बॉलीवुड के स्टाइल आइकन Vinod Khanna की जिंदगी के 7 दिलचस्प पहलू, सुपरस्टार बनने से लेकर अध्यात्म तक

विनोद खन्ना ने अपना फिल्मी करियर बतौर विलेन शुरू किया था. उन्होंने अपने करियर में 'इम्तिहान', 'अमर अकबर एंथनी', 'आन मिलो सजना' समेत कई फिल्में की. वह बॉलीवुड के सबसे हैंडसम एक्टर भी कहलाए। लेकिन उनके जीवन में एक दौर ऐसा भी आया जब वह ग्लैमर वर्ल्ड को छोड़कर ओशो रजनीश के अनुयायी बन गए.;

Edited By :  रूपाली राय
Updated On : 27 April 2025 7:09 AM IST

विनोद खन्ना (Vinod Khanna) भारतीय फिल्म जगत के एक चमकते सितारे, सफल निर्माता और सम्मानित राजनेता थे. दमदार एक्टिंग और दिलकश व्यक्तित्व के मालिक विनोद ने 1960 के दशक के अंतिम सालों में फिल्मी सफर की शुरुआत की थी. 1970 और 1980 के दशक में वे हिंदी सिनेमा के सबसे चर्चित और लोकप्रिय कलाकारों में गिने जाने लगे. उन्होंने अपने करियर में 'मेरा गांव मेरा देश' (1971), 'इम्तिहान' (1974), 'अमर अकबर एंथनी' (1977), 'कुर्बानी' (1980) और 'दयावान' (1988) जैसी फिल्में की है.

27 अप्रैल 2017 को विनोद खन्ना ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया, लेकिन उनके द्वारा निभाए गए किरदार, उनकी शख्सियत और उनकी मुस्कान आज भी करोड़ों दिलों में जिंदा हैं. वह न केवल एक एक्टर थे, बल्कि एक आइकॉन थे. जो सिनेमा, अध्यात्म और राजनीति हर क्षेत्र में अपनी एक अलग पहचान छोड़ गए. आइए नजर डालते हैं उनके कुछ दिलचस्प पहलू पर.

एक्टर बनने का सपना नहीं था

विनोद खन्ना ने कभी नहीं सोचा था कि वे एक्टर बनेंगे। शुरुआत में तो उनके पिता ने भी एक्टिंग में करियर बनाने के फैसले का विरोध किया था. विनोद खुद भी बिजनेस में करियर बनाने का सपना देख रहे थे, लेकिन किस्मत उन्हें फिल्मों की दुनिया में ले आई. उनकी पहली फिल्म "मन का मीत" जो साल 1968 में आई थी. हालांकि यह फिल्म कुछ खास चल नहीं पाई. इसके बाद खन्ना 'मेरा गांव मेरा देश' (1971) जैसी फिल्मों से पहचान मिली, जहां उन्होंने खलनायक की भूमिका निभाई.

विलेन से हीरो तक का सफर

विनोद खन्ना ने अपना फिल्मी करियर बतौर विलेन शुरू किया था. शुरुआती फिल्मों जैसे 'पूरब और पश्चिम' और 'राखी और हाथकड़ी' में उन्होंने ग्रे शेड्स के किरदार निभाए। लेकिन जल्द ही उनका चार्म और एक्टिंग स्किल उन्हें हीरो के रूप में स्टैब्लिश किया।

बॉलीवुड का 'हैंडसम हीरो'

1970s और 80s में विनोद खन्ना को बॉलीवुड का सबसे हैंडसम हीरो कहा जाता था. उनका स्टाइल, उनकी मुस्कान और उनकी स्क्रीन प्रेजेंस ने उन्हें उस दौर के सबसे चर्चित सितारों में शामिल कर दिया। उस दौर में राजेश खन्ना की रोमांटिक और धर्मेंद्र की देसी हीरो वाली इमेज थी. वहीं विनोद ने इनसे हटकर एक मॉडर्न, शहरी, और रफ-एंड-टफ हीरो की इमेज बनाई, जो युवाओं को खूब भाई.

करियर के पीक पर साधु बन गए

अपने करियर के पीक पर, जब वे अमिताभ बच्चन के बराबर पॉपुलर हो गए थे, विनोद खन्ना ने सब कुछ छोड़कर ओशो रजनीश के आश्रम में संन्यास ले लिया. लगभग 5 साल तक वे ओशो के अनुयायी रहे और आध्यात्मिक जीवन जीते रहे. यह बॉलीवुड के इतिहास में एक ऐसी घटना थी जब कोई एक्टर ग्लैमर वर्ल्ड को छोड़कर अध्यात्म की ओर चला गया था.

दमदार वापसी

आध्यात्मिक जीवन से लौटने के बाद विनोद खन्ना ने फिर से फिल्मों में वापसी की और 'चांदनी', 'फरिश्ते', और 'दयावान' जैसी हिट फिल्मों में दमदार एक्टिंग का जलवा दिखाया। उन्होंने इस फिल्म में 21 साल की माधुरी दीक्षित के साथ रोमांटिक सीन करके खूब सुर्खियां बटोरी तब, विनोद उस समय 42 साल के थे. हालांकि लाख आलोचनाओं के बावजूद सिल्वर स्क्रीन पर अपना दबदबा बनाने में कामयाब रहे.

राजनीति में भी बनाया नाम

फिल्मों के साथ-साथ विनोद खन्ना ने राजनीति में भी शानदार करियर बनाया। वे भारतीय जनता पार्टी (BJP) से जुड़े और कई बार गुर्दासपुर (पंजाब) से सांसद चुने गए। वह अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में केंद्रीय मंत्री भी रहे.

परिवार भी है फिल्मी दुनिया का हिस्सा

विनोद खन्ना के बेटे अक्षय खन्ना, राहुल खन्ना ने  एक्टिंग की दुनिया में कदम रख चुके हैं. खासतौर पर अक्षय खन्ना ने 'दिल चाहता है', 'हमराज़', 'गांधी माई फादर' जैसी फिल्मों में शानदार परफॉर्मेंस दी है. हाल ही में अक्षय को ब्लॉकबस्टर फिल्म छावा में औरंगजेब के किरदार में देखा गया जिसे दर्शकों ने खूब पसंद किया।

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