EXPLAINER: सतीश गोलचा के पुलिस आयुक्त बनने के बाद सवाल-बालाजी श्रीवास्तव और एसबीके सिंह जैसों संग ‘भद्दा-मजाक’ क्यों?
दिल्ली पुलिस कमिश्नर के पद पर 1992 बैच के आईपीएस सतीश गोलचा की नियुक्ति ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं. इससे पहले AGMUT कैडर के दो अफसर-बालाजी श्रीवास्तव और एसबीके सिंह को महज 'कामचलाऊ' कमिश्नर बनाकर जल्द ही हटा दिया गया था. बालाजी सिर्फ 28 दिन और एसबीके सिंह 21 दिन ही पद पर टिक सके. इस प्रक्रिया ने वरिष्ठ आईपीएस अधिकारियों की गरिमा और हुकूमत की मंशा पर सवाल उठाए हैं कि आखिर इतने छोटे कार्यकाल के लिए यह ‘भद्दा मजाक’ क्यों किया जाता है.;
केंद्रीय गृह-मंत्रालय ने गुरुवार को दिल्ली पुलिस कमिश्नर (Delhi Police Commissioner) के लिए भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी सतीश गोलचा (IPS Satish Golcha) के नाम की घोषणा कर दी. साल 2020 के बाद या फिर विवादित-बदनाम आईपीएस अमूल्य पटनायक के बाद कहिए, अग्मूटी (AGMUT) कैडर का कोई आईपीएस नियमित पुलिस आयुक्त के रूप में दिल्ली को नसीब हो सका है. सतीश गोलचा से पहले और अमूल्य पटनायक के बाद, अगर कोई नियमित पुलिस आयुक्त संजय अरोरा मिले भी तो वे अग्मूटी कैडर के न होकर, तमिलनाडु कैडर के आईपीएस थे.
1992 बैच अग्मूटी कैडर के आईपीएस सतीश गोलचा दिल्ली के 27वें पुलिस आयुक्त बने हैं. सतीश गोलचा अब तक दिल्ली जेल (तिहाड़ जेल) के महानिदेशक थे. सतीश गोलचा ने तिहाड़ जेल महानिदेशक का प्रभार पूर्व आईपीएस संजय बेनीवाल से लिया था. बात अगर दिल्ली पुलिस कमिश्नर्स सूची की करें तो 1 जुलाई 1978 यानी 47 साल पहले जबसे दिल्ली पुलिस में महानिरीक्षक प्रणाली खतम करके, पुलिस कमिश्नर प्रणाली शुरू या लागू की गई तब से अब तक सतीश गोलचा से पहले 26 पुलिस कमिश्नर दिल्ली के बनाए जा चुके हैं.
इन दो पुलिस कमिश्नरों को याद तो किया जाएगा, लेकिन...
दिल्ली के पहले पुलिस आयुक्त उत्तर प्रदेश कैडर के वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी जे एन चतुर्वेदी (जयेंद्र नाथ चतुर्वेदी) थे. अब तक के इन 27 पुलिस आयुक्तों की सूची-पट्टिका में दो ऐसे भी नाम दर्ज हैं जो दिल्ली पुलिस आयुक्त बनने वालों की श्रेणी में ‘बिचारे-बदकिस्मत-बदनसीब-फूटी हुई किस्मत वाले आईपीएस’ की श्रेणी में गिने जाते हैं और आइंदा भी दिल्ली पुलिस की नई पीढ़ियां इन दोनों आईपीएस को इसी नजर से देखेंगी-पढ़ेंगीं और सुनेंगीं-जानेंगीं. क्योंकि भारतीय पुलिस सेवा के दस्तावेजों में सन् 1978 से लेकर 2025 तक (करीब 47 साल यानी पांच दशक में) की लंबी अवधि में अग्मूटी कैडर के इतिहास में दिल्ली के पुलिस कमिश्नर बनाए गए यही दो आईपीएस अधिकारी (बालाजी श्रीवास्तव और एस बी के सिंह यानी शशि भूषण कुमार सिंह) “तदर्थ-अस्थाई-काम चलाऊ या फिर इस्तेमाल करो और कुर्सी से हटा फेंको” की श्रेणी में रहे हैं.
सबसे लंबे समय तक दिल्ली का काम-चलाऊ पुलिस कमिश्नर
1988 बैच अग्मूटी कैडर के आईपीएस बालाजी श्रीवास्तव को जुलाई 2021 में दिल्ली पुलिस का ‘काम-चलाऊ’ पुलिस कमिश्नर बनाया गया था. यह उस दौर की बात है जब अब से करीब चार साल पहले और तब दिल्ली के सबसे लंबे समय तक ‘काम-चलाऊ’ पुलिस कमिश्नर रहे, 1985 बैच के एस एन श्रीवास्तव यानी सच्चिदानंद श्रीवास्तव (किसान आंदोलन में अपनी पुलिस को मूकदर्शक बनवा कर कथित रूप से ही सही, उग्र हुए किसानों के हाथों जबरदस्त तरीके से पिटवाने के लिए कथित रूप से बदनाम) रिटायर हो रहे थे. एस एन श्रीवास्तव को सबसे लंबे समय तक दिल्ली का ‘काम-चलाऊ’ पुलिस कमिश्नर इसलिए कहा या माना जाता है क्योंकि, जब फरवरी 2020 में दिल्ली में सीलमपुर के सांप्रदायिक दंगे हुए थे तब, उस वक्त के बदनाम पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक की जिस बे-कदरी-दुर्गति-दुर्दशा के साथ दिल्ली पुलिस कमिश्नर की कुर्सी से, रातों-रात रुखसती (विदाई) की गई थी, वह दिल्ली पुलिस के 47 साल के इतिहास में शायद ही अब तक किसी पुलिस आयुक्त की हुई होगी, उस बेहद बुरे दौर में केंद्रीय हुकूमत ने इन्हीं एस एन श्रीवास्तव को केंद्रीय पुलिस बल यानी सीआरपीएफ में विशेष निदेशक (प्रशिक्षण) के पद से हटाकर, दिल्ली का काम-चलाऊ पुलिस कमिश्नर बनाया था.
एस एन श्रीवास्तव के कार्यकाल में ही दिल्ली में किसानों ने किया था 'तांडव'
इन्हीं पुलिस कमिश्नर एस एन श्रीवास्तव के काम-चलाऊ पुलिस कमिश्नरी के कार्यकाल में हजारों बेकाबू किसान देश की राजधानी में मय ट्रैक्टरों के घुस पड़े थे. ऐसे जैसे कि मानो दिल्ली देश की राजधानी न होकर सड़क पर लगने वाला ‘साप्ताहिक बाजार’ का कोई स्थान हो. आईटीओ से लेकर लाल किला तक और उधर सिंधु बॉर्डर से लेकर लाल किला तक ट्रैक्टरों पर फिल्मी स्टाइल में डरावनी ‘स्टंटबाजी’ करते हुए बेकाबू किसानों ने किस तरह का तांडव करके दिल्ली के एक हिस्से में कहर बरपाया था? इसके गवाह उस वक्त के इन पूर्व काम-चलाऊ (हालांकि खबरों के मुताबिक बाद में जब एस एन श्रीवास्तव के पुलिस कमिश्नर पद से रिटायर होने का वक्त आया तो उन्हें पद पर नियमित भी कर दिया गया था) पुलिस आयुक्त एस एन श्रीवास्तव ने अपनी आंखों से देखा था. इनकी ही हथियारबंद दिल्ली पुलिस किसानों के हाथों अपनी ही दिल्ली की सड़कों पर मूकदर्शक बनकर मार खाती रही. और बेकाबू किसान राजधानी की सड़कों पर अपने हिसाब से ‘तांडव’ मचाते रहे. उस घटना में बेकाबू किसानों के हाथों पिटने वाले सैकड़ों पुलिसकर्मी बुरी तरह से जख्मी होकर दिल्ली के अस्पतालों में पड़े कराहते रहे थे.
बहरहाल, ऐसे ‘बिचारे या काम चलाऊ’ पुलिस आयुक्त एस एन श्रीवास्तव जैसे-तैसे जून 2021 में दिल्ली पुलिस से रिटायरमेंट देकर रुखसत हो किए जा रहे थे, उसी के तत्काल बाद 1988 बैच अग्मूटी कैडर और तब दिल्ली पुलिस में विशेष आयुक्त रहे बालाजी श्रीवास्तव को ‘काम-चलाऊ’ पुलिस कमिश्नर बनाया गया था.
सबसे कम समय के लिए कमिश्नर रहे बाला जी श्रीवास्तव
दिल्ली पुलिस के तब तक के करीब 43-44 साल के इतिहास मे बाला जी श्रीवास्तव पहले ‘काम चलाऊ या कहिए जुगाड़ू’ पुलिस कमिश्नर बने थे. तब कयास लगाए जा रहे थे कि बालाजी श्रीवास्तव को ही देश की हुकूमत दिल्ली पुलिस का नियमित कमिश्नर बना देगी. मगर यह सोचना तब बेमानी साबित हुआ जब 28 दिन बाद ही बालाजी श्रीवास्तव को दिल्ली के ‘काम-चलाऊ’ पुलिस कमिश्नर की कुर्सी से हटा दिया गया. और इस तरह दिल्ली पुलिस कमिश्नरी के तब तक के 43-44 साल के इतिहास में बालाजी का नाम सबसे कम वक्त के और पहले काम-चलाऊ पुलिस कमिश्नर के रूप में ‘दिल्ली के कमिश्नरों की सूची’ में शामिल हो गया.
केवल 28 दिन के कमिश्नर रहे बालाजी श्रीवास्तव
क्योंकि बालाजी श्रीवास्तव से 28 दिन की “काम चलाऊ” पुलिस कमिश्नरी चलवाने के बाद हुकूमत को उनसे भी कहीं ज्यादा काबिल, लेकिन सीबीआई में विशेष निदेशक पद पर तैनाती के दौरान तत्कालीन सीबीआई निदेशक और उन दिनों खासे बदनाम आईपीएस रहे आलोक वर्मा के खिलाफ, गजब का सीधा मोर्चा खोलने की जुर्रत या कहिए हिमाकत कर बैठने वाले, गुजरात कैडर के और उन दिनों सीबीआई से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक में सुर्खियों में बने 1984 बैच के राकेश अस्थाना हुकूमत को दिल्ली पुलिस कमिश्नरी के लिए सबसे कामयाब आईपीएस मिल गए थे. ऐसे कामयाब और हुनरमंद आईपीएस राकेश अस्थाना की, जिन्होंने तब के काम-चलाऊ पुलिस कमिश्नर बालाजी श्रीवास्तव से दिल्ली पुलिस कमिश्नरी का प्रभार लेते ही दिल्ली पुलिस का केंद्रीय पुलिस नियंत्रण कक्ष ही 'नेस्तनाबूद' कर डाला. राकेश अस्थाना ने आदेश पारित किया कि दिल्ली पुलिस नियंत्रण कक्ष की पुलिस सीधे थाना-एसएचओ को रिपोर्ट करेगी. राकेश अस्थाना द्वारा किया गया यह वह जबर का बेतुका काम था, जो दिल्ली पुलिस के जन्म से लेकर 2021 (राकेश अस्थाना के दिल्ली का कमिश्नर बनने वाले दिन तक) तक किसी भी पुलिस कमिश्नर ने करने की ‘बेवकूफी कहिए या न-समझी’ नहीं की थी.
जब दूर हो गई राकेश अस्थाना की गलतफहमी
राकेश अस्थाना द्वारा पुलिस कंट्रोल रूम के पुलिसकर्मियों और सैकड़ों जिप्सियों-वाहनों को थानों से अटैच करने से दिल्ली पुलिस महकमे में कोहराम तो खूब मचा. लेकिन चूंकि राकेश अस्थाना हुकूमत की नजर में उन दिनों सबसे हाई-प्रोफाइल, गलतफहमी में ही सही मगर आईपीएस खेमे में देश के कथित रूप से सबसे काबिल अफसर थे. भले ही सीबीआई में तब के राकेश अस्थाना सबसे बदनाम कहिए या फिर चर्चित अफसर रहे हों मगर जबरिया ही राकेश अस्थाना को दिल्ली पुलिस कमिश्नर की कुर्सी पर लाकर लाद दिया गया. सो दिल्ली पुलिस में तब तैनात रहे दीपेंद्र पाठक, आर एस कृष्णैया, आर पी उपाध्याय, से लेकर संजय सिंह तक में से किसी आईपीएस की इतनी हिम्मत नहीं हुई जो दिल्ली पुलिस नियंत्रण कक्ष की राकेश अस्थाना के द्वारा कर डाली गई तबाही-बर्बादी को लेकर कोई ‘जुबान’ खोलकर बिल्ली के गले में घंटी बांधने की गलती करता. क्योंकि नौकरी और सरकारी कुर्सी सभी ब्यूरोक्रेट को प्यारी होती है. यह अलग बात है कि महाभारत के अर्जुन या भीष्म पितामाह की सी जिन अकूत विशेष दैवीय ताकतों-शक्तियों के साथ राकेश अस्थाना केंद्रीय हुकूमत द्वारा जबरिया ही, दिल्ली पुलिस कमिश्नर की कुर्सी पर लाकर सजाए गए थे, महज एक साल बाद ही उन्हीं राकेश अस्थाना की वे तमाम दैवीय शक्तियां जब हुकूमत की नजर में क्षीण हुईं तो राकेश अस्थाना की हालत भी, महाभारत के बाद श्रीकृष्ण से द्वारका में अंतिम बार मिलकर वापस लौटते वक्त रास्ते में भीलों द्वारा मारपीट कर भगा दिए गए कमजोर-निरीह अर्जुन की सी हो गई थी. राकेश अस्थाना आखिरी दिन तक इसी गफलत में रहे कि वे हुकूमत के ‘करीबी या खास’ हैं, सो उन्हें दिल्ली पुलिस कमिश्नरी में एक साल का और एक्सटेंशन सरकार परोस देगी. मगर ऐसा करने के बजाए केंद्रीय हुकूमत ने राकेश अस्थाना की जगह जब तमिलनाडू कैडर के आईपीएस संजय अरोड़ा को दिल्ली का पुलिस कमिश्नर बना डाला, तब राकेश अस्थाना की वह गलतफहमी उड़न-छू हो गई, जो उन्हें खुद को हुकूमत की “आंख का तारा” बनाने की गफलत उनके भीतर पनपाए हुए थी.
एस बी के सिंह के कमिश्नर बनने से AGMUT कैडर में जगी उम्मीद
बहरहाल अब जब हाल ही में संजय अरोड़ा का दिल्ली पुलिस कमिश्नर का कार्यकाल पूरा हुआ तो 1998 बैच के आईपीएस अधिकारी एस बी के सिंह (शशि भूषण कुमार सिंह आईपीएस) को देश की हुकूमत ने 1 अगस्त 2025 को दिल्ली का “काम-चलाऊ” पुलिस कमिश्नर का अतिरिक्त चार्ज दे दिया. अतिरिक्त चार्ज इसलिए क्योंकि दिल्ली होमगार्ड के महानिदेशक पद पर एस बी के सिंह पहले से ही तैनात हैं. चूंकि एस एन श्रीवास्तव के बाद बाहरी कैडर (गुजरात) के राकेश अस्थाना और राकेश अस्थाना के बाद दूसरे नंबर पर तमिलनाडू कैडर के आईपीएस संजय अरोड़ा, यानी लगातार दो बार दो आईपीएस अग्मूटी (दिल्ली कैडर) कैडर से बाहर के दिल्ली पुलिस कमिश्नर की कुर्सी पर लादे जा चुके थे. जब 1 अगस्त 2025 को डीजी होमगार्ड के पद पर तैनात अग्मूटी कैडर के आईपीएस एस बी के सिंह दिल्ली के तदर्थ पुलिस कमिश्नर बनाए गए, तब अग्मूटी कैडर वाले आईपीएस खेमे को उम्मीद जागी कि, चलो राकेश अस्थाना और संजय अरोड़ा से जैसे बाहरी कैडर के आईपीएस-पुलिस कमिश्नरों ने से तो पिंड छूटा. अच्छे या बुरे जैसे भी सही एस बी के सिंह हैं तो अपने ही कैडर के (अग्मूटी कैडर, जिसके आईपीएस का ही व्यवहारिक हक दिल्ली पुलिस कमिश्नर बनने का बनता है) आईपीएस अधिकारी. आज काम-चलाऊ या तदर्थ पुलिस कमिश्नर बने हैं. देर-सवेर हुकूमत होमगार्ड का डीजी अग्मूटी कैडर के किसी ऐसे आईपीएस को लगा देगी जिसकी देश की हुकूमत से सीधे दिल्ली पुलिस कमिश्नर बनने की ‘जुगाड़’ नहीं होगी, और एस बी के सिंह को शायद नियमित दिल्ली पुलिस कमिश्नर बना दिया जाए. भले ही छह महीने को ही क्यों न सही. क्योंकि जनवरी 2026 में एस बी के सिंह का रिटायरमेंट तय है.
सरकार चाहती तो एस बी के सिंह कतो मिल सकता था सेवा विस्तार
हांलांकि, देश की हुकूमत चाहती तो एस बी के सिंह को रिटायर होने के बाद भी दिल्ली पुलिस कमिश्नर के पद पर सेवा-विस्तार दे सकती है. क्योंकि जब गुजरात कैडर के विवादित आईपीएस राकेश अस्थाना को सीबीआई से रिटायर होने के चंद दिन पहले लाकर दिल्ली पुलिस का एक साल के लिए कमिश्नर बनाया जा सकता है, तब फिर अग्मूटी कैडर के आईपीएस एस बी के सिंह को जनवरी 2026 में उनके रिटायर होने के बाद भी पुलिस कमिश्नर के पद पर सेवा-विस्तार देने में तो कहीं कोई कानूनी या व्यवहारिक अड़चन थी ही नहीं. बहरहाल आमजन या ब्यूरोक्रेट जैसा सोचता है हुकूमत की चाल एकदम उससे उलट और अपने निजी स्वार्थ या कहिए हित की होती है.
21 दिन में ही छीन ली गई कमिश्नरी
सो सरकार को शायद लगा होगा कि एस बी के सिंह शायद उसके उस स्तर के काम के आईपीएस नहीं है, जिस तरह तमिलनाडू कैडर के आईपीएस संजय अरोड़ा, गुजरात कैडर के और सीबीआई के विवादित आईपीएस राकेश अस्थाना हुकूमत की ‘चाकरी’ बजा सकते हैं, तो एस बीके सिंह से भारत की हुकूमत ने उनसे दिल्ली की काम-चलाऊ पुलिस कमिश्नरी भी महज 21 दिन में ही छीन ली. और 21 अगस्त 2025 को ही केंद्रीय हुकूमत ने एस बी के सिंह के नीचे से खिसकाई गई काम-चलाऊ कुर्सी को और ज्यादा मजबूत करके अब तक डीजी दिल्ली जेल रहे अग्मूटी कैडर 1992 बैच के आईपीएस सतीश गोलचा को सौंप दी.
क्या दिल्ली सीएम के थप्पड़ कांड की वजह से गई एस बी के सिंह की कुर्सी?
हालांकि, हवा में सोशल मीडिया पर तैर रही बे-सिर-पैर की खबरें यह भी फैला रही हैं कि, रातों-रात एस बी के सिंह से काम-चलाऊ कमिश्नर की कुर्सी छिन जाने के पीछे, दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता पर मारे गए थप्पड़ की गूंज का नतीजा है. चूंकि दिल्ली में भाजपा समर्थित मुख्यमंत्री की सुरक्षा की जिम्मेदारी दिल्ली पुलिस की है. और पुलिस की ही मौजूदगी में मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता पर हमला कर डाला गया. इसे केंद्रीय हुकूमत ने दिल्ली पुलिस की ओर से मुख्यमंत्री की सुरक्षा में भारी चूक माना. लिहाजा बौखलाई सरकार ने आनन-फानन में एस बी के सिंह से काम चलाऊ पुलिस कमिश्नर का भी काम-काज छीनकर उन्हें पैदल कर दिया. वहीं दिल्ली पुलिस के ही कुछ रिटायर्ड अधिकारियों (आईपीएस) की माने तो, ‘मुख्यमंत्री के मुंह पर पड़ा कोई थप्पड़ दिल्ली जैसे मेट्रो सिटी के पुलिस आयुक्त को हटाने की कुव्वत नहीं रखता है. ठीक है सुरक्षा में चूक हुई है. इसकी जांच करके दोषियों और लापरवाह पुलिस अफसर-कर्मचारियों के खिलाफ नियमानुसार कार्यवाही की जाती है. सुरक्षा में मौजूद छेदों को बंद किया जाता है. ऐसे कृत्यों के लिए किसी देश की हुकूमत सीधे पुलिस कमिश्नर को ही हटा देगी. ऐसा कदापि कभी होते नहीं देखा गया है.’
दिल्ली पुलिस के कुछ पूर्व अधिकारियों से बातचीत में ही निकल कर बाहर आ रहा है कि, “जब सतीश गोलचा को ही नियमित पुलिस आयुक्त बनाना था. तब फिर महज 21 दिन के लिए काम चलाऊ पुलिस कमिश्नर के रूप में बिचारे एस बी के सिंह को कमिश्नर बनाए जाने जैसा घटिया काम क्यों किया हुकूमत ने? दिल्ली का पुलिस कमिश्नर लगाने का अधिकार बेशक केंद्र सरकार को है. वह जब जिसे चाहे पुलिस कमिश्नर बनाए. मगर यह हक केंद्र सरकार को किसने और क्यों दिया कि 21 दिन का काम चलाऊ कमिश्नर बनाकर किसी बालाजी श्रीवास्तव या एस बी के सिंह 28 और 21 दिन बाद उसे कुर्सी से उतार फेंको.”
ये सब बेकार की बात है...
संभव है कि दिल्ली पुलिस कमिश्नर के नाम पर अंतिम मुहर लगाने के लिए जो विशेष उच्च स्तरीय कमेटी बैठती है उसके बैठने में देरी हुई हो...इसलिए कुछ वक्त के लिए काम-चलाऊ कमिश्नर बना दिया जाता हो? स्टेट मिरर हिंदी के एडिटर क्राइम इनवेस्टीगेशन के इस सवाल के जवाब में दिल्ली पुलिस के पूर्व स्पेशल कमिश्नर स्तर के अधिकारी ने कहा, “नहीं ऐसा नहीं होता है. यह सब वाहियात बातें हैं. अगर सरकार के पास 21 या 28 दिन बाद जिस आईपीएस को पुलिस कमिश्नर बनाने का नाम होता है उसे आप 21 या 28 दिन पहले भी विशेष उच्च स्तरीय कमेटी के सामने तय कर सकते हैं. ताकि यह 21 दिन और 28 दिन के काम चलाऊ कमिश्नर बनाकर हटा दिए जाने से, वरिष्ठ आईपीएस अफसरों की इज्जत की तो बाट लगने से बच सके. हुकूमत की मंशा ही साफ नहीं है. वरना जिस सरकार को 21 दिन या 28 दिन बाद जो आईपीएस दिल्ली का नियमित पुलिस कमिश्नर बनाने को मिल सकता है वह फिर 21 या 28 दिन पहले क्यों नहीं तलाशा जा सकता है?”
AGMUT कैडर के आईपीएस सोच में तो जरूर पड़े होंगे
जब दिल्ली पुलिस के काम-चलाऊ और नियमित कमिश्नर बनाने को लेकर इस कदर की ‘कबड्डी’ खेली जा रही हो या कहिए ‘धींगामुश्ती’ मची हो, तब फिर ऐसे में अग्मूटी कैडर के बाकी वरिष्ठ आईपीएस का भविष्य किस कदर अंधेरे में पड़ा बिलबिला-कुलबुला रहा होगा. जिनकी 32-34 साल की आईपीएस की नौकरी पूरी हो चुकी है. और ये भी दिल्ली पुलिस कमिश्नर बनने का बीते 32-34 साल से ख्वाब संजो रहे होंगे. दूसरी ओर यह भी ध्यान रखना जरूरी है कि अग्मूटी कैडर का हर आईपीएस दिल्ली का कमिश्नर बनेगा ही. यह भी कोई जरूरी नहीं है. क्योंकि वरिष्ठता क्रम में आईपीएस तो कई होते हैं. मगर दिल्ली पुलिस कमिश्नर की ‘कुर्सी’ एक ही है. ऐसे में किसी भी एक ही वरिष्ठ पुलिस अफसर या आईपीएस को दिल्ली का कमिश्नर बनाया जा सकता है. इसमें किसी को कोई आपत्ति भी नहीं है. हर वरिष्ठ आईपीएस यह तो चाहता है कि वह दिल्ली पुलिस का बॉस बने. मगर वह यह भी जानता है कि किसी एक ही वरिष्ठ और बेदाग आईपीएस को पुलिस कमिश्नर बनाया जा सकता है.
वीरेंद्र सिंह चहल और नुजहत हसन का भविष्य अब क्या होगा?
सवाल यह पैदा होता है कि जिस दिल्ली पुलिस में कमिश्नर की कुर्सी पाने को इस कदर की ‘गला-काट’ मची हो या कबड्डी खेली जा रही हो, उस दिल्ली पुलिस में रिटायरमेंट के मुहाने पर बैठे 1991 बैच के आईपीएस (विशेष पुलिस आयुक्त) वीरेंद्र सिंह चहल और नुजहत हसन का भविष्य अब क्या होगा? 1991 बैच की वरिष्ठ आईपीएस नुजहत हसन दिल्ली पुलिस में विशेष आयुक्त हैं. उनके रिटायरमेंट के दिन भी गिने-चुने ही बचे हैं. उनके पति आईपीएस ताज हसन थे. जोकि अब आईपीएस सेवा से रिटायर हो चुके हैं. दूसरे वरिष्ठ आईपीएस हैं वीरेंद्र सिंह चहल. वह 1991 बैच के अधिकारी हैं. इस वक्त दिल्ली पुलिस में ही विशेष आयुक्त हैं. इनका भी दिल्ली पुलिस में विशेष आयुक्त पद से ही रिटायर होने की प्रबल संभावनाएं हैं. हालांकि चहल का बचा हुआ सेवाकाल नुजहत हसन से कुछ महीने अभी ज्यादा है. वे जुलाई 2026 में रिटायर होंगे. मगर यह समय इतना भी नहीं है जो इन्हें किसी केंद्र शासित सूबे का पुलिस महानिदेशक या दिल्ली का पुलिस कमिश्नर बनवा पाने की उम्मीद जगा सके. चहल को उम्मीद रही भी होगी तो चंडीगढ़ का पुलिस महानिदेशक बनने की. वहां हुकूमत ने मगर चहल से पहले ही उनके कई साल जूनियर आईपीएस बैच 1997 के सागर प्रीत हुड्डा को चंडीगढ़ का पुलिस महानिदेशक बना दिया है. ऐसे में चहल का पुलिसिया भविष्य क्या होगा? इस बारे में खुद वीरेंद्र सिंह चहल को भी नहीं पता होगा.