जल्द ही दवाओं पर टैरिफ लगाएंगे डोनाल्ड ट्रंप, भारत पर क्या होगा असर?
भारत को दुनिया की फार्मेसी कहा जाता है. अमेरिका में बिकने वाली जेनेरिक दवाओं का लगभग 40% भारत से ही आता है. भारतीय कंपनियां जैसे कि Sun Pharma, Dr. Reddy's, Cipla, Lupin और Aurobindo अमेरिका के फार्मास्युटिकल बाजार में गहरी पकड़ रखती हैं.;
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर भारत सहित अन्य देशों के लिए चिंता बढ़ा दी है. ट्रंप ने हाल ही में एक कार्यक्रम में कहा कि अमेरिका जल्द ही दवाओं के आयात (Pharmaceutical Imports) पर 'बड़ा टैरिफ' (आयात शुल्क) लगाने की तैयारी कर रहा है. यह कदम अमेरिका की घरेलू दवा कंपनियों को अमेरिका में उत्पादन बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करेगा.
ट्रंप ने क्या कहा?
नेशनल रिपब्लिकन कांग्रेसनल कमेटी के एक कार्यक्रम में ट्रंप ने कहा, "हम फार्मा इंडस्ट्री पर बहुत बड़ा टैरिफ लगाने जा रहे हैं, ताकि दवा कंपनियां अपना उत्पादन अमेरिका में शिफ्ट करें." अब तक ट्रंप प्रशासन ने फार्मास्यूटिकल्स और सेमीकंडक्टर्स जैसे क्षेत्रों को अपने टैरिफ से दूर रखा था, लेकिन अब इन पर भी शुल्क लगाया जा सकता है.
भारत को कैसे होगा असर?
अमेरिका भारत के फार्मास्यूटिकल्स सेक्टर के लिए सबसे बड़ा निर्यात बाजार है. फार्मास्युटिकल्स एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल ऑफ इंडिया (Pharmexcil) के अनुसार, वित्त वर्ष 2023-24 में भारत ने कुल 27.9 अरब डॉलर की दवाएं निर्यात कीं, जिनमें से लगभग 31% यानी 8.7 बिलियन डॉलर की केवल अमेरिका को भेजी गईं. भारत अमेरिका को 45% जेनरिक दवाएं और 15% बायोसिमिलर दवाएं आपूर्ति करता है. डॉ. रेड्डीज़, ऑरोबिंदो फार्मा, जायडस, सन फार्मा और ग्लैंड फार्मा जैसी बड़ी भारतीय कंपनियां अपनी कुल आय का 30-50% तक अमेरिका से कमाती हैं.
दोनों देशों को हो सकता है नुकसान
विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह का टैरिफ दोनों देशों के लिए नुकसानदायक हो सकता है. एक्सपर्ट कहते हैं, "अगर अमेरिका दवाओं पर टैरिफ लगाता है, तो यह कदम भारत और अमेरिका दोनों को प्रभावित करेगा." अमेरिका में जेनरिक दवाओं की कीमतें बढ़ेंगी, जिससे महंगाई, दवा की कमी, और स्वास्थ्य बीमा की लागत में बढ़ोतरी हो सकती है. भारतीय कंपनियां, जो पहले से ही अमेरिका में पतले मुनाफे पर काम करती हैं, टैरिफ का बोझ झेल नहीं पाएंगी और लागत अमेरिका के उपभोक्ताओं पर डालनी पड़ेगी.
क्या है आगे की राह?
भारत सरकार के लिए यह एक बड़ी चुनौती होगी. उसे अमेरिकी प्रशासन के साथ राजनयिक स्तर पर बातचीत करनी होगी. भारतीय फार्मा कंपनियों को नए बाजार तलाशने होंगे, जैसे यूरोप, अफ्रीका या दक्षिण-पूर्व एशिया. साथ ही घरेलू उद्योग के लिए सहायता योजनाएं लानी होंगी ताकि कंपनियां लागत झेल सकें.
डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ नीति अगर लागू होती है, तो भारत के फार्मा उद्योग को बड़ा झटका लग सकता है. यह कदम सिर्फ व्यापार का मामला नहीं है, बल्कि करोड़ों अमेरिकी उपभोक्ताओं की स्वास्थ्य सेवाओं पर भी सीधा असर डालेगा. अब देखना यह है कि अमेरिका इस नीति को आगे बढ़ाता है या भारत जैसे साझेदार देशों से बातचीत कर हल निकालता है.