पराली जलाने को न बनाएं राजनीतिक मुद्दा, खुद से पूछिए - क्या आपके एक्शन प्लान से स्थिति सुधारी : प्रदूषण पर सुप्रीम कोर्ट की दो टूक

दिल्ली में गंभीर वायु प्रदूषण पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने पराली जलाने को राजनीतिक मुद्दा बनाने के खिलाफ कड़ी टिप्पणी की और कहा कि किसानों को दोष देने के बजाय उन्हें जागरूकता व आधुनिक मशीनें उपलब्ध करानी चाहिए. अदालत ने CAQM और केंद्र सरकार से पूछा कि क्या मौजूदा एक्शन प्लान ने वास्तव में हवा साफ करने में असर दिखाया है, और यदि नहीं, तो वैकल्पिक योजना तैयार की जाए. सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि सबसे बड़े प्रदूषण स्रोत की वैज्ञानिक पहचान और प्रभावी कार्रवाई अब अनिवार्य है.;

( Image Source:  sci.gov.in/ANI )
Edited By :  प्रवीण सिंह
Updated On : 1 Dec 2025 3:57 PM IST

दिल्ली में लगातार बिगड़ती वायु गुणवत्ता पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को महत्वपूर्ण टिप्पणियां करते हुए कहा कि पराली जलाने के मुद्दे को राजनीति या अहंकार से जोड़ने के बजाय वैज्ञानिक समाधान और किसानों की सहायता के नजरिए से देखा जाना चाहिए. अदालत ने साफ किया कि किसानों को दोष देना आसान है, लेकिन समाधान तभी होगा जब उन्हें जागरूकता और आधुनिक मशीनें उपलब्ध कराई जाएं.

सीजेआई सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली पीठ, जो दिल्ली प्रदूषण मामले की नियमित सुनवाई कर रही है, ने कहा कि इस मामले को मौसमी रस्म की तरह नहीं देखा जा सकता. अदालत ने टिप्पणी की कि जैसे ही सुनवाई शुरू होती है, सिस्टम सक्रिय होता दिखता है और वायु गुणवत्ता में थोड़ा सुधार आता है - यह स्थिति स्वीकार्य नहीं है.

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सीजेआई ने कमिशन फॉर एयर क्वालिटी मैनेजमेंट (CAQM) और केंद्र सरकार से कहा, “हममें से कोई भी हाथ पर हाथ धरकर नहीं बैठ सकता. यह मान लेना कि समाधान नहीं है - गलत है.” अदालत ने CAQM को निर्देश दिया कि वह अपने अब तक के प्रयासों की समीक्षा करे और शॉर्ट-टर्म व लॉन्ग-टर्म दोनों प्रकार की रिपोर्ट पेश करे. अदालत ने सवाल उठाया कि क्या लागू की गई योजनाएं वास्तव में प्रभावी साबित हुई हैं या केवल कागज़ों में ही सीमित रही हैं.

सीजेआई ने तीखे शब्दों में पूछा, “खुद से पूछिए, क्या आपके एक्शन प्लान ने स्थिति में सुधार किया है? अगर असर नहीं हुआ है तो क्या वैकल्पिक योजना पर विचार जरूरी नहीं?”

पराली पर नहीं, असली प्रदूषण स्रोतों पर ध्यान देने की जरूरत

अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने सूचित किया कि पराली जलाने, वाहन उत्सर्जन, निर्माण धूल, सड़क की धूल और बायोमास जलाने पर विस्तृत कार्ययोजना बनाई गई है. हालांकि उन्होंने भी माना, “अब चुनौती इसका वास्तविक और कड़ाई से क्रियान्वयन है.” सुप्रीम कोर्ट ने इस दौरान पराली पर एकतरफा आरोपों पर चिंता जताई. अदालत ने कहा कि किसान अदालत के सामने अपनी बात रखने में सक्षम नहीं होते और इसलिए जिम्मेदारी उन पर डाल देना बेहद सुविधाजनक हो गया है. सीजेआई ने कहा, “हम इस खेल से बचना चाहते हैं. यह आसान है कि जिसका प्रतिनिधित्व कम हो, सारा दोष उसी पर डाल दो.”

लॉकडाउन के दौरान भी जलाई गई थी पराली

अदालत ने कोविड लॉकडाउन का उदाहरण देते हुए कहा कि उस दौरान भी पराली जलाई गई थी, लेकिन फिर भी आसमान नीला था - “तो सवाल है कि सबसे बड़ा प्रदूषक क्या है? किसी को इसका जवाब देना होगा.” अदालत ने संकेत दिया कि वाहनों की आवाजाही, निर्माण गतिविधियां और औद्योगिक उत्सर्जन जैसे अन्य कारक कहीं बड़े योगदानकर्ता हो सकते हैं. केंद्र सरकार को एक सप्ताह के भीतर गैर-पराली प्रदूषण स्रोतों पर की गई कार्रवाई की विस्तृत रिपोर्ट देने का आदेश दिया गया है.

किसानों के समर्थन में अदालत की दो-टूक बात

सीजेआई सूर्यकांत ने दोहराया, “किसानों को संवेदनशील बनाने की आवश्यकता है. उन्हें मशीनें उपलब्ध कराई जानी चाहिए, न कि दोषी करार दिया जाए.” इस बीच दिल्ली हाई कोर्ट में ग्रेटर कैलाश-II वेलफेयर एसोसिएशन द्वारा दायर एक याचिका भी बड़े स्तर पर चर्चा में रही, जिसमें आरोप लगाया गया कि 21 नवंबर को विशेषज्ञों द्वारा जारी ‘खतरनाक’ श्रेणी के रेड अलर्ट के बावजूद सरकारी एजेंसियां “देरी और सतही कार्रवाई” में लिप्त रहीं.

सुप्रीम कोर्ट का स्पष्ट संदेश है कि दिल्ली प्रदूषण एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट है, जिसे राजनीतिक वाद-विवाद की जगह वैज्ञानिक और ठोस कार्ययोजना की जरूरत है. अदालत ने संकेत दिया कि इस बार केवल सलाह या चेतावनी नहीं, बल्कि कार्रवाई की समीक्षा भी नियमित रूप से होगी - और सबसे महत्वपूर्ण प्रदूषण स्रोतों की पहचान कर समाधान लागू करने की जिम्मेदारी अब टालना संभव नहीं होगा.

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