कि हट्टी जनजाति को साल 2022 में अनुसूचित जनजाति (Scheduled Tribe) का दर्जा मिला. इस जनजाति के कई लोगों का मानना है कि यह पहचान उन्हें इसलिए मिली क्योंकि उनकी पारंपरिक जीवनशैली अब भी ज़िंदा है और उसका रिकॉर्ड (दस्तावेज़) भी मौजूद है. हट्टी विकास मंच के प्रवक्ता रमेश सिंग्टा ने कहा, 'बहुपति विवाह जैसी परंपराएं सिर्फ एक रीति नहीं हैं, ये हमारे समाज के ढांचे को मजबूत बनाती हैं. इसके ज़रिए परिवारों में भाईचारा बना रहता है और ज़मीन के छोटे-छोटे टुकड़े भी बंटने से बचते हैं.' इसका मतलब ये है कि एक ही पत्नी के साथ कई भाइयों के शादी करने से न सिर्फ रिश्तों में एकता बनी रहती है, बल्कि खेती की ज़मीन भी बंटती नहीं जिससे सब मिलकर घर और खेत को संभालते हैं.