अंतरिक्ष में लंबे समय तक रहने से क्या होता है शरीर पर असर? जानें नजर कमजोर होने से लेकर वजन गिरने तक पूरी Detail
अंतरिक्ष में रहने से मानव शरीर में क्या असर पड़ता है. वहीं वहां रहने से न सिर्फ शरीर बल्कि दिमाग को किस तरह का नुकसान झेलना पड़ता है. जो लोग नहीं जानते हैं वह इस बार जान लें कि अंतरिक्ष में रहना इतना आसान नहीं जितना हम सोचते हैं.

एस्ट्रोनॉट सुनीता विलियम्स और बुच विल्मोर 5 जून 2024 को महज आठ दिनों के लिए इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) गए थे. लेकिन तकनिकी खराबी के चलते वहां फंस गए. जहां से उन्हें वापस लाने की कई जद्दोजहद की गई लेकिन असफलता हाथ लगी. हालांकि अब नासा और स्पेसएक्स के 'क्रू 10' मिशन की टीम उनके पास पहुंच चुकी है और सुनीता विलियम्स की वापसी का समय भी तय हो चुका है. उन्होंने ताकिनी खराबी के चलते स्पेस में 9 महीने यानी (284) दिन काटे हैं.
लेकिन इतने समय तक स्पेस में फंसे रहने से उनकी हेल्थ पर क्या असर पड़ा है इसको लेकर भी सभी चिंतित हैं. लेकिन इस बीच सवाल उठता है कि अंतरिक्ष में रहने से मानव शरीर पर क्या असर पड़ता है. वहीं वहां रहने से न सिर्फ शरीर बल्कि दिमाग को किस तरह का नुकसान झेलना पड़ता है. जो लोग नहीं जानते हैं वह इस बार जान लें कि अंतरिक्ष में रहना इतना आसान नहीं जितना हम सोचते हैं. लम्बे समय से अंतरिक्ष में रहने से मानव हड्डियों से लेकर आंखों की रोशनी तक काफी हद तक प्रभावित होती है. तो आइये जानते हैं स्पेस में रहने से कैसा हो जाता है शरीर.
हड्डियां कमजोर होना
ग्रैविटी की कमी के कारण मांसपेशियां और हड्डियां कमजोर हो सकती हैं, क्योंकि शरीर को खुद को संभालने के लिए उतनी मेहनत नहीं करनी पड़ती. इससे हड्डियों का घनत्व कम हो सकता है और मांसपेशियां कमजोर हो सकती हैं. जिसकी वजह से बॉडी को बैलेंस करने में भी मुश्किल का सामना करना पड़ता है.
विज़न कमजोर होना
कई एस्ट्रोनॉट स्पेस में रहने के बाद विज़न समस्याओं का सामना करते हैं, जैसे विज़न का धुंधला होना या पास में रखी चीजें साफ न दिखना. यह आंखों के आकार में बदलाव या दबाव के कारण हो सकता है.
वजन का कम होना
हालांकि स्पेस में रहने से वजन में कोई असर नहीं होता है लेकिन ग्रेविटी की कमी के कारण बॉडी में बदलाव जरूर आते हैं. वहीं सुनीता ने बताया कि उनका वजन अंतरिक्ष में पहले जितना ही है. माइक्रोग्रैविटी के कारण शरीर के तरल पदार्थ चेहरे की ओर खिसक जाते हैं, जिससे चेहरा सूजा हुआ दिखाई दे सकता है.
रेडिएशन का असर
पृथ्वी पर वायुमंडल और चुंबकीय क्षेत्र हमें रेडिएशन से बचाते हैं. लेकिन स्पेस में रेडिएशन का असर ज़्यादा होता है. यह डीएनए को नुकसान पहुंचाता है, जिससे कैंसर और नर्वस सिस्टम की समस्या हो सकती है. इससे दिल की बीमारियों का ख़तरा बढ़ सकता है. इम्यून सिस्टम भी कमज़ोर हो जाता है.
मेंटल हेल्थ पर असर
स्पेस में लम्बे समय से रहने से मानसिक स्वास्थ्य भी प्रभावित हो सकता है, क्योंकि स्पेस में अकेलापन, सीमित स्थान और पृथ्वी से दूर होने के कारण तनाव और चिंता हो सकती है. कई बार एस्ट्रोनॉट को स्पेस से वापस आने के बाद साइकेट्रिस्ट से थेरिपी लेनी पड़ती है.
स्पेस में रहने का अब तक सबसे लम्बा रिकॉर्ड
स्पेस में रहने का लंबे समय तक रिकॉर्ड वैलरी पॉलियाकोव (Valery Polyakov) के नाम है, जो एक रूसी एस्ट्रोनॉट हैं. उन्होंने 437 दिन, 18 घंटे, 38 मिनट (लगभग 14 महीने) तक स्पेस में बिताए. यह रिकॉर्ड 1994-1995 में किया गया था जब वह सोयूज़ स्पेस स्टेशन पर थे. इस मिशन का मकसद यह जांचना था कि लंबे समय तक स्पेस में रहने से शरीर पर क्या प्रभाव पड़ता है, खासकर मसल्स, बोन्स और अन्य बॉडी वर्क पर. इस मिशन ने स्पेस में लंबी अवधि के दौरान जीवन को बेहतर समझने में मदद की, जो भविष्य के मंगल और अन्य ग्रहों की यात्रा के लिए अहम हो सकता है. वैलरी पॉलियाकोव ने अपनी यात्रा पूरी करने के बाद पृथ्वी पर लौटने पर अपने शरीर के स्वास्थ्य पर किसी खास दुष्प्रभाव का अनुभव नहीं किया, हालांकि लंबी अवधि के मिशन से कई शारीरिक और मानसिक चुनौतियां पैदा होती हैं.