किसी ने बीवी को बना दिया CM तो कोई जेल से ही चलाता रहा सरकार, लालू से लेकर केजरीवाल तक का सफर

भारत में जेल से सरकार चलाने की स्थिति ऐतिहासिक रूप से जटिल और विवादित रही है. इस स्थिति में नेताओं ने या तो सत्ता किसी और को सौंपी या प्रशासनिक नियंत्रण बनाए रखने के लिए पारंपरिक तरीके अपनाए. लेकिन नए युग में तकनीक के सहारे अरविंद केजरीवाल जैसे नेता जेल से भी प्रभावी ढंग से शासन करने का प्रयास कर रहे हैं, जो एक नया लोकतांत्रिक अध्याय खोल सकता है.;

( Image Source:  Sora AI )
Edited By :  प्रवीण सिंह
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भारत का लोकतांत्रिक ढांचा दुनिया का सबसे बड़ा और जटिल सिस्टम माना जाता है. लेकिन इस सिस्टम में कई बार ऐसी परिस्थितियां पैदा हुईं जब सत्ता में बैठे नेता जेल चले गए और फिर सवाल उठा कि क्या जेल से सरकार चलाना संभव है? क्या जनता का भरोसा ऐसे नेतृत्व पर बना रह सकता है?

इतिहास गवाह है कि कई बड़े नेता इस स्थिति से गुज़रे हैं. कुछ ने जेल में रहते हुए सत्ता किसी और को सौंप दी, तो कुछ ने परोक्ष रूप से अपनी पकड़ बनाए रखी. और आज, अरविंद केजरीवाल का मामला इस बहस को नए युग की तकनीक और कानूनी ढांचे के संदर्भ में और भी प्रासंगिक बना देता है.

भारत में जेल से सरकार चलाने के इतिहास के प्रमुख उदाहरण निम्नलिखित हैं:

अरविंद केजरीवाल: तकनीक से जेल से सरकार चलाने का प्रयास

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का मामला भारतीय लोकतांत्रिक इतिहास में सबसे चर्चित बन गया है. वे तिहाड़ जेल में बंद रहते हुए भी मुख्यमंत्री पद पर बने हुए हैं. आम आदमी पार्टी का दावा है कि केजरीवाल जेल से भी सरकार चला सकते हैं. इसके लिए वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग, डिजिटल दस्तावेज़ और आदेश जारी करने जैसे तकनीकी विकल्पों का सहारा लिया जा रहा है. हालांकि, दिल्ली के उपराज्यपाल और कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि संविधान और जेल मैन्युअल के तहत यह संभव नहीं है. लोकतंत्र में जवाबदेही और पारदर्शिता का सवाल उठता है कि क्या जनता द्वारा चुना गया नेता जेल से प्रभावी तरीके से शासन कर सकता है?

लालू प्रसाद यादव: राबड़ी देवी के ज़रिए सत्ता की पकड़

बिहार की राजनीति में लालू प्रसाद यादव का नाम करिश्माई नेताओं में गिना जाता है. 1997 में जब वे चारा घोटाले के आरोप में जेल भेजे गए, तो उनके सामने सत्ता बनाए रखने की चुनौती खड़ी हुई. लालू ने सत्ता की बागडोर अपनी पत्नी राबड़ी देवी को सौंप दी, जिन्हें मुख्यमंत्री बनाया गया. यह कदम उस दौर में अभूतपूर्व था क्योंकि राबड़ी देवी राजनीतिक अनुभव से बिल्कुल दूर थीं. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह फैसला सत्ता बचाने की रणनीति थी, जिसमें लालू ने परोक्ष रूप से सरकार को कंट्रोल करना जारी रखा. यह उदाहरण दिखाता है कि जेल में रहते हुए नेता सीधे सरकार तो नहीं चला सकते, लेकिन राजनीतिक विकल्पों के जरिए सत्ता पर पकड़ बनाए रखते हैं.

जयललिता: जेल में रहते हुए पद पर बनी रहीं

तमिलनाडु की राजनीति में जयललिता का वर्चस्व निर्विवाद रहा है. लेकिन 2014 में आय से अधिक संपत्ति मामले में उन्हें जेल जाना पड़ा. उस समय वे मुख्यमंत्री पद पर थीं और जेल में रहते हुए भी उन्होंने इस्तीफा नहीं दिया. प्रशासनिक स्तर पर सरकार के कामकाज पर असर पड़ा, लेकिन जयललिता का राजनीतिक वर्चस्व कायम रहा. बाद में उच्च न्यायालय से राहत मिलने के बाद वे सत्ता में और मजबूती से लौटीं.

हेमंत सोरेन: सत्ता का सहज हस्तांतरण

झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को 2024 में मनी लॉन्ड्रिंग केस में गिरफ्तारी का सामना करना पड़ा. गिरफ्तारी के तुरंत बाद उन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. उनकी जगह चंपई सोरेन को मुख्यमंत्री बनाया गया, जिससे सरकार के कामकाज में बाधा नहीं आई. यह एक ऐसा उदाहरण है जहां सत्ता हस्तांतरण पारदर्शी और संवैधानिक तरीके से किया गया. सोरेन का केस यह दर्शाता है कि जेल जाने के बाद सत्ता किसी विश्वसनीय सहयोगी को सौंपना एक व्यावहारिक और लोकतांत्रिक विकल्प है.

क्या बदल सकता है नया कानून?

हाल ही में पेश हुआ 130वां संविधान संशोधन विधेयक इस पूरी बहस का समाधान देता हुआ नज़र आता है. प्रावधान है कि अगर प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या मंत्री किसी ऐसे अपराध में 30 दिन से अधिक जेल में रहते हैं, जिसकी सजा 5 साल या उससे ज्यादा है, तो उन्हें स्वतः पद छोड़ना होगा. यह कानून राजनीति से अपराधीकरण रोकने और लोकतंत्र को साफ-सुथरा बनाने की दिशा में बड़ा कदम है. अगर यह कानून लागू होता है, तो न तो लालू की तरह सत्ता घरवालों को दी जा सकेगी और न ही केजरीवाल की तरह जेल से शासन चलाने की कोशिश हो सकेगी.

नया लोकतांत्रिक अध्याय

भारत में जेल से सरकार चलाने का इतिहास हमेशा विवादित और असाधारण रहा है. पुराने दौर में नेता सत्ता अपने परिजनों को सौंपते रहे, लेकिन तकनीक और डिजिटल युग ने इस पर नए सवाल खड़े कर दिए हैं. अरविंद केजरीवाल का केस इस बहस को आधुनिक संदर्भ में खड़ा करता है कि क्या लोकतंत्र में जेल से सरकार चलाना स्वीकार्य हो सकता है. हालांकि, नए संवैधानिक संशोधन से यह स्पष्ट हो जाएगा कि कानून से ऊपर कोई नहीं है, चाहे वह प्रधानमंत्री ही क्यों न हो. यह भारतीय लोकतंत्र को और मजबूत बनाएगा और जनता के विश्वास को पुनः स्थापित करेगा.

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