China to Chandni Chowk: चीन ने दिल्ली को प्रदूषण मुक्त करने के दिए टिप्स, स्टेप-बाय-स्टेप बताया-सांसों के संकट से कैसे मिलेगी मुक्ति
हर सर्दी दिल्ली स्मॉग की चपेट में आ जाती है, जबकि कभी दुनिया की सबसे प्रदूषित राजधानियों में शामिल बीजिंग ने एक दशक में अपनी हवा साफ कर ली. चीनी दूतावास ने बताया कि सख्त वाहन उत्सर्जन नियम, गाड़ियों पर नियंत्रण, इलेक्ट्रिक मोबिलिटी, औद्योगिक सुधार और क्षेत्रीय तालमेल से यह बदलाव संभव हुआ. बीजिंग का मॉडल दिखाता है कि मजबूत नीतियां और ईमानदार अमल से प्रदूषण पर काबू पाया जा सकता है.;
दिल्ली की सर्दियां आते ही हवा जहरीली हो जाती है. घना स्मॉग, बढ़ती सांस की बीमारियां और ‘सीवियर’ AQI अब हर साल की कहानी बन चुके हैं. हालात इतने गंभीर हैं कि स्कूल बंद करने से लेकर गाड़ियों पर रोक तक जैसे आपात कदम उठाने पड़ते हैं, फिर भी स्थायी राहत नहीं मिलती.
इसी बीच दुनिया की एक और राजधानी की मिसाल सामने आती है. कभी 'स्मॉग कैपिटल' कहे जाने वाले बीजिंग ने महज एक दशक में अपनी हवा की तस्वीर बदल दी. अब जब दिल्ली की AQI 400 के पार जाती है और बीजिंग 70 के आसपास सांस लेता है, तो सवाल उठता है कि आखिर चीन ने प्रदूषण को स्टेप बाय स्टेप कैसे काबू किया?
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बीजिंग की कहानी क्यों अहम है?
चीनी दूतावास की प्रवक्ता यू जिंग ने सोशल मीडिया पर बीजिंग के ‘पहले और बाद’ की तस्वीरों के साथ बताया कि तेज शहरीकरण के बावजूद साफ हवा पाना नामुमकिन नहीं है. उनका संदेश साफ था कि क्लीन एयर कोई एक दिन का फैसला नहीं, बल्कि लगातार और सख्त नीतियों का नतीजा है.
AQI का फर्क: दिल्ली VS बीजिंग
15 दिसंबर के आंकड़ों में दिल्ली का AQI 447 दर्ज किया गया, जबकि उसी दिन बीजिंग का AQI 67 रहा. यही अंतर बताता है कि समस्या सिर्फ मौसम या भूगोल की नहीं, बल्कि नीति, लागू करने की इच्छाशक्ति और क्षेत्रीय तालमेल की भी है.
वाहनों पर पहला वार
बीजिंग ने वाहनों से निकलने वाले प्रदूषण पर सबसे पहले चोट की. चीन ने यूरो-6 जैसे अल्ट्रा-सख्त एमिशन स्टैंडर्ड लागू किए और पुराने, ज्यादा धुआं छोड़ने वाले वाहनों को चरणबद्ध तरीके से सड़कों से हटाया. भारत में BS-VI नियम लागू तो हैं, लेकिन जमीन पर उनका पालन अब भी बड़ी चुनौती बना हुआ है.
सड़क पर गाड़ियां कम करने की रणनीति
बीजिंग ने सिर्फ नियम नहीं बनाए, बल्कि गाड़ियों की संख्या सीमित करने के लिए लाइसेंस प्लेट लॉटरी, ऑड-ईवन और वीकडे ड्राइविंग जैसी पाबंदियां लागू कीं. इसके साथ मेट्रो और बस नेटवर्क में भारी निवेश किया गया, ताकि लोगों के पास निजी वाहन का विकल्प मौजूद हो.
इलेक्ट्रिक मोबिलिटी पर तेज़ी
चीन ने इलेक्ट्रिक वाहनों को सिर्फ भविष्य नहीं, बल्कि वर्तमान की जरूरत बनाया. ई-बसें, ई-टैक्सी और चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर को तेजी से बढ़ाया गया. इससे शहर के भीतर प्रदूषण का दबाव काफी हद तक कम हुआ.
इंडस्ट्री का कायाकल्प
बीजिंग की सफलता का बड़ा कारण औद्योगिक पुनर्गठन भी रहा. भारी प्रदूषण फैलाने वाली फैक्ट्रियों को शहर से बाहर शिफ्ट किया गया या उन्हें क्लीन टेक्नोलॉजी अपनाने के लिए मजबूर किया गया. साथ ही बीजिंग–तियानजिन–हेबेई क्षेत्र में साझा नीति बनाई गई, ताकि पड़ोसी इलाकों से प्रदूषण ‘स्पिलओवर’ न हो.
दिल्ली की सबसे बड़ी चुनौती: पड़ोसी राज्य
दिल्ली में हर साल पराली जलाने से प्रदूषण और गंभीर हो जाता है. पंजाब, हरियाणा और यूपी के बीच समन्वय की कमी, आरोप-प्रत्यारोप और अधूरे अमल ने हालात बिगाड़े हैं. बीजिंग का मॉडल बताता है कि जब तक क्षेत्रीय स्तर पर एकजुट नीति नहीं बनेगी, तब तक अकेली दिल्ली की कोशिशें काफी नहीं होंगी. बीजिंग की मिसाल यह साबित करती है कि प्रदूषण कोई “अपरिहार्य सर्दियों की मजबूरी” नहीं है. सख्त नियम, लगातार अमल, क्षेत्रीय सहयोग और वैकल्पिक ट्रांसपोर्ट इन चार कदमों से हवा बदली जा सकती है. सवाल सिर्फ इतना है कि क्या दिल्ली भी इस स्टेप-बाय-स्टेप रास्ते पर चलने का साहस दिखाएगी?