अगला दलाई लामा कौन? एक उत्तराधिकारी, दो दावेदार- चीन और तिब्बत के बीच लामाओं की लड़ाई
तिब्बत के 14वें दलाई लामा ने स्पष्ट किया कि उनका उत्तराधिकारी पारंपरिक तिब्बती विधि और ‘गदेन फोडरंग ट्रस्ट’ द्वारा चुना जाएगा, जिस पर चीन ने पलटवार करते हुए कहा कि अंतिम निर्णय बीजिंग का होगा. यह विवाद तिब्बती धार्मिक स्वतंत्रता बनाम चीनी राजनीतिक हस्तक्षेप की लंबी लड़ाई का हिस्सा है. चीन, दलाई लामा की छवि को नियंत्रित कर तिब्बत पर प्रभाव बनाए रखना चाहता है, जबकि भारत और अमेरिका उनके धार्मिक अधिकारों का समर्थन कर रहे हैं.

तिब्बत के 14वें दलाई लामा ने जब हाल ही में यह कहा कि उनके उत्तराधिकारी को तिब्बतियों की स्थापित धार्मिक परंपराओं के तहत चुना जाएगा और इसका निर्णय उनके द्वारा बनाए गए 'गदेन फोडरंग ट्रस्ट' के माध्यम से होगा, तो चीन ने तुरंत पलटवार करते हुए बयान दिया- कि अंतिम निर्णय बीजिंग सरकार का होगा.
यही वह बिंदु है जहां से तिब्बती धार्मिक स्वतंत्रता और चीनी प्रभुत्व के बीच टकराव की एक लंबी कहानी शुरू होती है. आइए विस्तार से समझते हैं कि ये विवाद क्या है, कैसे शुरू हुआ, और अब इसका भविष्य क्या हो सकता है.
दलाई लामा: एक महासागर और एक गुरु
'Dalai' एक मंगोलियन शब्द है, जिसका अर्थ होता है 'महासागर' और 'Lama' एक तिब्बती शब्द है, जिसका अर्थ होता है 'गुरु'. दलाई लामा दरअसल गेलुग परंपरा के सबसे ऊंचे धार्मिक गुरु माने जाते हैं, और उन्हें करुणा के बोधिसत्व अवलोकितेश्वर का पुनर्जन्म भी माना जाता है.
दलाई लामा को पहचानता कौन है?
परंपरागत रूप से, तिब्बती बौद्ध धर्म में पंचेन लामा की भूमिका होती है अगले दलाई लामा को पहचानने की. यह एक रहस्यमयी और आध्यात्मिक प्रक्रिया होती है जिसमें दिव्य संकेत, सपनों, ध्यान और कर्मिक लक्षणों के आधार पर चयन होता है. लेकिन यही परंपरा अब चीन के राजनीतिक हस्तक्षेप की वजह से संकट में आ गई है.
1995: जब चीन ने पंचेन लामा को अगवा किया
1995 में, जब दलाई लामा ने 6 वर्षीय गेंडुन चोएकी न्यिमा को 11वें पंचेन लामा के रूप में घोषित किया, तो चीन ने उसे अगवा कर लिया. इसके बाद चीन ने अपनी पसंद के एक अन्य बालक ग्यालत्सेन नोरबू को पंचेन लामा घोषित कर दिया. इसके साथ ही चीन ने 2007 में एक आदेश जारी कर कहा कि अब कोई भी लामा (पुनर्जन्म लेने वाला धार्मिक गुरु) तभी मान्यता पाएगा जब उसे कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना की स्वीकृति मिलेगी.
14वें दलाई लामा की जीवन यात्रा
- नाम: ल्हामो थोंडुप
- जन्म: 6 जुलाई 1935, ताकत्सर गांव, अम्दो (अब चीन के किंगहाई प्रांत में)
- 1937: दो वर्ष की उम्र में 13वें दलाई लामा का पुनर्जन्म घोषित
- 1940: आधिकारिक रूप से दलाई लामा के रूप में ताजपोशी
- 1950: चीन के तिब्बत पर आक्रमण के बाद राजनीतिक प्रमुख बनने की जिम्मेदारी
1959: चीन की क्रांति और निर्वासन की शुरुआत
1954 में दलाई लामा ने बीजिंग जाकर माओत्से तुंग से बातचीत की. शुरुआत में उन्हें भरोसा था कि चीन तिब्बत को स्वायतता देगा. लेकिन 1959 में ल्हासा विद्रोह और चीनी सेना की बर्बर कार्रवाई ने उनका यह विश्वास तोड़ दिया. दलाई लामा को भारत में शरण लेनी पड़ी और तब से लेकर आज तक वह धर्मशाला में निर्वासित जीवन जी रहे हैं.
भारत: निर्वासन में दूसरा घर
जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें भारत में शरण दी और धर्मशाला तिब्बती निर्वासित सरकार का मुख्यालय बन गया. 1962 में दलाई लामा ने एक लोकतांत्रिक संविधान की रूपरेखा दी और UN ने 1959, 1961 और 1965 में तिब्बतियों के मानवाधिकारों के समर्थन में प्रस्ताव पास किए.
दलाई लामा का अंतरराष्ट्रीय प्रभाव और चीन की चिढ़
- 1973: पहली बार पश्चिमी देशों की यात्रा
- 1980: पोप जॉन पॉल द्वितीय से मुलाकात
- 1989: नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित
- 1996: चीन ने तिब्बत में दलाई लामा की तस्वीरों पर प्रतिबंध लगाया
- 1998: Apple ने एशियाई विज्ञापन अभियान से उनकी तस्वीर हटाई
- उन्हें चीन के अधिकारी 'भेड़ के वेश में भेड़िया' तक कह चुके हैं
राजनीतिक भूमिका से संन्यास
2011 में दलाई लामा ने राजनीतिक नेतृत्व से संन्यास ले लिया और गदेन फोडरंग ट्रस्ट की स्थापना की. उन्होंने कहा कि अगला दलाई लामा इस ट्रस्ट के माध्यम से चुना जाएगा, जो अब विवाद का मुख्य कारण बन गया है.
उत्तराधिकार का विवाद: चीन बनाम तिब्बती परंपरा
पक्ष | क्या कहता है |
दलाई लामा | उत्तराधिकारी तिब्बती परंपरा और ट्रस्ट द्वारा चुना जाएगा |
चीन सरकार | अगला दलाई लामा केवल बीजिंग की स्वीकृति से मान्य होगा |
चीन इस पद को राजनीतिक नियंत्रण में रखना चाहता है क्योंकि दलाई लामा तिब्बत की आजादी और पहचान का प्रतीक हैं. वहीं तिब्बती बौद्ध धर्म में पुनर्जन्म और चयन की प्रक्रिया किसी भी राजनीतिक हस्तक्षेप से मुक्त होती है.
भारत और अमेरिका की भूमिका
भारत में एक लाख से अधिक तिब्बती रहते हैं और दलाई लामा को अत्यंत सम्मान मिलता है. उनका भारत में रहना चीन के लिए एक रणनीतिक चुनौती है. अमेरिका ने 2024 में एक कानून पारित किया जिसमें कहा गया कि दलाई लामा के उत्तराधिकारी की चयन प्रक्रिया में चीन को हस्तक्षेप नहीं करने दिया जाएगा. अमेरिका के कई राष्ट्रपति दलाई लामा से मिल चुके हैं और तिब्बतियों के अधिकारों के समर्थन में बयान देते आए हैं.
भविष्य की चुनौती: क्या होगा अगला कदम?
- क्या चीन अपने द्वारा नियुक्त दलाई लामा को आगे बढ़ाएगा?
- क्या दो अलग-अलग दलाई लामा होंगे - एक बीजिंग समर्थित और एक धर्मशाला समर्थित?
- क्या यह धार्मिक विवाद किसी नए भूराजनीतिक संकट की नींव बनेगा?
यह तय है कि जैसे-जैसे दलाई लामा की उम्र बढ़ रही है, चीन अपने प्रभाव का इस्तेमाल तेज़ करेगा. लेकिन तिब्बतियों की आस्था और अंतरराष्ट्रीय समर्थन चीन की राह को आसान नहीं बनने देंगे. दलाई लामा का उत्तराधिकार सिर्फ एक धार्मिक नहीं, बल्कि आस्था, पहचान और राजनीतिक आज़ादी की लड़ाई है. चीन जहां इस व्यवस्था को नियंत्रण में रखना चाहता है, वहीं तिब्बती समुदाय इसे आत्मा और संस्कृति की लड़ाई मानता है. भारत और अमेरिका जैसे देश इस संवेदनशील मसले पर मानवाधिकारों की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं.