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पुतिन के लिए क्‍यों इतना जरूरी है Donbas, जिसे जंग खत्म करने के लिए यूक्रेन से मांग रहा रूस? जानिए इसका भू-राजनीतिक महत्व

रूस और यूक्रेन युद्ध में डोनबास (Donbas) पुतिन की रणनीति का सबसे अहम हिस्सा है. पुतिन की शर्त है कि यूक्रेन डोनबास को रूस को सौंपे, नाटो में शामिल न हो और पश्चिमी सेनाओं को अपनी जमीन पर न आने दे. डोनबास इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह रूस समर्थक बहुल क्षेत्र है और औद्योगिक संसाधनों से भरपूर है. इस पर नियंत्रण से रूस न केवल यूक्रेन पर दबाव बना सकता है बल्कि पश्चिमी देशों को भी कड़ा संदेश देता है. रूस का साफ कहना है कि बिना डोनबास और सुरक्षा गारंटी के कोई समझौता संभव नहीं है.

पुतिन के लिए क्‍यों इतना जरूरी है Donbas,  जिसे जंग खत्म करने के लिए यूक्रेन से मांग रहा रूस? जानिए इसका भू-राजनीतिक महत्व
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( Image Source:  Sora )

Putin Donbas Strategy: रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने संकेत दिया है कि वे यूक्रेन युद्ध को समाप्त करने के लिए समझौते को तैयार हैं, लेकिन इसके लिए उनकी शर्तें बेहद सख्त हैं. एक रिपोर्ट के मुताबिक, पुतिन चाहते हैं कि यूक्रेन पूरा डोनबास क्षेत्र छोड़ दे, नाटो में शामिल न हो, तटस्थ रहे और देश की ज़मीन पर किसी भी पश्चिमी सैनिक की तैनाती न होने दे.

हाल ही में अलास्का में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से पुतिन की मुलाकात हुई, जो चार साल बाद रूस-अमेरिका का पहला शिखर सम्मेलन था. तीन घंटे की बंद बैठक में ज्यादातर समय यूक्रेन पर संभावित समझौते को लेकर चर्चा हुई. पुतिन ने सार्वजनिक रूप से कहा कि यह मुलाकात शांति का रास्ता खोल सकती है, लेकिन उन्होंने शर्तें साफ तौर पर नहीं बताईं.

पुतिन ने अपनी मांगों में दिखाई नरमी

सूत्रों के अनुसार, पुतिन ने जून 2024 में रखी गई अपनी पुरानी मांगों में कुछ नरमी दिखाई है. पहले वे डोनबास के साथ-साथ खेरसॉन और जपोरिज्जिया पर भी पूर्ण कब्ज़े की मांग कर रहे थे, जिसे कीव ने 'आत्मसमर्पण' करार देकर ठुकरा दिया था. अब रूस केवल डोनबास से यूक्रेन की पूरी तरह वापसी चाहता है. बदले में पुतिन मौजूदा मोर्चों पर खेरसॉन और ज़ापोरिज़्झिया में सैन्य कार्रवाई रोकने को तैयार हैं.

वर्तमान में रूस डोनबास का लगभग 88% और खेरसॉन-ज़ापोरिज़्झिया का करीब 73% क्षेत्र नियंत्रित करता है. रिपोर्ट के मुताबिक, रूस छोटे हिस्से - खारकीव, सुमी और ड्निप्रोपेत्रोव्स्क के अधिगृहित इलाकों, को वापस देने को भी तैयार है.

क्या रूस की शर्तों को मानेंगे जेलेंस्की?

हालांकि, यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की ने किसी भी तरह की ज़मीन छोड़ने से साफ इनकार किया है. उनका कहना है कि डोनबास देश की रक्षा की सबसे मज़बूत रेखा है. यहां से पीछे हटना यूक्रेन के अस्तित्व पर हमला होगा. साथ ही नाटो सदस्यता को उन्होंने संविधान में दर्ज रणनीतिक लक्ष्य बताया है, जिस पर रूस का कोई अधिकार नहीं.

पुतिन और जेलेंस्की के बीच मुलाकात कराने पर काम कर रहे ट्रंप

ट्रंप ने पुतिन के साथ हुई मुलाकात को अब तक शांति की सबसे बड़ी संभावना करार दिया और खुद को 'शांति निर्माता' के तौर पर पेश किया. उन्होंने कहा कि वे पुतिन और जेलेंस्की के बीच मुलाकात कराने पर काम कर रहे हैं, जिसे आगे चलकर अमेरिका की भागीदारी से त्रिपक्षीय वार्ता में बदला जा सकता है. इसके बावजूद कई पश्चिमी देश जैसे ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी इस पर संदेह जता रहे हैं कि पुतिन वास्तव में युद्ध समाप्त करना चाहते हैं. वहीं पुतिन ने एक बार फिर जेलेंस्की की वैधता पर सवाल उठाया, क्योंकि उनका कार्यकाल मई 2024 में पूरा हो चुका है और युद्ध के चलते चुनाव नहीं हुए हैं. रूस का तर्क है कि अब दो ही रास्ते हैं- युद्ध या शांति, लेकिन अगर कीव डोनबास छोड़ने से इनकार करता है तो संघर्ष जारी रहेगा.

डोनबास पुतिन के लिए क्यों है जरूरी?

1. रणनीतिक महत्व

डोनबास, यानी डोनेट्स्क और लुगांस्क क्षेत्र, यूक्रेन का औद्योगिक हृदयस्थल है. यह कोयले, खनिज और कृषि से समृद्ध है. इस इलाके में स्थिति नियंत्रण रेखाओं का सामरिक लाभ भी प्रदान करता है, जिससे रूस को यूक्रेन के गहरे भीतर तक सेना भेजने की सुविधा मिलती है. पुतिन हाल की शांति चर्चाओं में डोनबास पर पूरी तरह नियंत्रण चाहते हैं. यह एक अहम शर्त बन चुका है.

2. आर्थिक और प्रतीकात्मक महत्व

डोनबास में भारी औद्योगिक संरचना और संसाधनों का संग्रह उपलब्ध है, जो युद्ध के बावजूद उसकी आर्थिक और सैनिक क्षमता को बनाए रखता है. रूढ़िवादी दृष्टि से, इस क्षेत्र पर नियंत्रण रूस की भू-राजनीतिक पहचान और ‘महान शक्ति’ की अवधारणा को भी मजबूत करता है.

3. शांति प्रस्ताव और वार्ता में दबाव

अलास्का समिट में पुतिन ने स्पष्ट रूप से शर्त रखी कि शांति तभी संभव है जब यूक्रेन डोनबास छोड़ दे, NATO न ज्वॉइन करे, और पश्चिमी सेना को खुद से दूर रखे.

हालांकि, यूक्रेन ने इन प्रस्तावों को स्वीकार किए जाने योग्य नहीं माना है. जेलेंस्की का कहना है कि यह देश की सुरक्षा, जनादेश और संवैधानिक सीमाओं से जुड़े मुद्दे हैं.

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