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क्‍या केवल कोविड जैसा लॉकडाउन लगाने से ही साफ होगी दिल्‍ली जैसी हवा? नई स्टडी में चौंकाने वाला दावा

एक नई स्टडी में दावा किया गया है कि दिल्ली 2040 तक हवा की गुणवत्ता को राष्ट्रीय मानक तक ला सकती है, लेकिन इसके लिए कोविड-19 लॉकडाउन जितनी सख़्त उत्सर्जन कटौती लागू करनी होगी. शोध में बताया गया है कि सभी मानवजनित स्रोतों से 55% कमी, सर्दियों में हीटिंग उत्सर्जन में 75% कमी और पराली प्रदूषण में 100% रोक जरूरी है. 2019 से 2025 तक नीतियों की घोषणा के बावजूद लागू न होने से प्रदूषण 100 µg/m³ पर स्थिर बना हुआ है.

क्‍या केवल कोविड जैसा लॉकडाउन लगाने से ही साफ होगी दिल्‍ली जैसी हवा? नई स्टडी में चौंकाने वाला दावा
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( Image Source:  ANI )
प्रवीण सिंह
Edited By: प्रवीण सिंह

Updated on: 1 Dec 2025 9:13 AM IST

दिल्ली में वायु प्रदूषण को लेकर हर सर्दी देशभर में चिंताएं बढ़ जाती हैं, लेकिन एक नई स्टडी ने इस जटिल समस्या के समाधान पर एक दृश्यमान समयसीमा और संभावित रास्ता पेश किया है. हाल ही में प्रकाशित वर्किंग पेपर के मुताबिक, अगर राष्ट्रीय राजधानी कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान दिखे उत्सर्जन में कमी जैसे प्रतिबंध लागू कर सके, तो 2040 तक दिल्ली की हवा राष्ट्रीय मानक स्तर तक साफ़ हो सकती है.

इस वर्किंग पेपर का शीर्षक है - “40 by 2040: Cost of inaction and delays in reaching Delhi’s air quality target”. यह अध्ययन 1989 से 2025 के बीच 36 वर्षों की अवधि में दिल्ली के PM2.5 स्तरों का मूल्यांकन करता है. रिपोर्ट के निष्कर्ष बतातें हैं कि दिल्ली तभी राष्ट्रीय परिवेशीय वायु गुणवत्ता मानक - 40 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर (40 µg/m³) - तक पहुंच सकेगी, जब सभी मानवीय स्रोतों से उत्सर्जन में लगभग 55% तक कटौती, सर्दियों में हीटिंग उत्सर्जन में 75% की कमी और पराली जलाने से होने वाले प्रदूषण को पूरी तरह समाप्त (100% कट) किया जाए.

लॉकडाउन समय की हवा - यह तकनीकी रूप से संभव है

शोधकर्ताओं सरथ गुट्टिकुंडा और साई कृष्ण दाम्मलापाटी (अर्बन एमिशन्स, पर्यावरण वकालत समूह) के अनुसार, कोविड-19 लॉकडाउन के दौर में हवा की गुणवत्ता में सबसे तेज़ और प्रभावशाली सुधार इसलिए हुआ क्योंकि परिवहन, औद्योगिक गतिविधियों और निर्माण कार्य जैसे मुख्य प्रदूषण स्रोत ठप हो गए थे.

इन महीनों में केवल दो कारक अप्रभावित रहे -

  • सर्दी के महीनों में होने वाला घरेलू हीटिंग
  • और सीमित समय में होने वाला पराली जलाना

अर्थात, लॉकडाउन ने यह साबित किया कि बाकी प्रदूषण स्रोतों में कटौती संभव और तकनीकी रूप से व्यवहारिक है.

...तो इसलिए हवा नहीं सुधरी

2019 से 2025 के बीच प्रदूषण रोकने को लेकर कई घोषणाएं की गईं - इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा, उद्योगों के लिए उत्सर्जन मानक, सड़क निर्माण नीति, धूल नियंत्रण योजना, ज़ीरो वेस्ट और बायोमास प्रबंधन. इसके बावजूद, रिपोर्ट बताती है कि दिल्ली की हवा में वार्षिक औसत PM2.5 स्तर लगातार लगभग 100 µg/m³ के आसपास बना रहा जो कि राष्ट्रीय मानक का 2.5 गुना है और विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मानक 5 µg/m³ का 20 गुना.

शोधकर्ताओं का कहना है कि समस्या नीति ज्ञान या वैज्ञानिक डेटा की कमी नहीं है, बल्कि क्रियान्वयन में देरी है. उनके अनुसार, यदि 2019 की नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम (NCAP) की हर कार्रवाई समय पर लागू होती, तो दिल्ली 2040 से पहले भी लक्ष्य को हासिल कर सकती थी.

अत्यधिक प्रदूषण की कीमत - स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था दोनों पर भारी

अध्ययन ने दो बड़े जोखिमों का आकलन किया -

कार्रवाई न करने की कीमत : यदि दिल्ली 2040 में प्रदूषण स्तर को केवल 60 µg/m³ तक घटा पाती है, तो 40 µg/m³ के लक्ष्य की तुलना में 11.6% अधिक एक्सपोज़र केस सामने आएंगे.

कार्रवाई में देरी की कीमत : यदि 2040 तक भी प्रदूषण 100 µg/m³ ही बना रहता है, तो दिल्ली में हर 100 अनुमानित मृत्यु मामलों पर 35.3% अतिरिक्त मौतें हो सकती हैं.

"एक्सपोज़र केस" का मतलब - ऐसे मामले जहां आबादी उच्च प्रदूषण के कारण सीधे स्वास्थ्य प्रभावों के जोखिम में होती है, जैसे हृदय रोग, स्ट्रोक, दमा, कैंसर और क्रॉनिक बीमारियां.

2040 लक्ष्य तभी संभव, जब क्रियान्वयन युद्धस्तर पर हो

रिपोर्ट निष्कर्ष में दो स्पष्ट संदेश देती है, पहली समाधान ज्ञात है, तकनीक मौजूद है और दूसरा लागू करने में देरी बाकी सब पर भारी पड़ रही है. दिल्ली की हवा को साफ़ करने के लिए केवल योजनाएं नहीं, बल्कि लॉकडाउन-स्तरीय अनुशासन और सख़्त कार्यान्वयन की आवश्यकता है - दैनिक जीवन को बाधित किए बिना, लेकिन नीतियों को मजबूती से लागू करके.

2040 अभी दूर है, पर अगर कार्रवाई आज शुरू नहीं हुई, तो दिल्ली के लोगों के लिए हर सर्दी में साँस लेना और मुश्किल होता जाएगा.

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