Russia Pearl Harbour Moment: यूक्रेन के हमले से भारत को भी है सबक लेने की जरूरत - 6 बड़ी बातें
31 मई 2025 की रात यूक्रेन ने रूस पर एक अभूतपूर्व ड्रोन हमला कर दिया, जिसे रूस का 'पर्ल हार्बर' बताया जा रहा है. 6,000 किमी दूर तक फैले रूसी एयरबेसों पर एकसाथ हमले में 41 रणनीतिक बमवर्षक और रडार विमान तबाह हो गए. यह पूरी तरह यूक्रेन का ऑपरेशन था, बिना किसी नाटो समर्थन के. हमले ने ड्रोन की निर्णायक भूमिका साबित की और भारत जैसे देशों के लिए सुरक्षा रणनीति को लेकर गंभीर चेतावनी भी छोड़ दी.

31 मई 2025 की रात, यूक्रेन ने ऐसा हमला किया जिसने रूस के सैन्य इतिहास में एक नई और चौंकाने वाली लकीर खींच दी. यूक्रेन ने रूस के खिलाफ अब तक की सबसे बड़ी और चौंकाने वाली सैन्य कार्रवाई को अंजाम दिया है. विशेष बलों ने एक साथ 6,000 किलोमीटर से अधिक दूरी पर स्थित रूसी एयरबेसों पर हमला कर दिया, जिसमें कुल 41 रणनीतिक बमवर्षक और A-50 रडार विमान नष्ट या क्षतिग्रस्त हुए. इस हमले को रूस में 'पर्ल हार्बर' जैसा बताया जा रहा है, एक ऐसा झटका जो युद्ध की दिशा पलट सकता है.
यूक्रेन ने बिना किसी पश्चिमी सहायता के यह ऑपरेशन अंजाम देकर यह भी संदेश दिया कि वह अकेले भी गहरी चोट पहुंचाने की क्षमता रखता है. ड्रोन से किए गए इन हमलों ने आधुनिक युद्ध के चेहरे को बदल दिया है, साथ ही भारत जैसे देशों के लिए भी महत्वपूर्ण सबक छोड़े हैं कि तकनीक और रणनीति का संगम कितना निर्णायक साबित हो सकता है. भारत और पाकिस्तान के बीच ऑपरेशन सिंदूर के बाद हुए हालिया संघर्ष में भी दोनों पक्षों की ओर से ड्रोन का खूब इस्तेमाल किया गया और यूक्रेन के इस सबसे बड़े हमले में भारत के लिए भी कुछ संदेश छिपे हैं. आइए इस मामले से जुड़े बड़े अपडेट जान लेते हैं.
1. इतिहास का सबसे बड़ा ड्रोन हमला: रूस के हवाई अड्डों पर कहर
यूक्रेनी स्पेशल फोर्सेज़ ने 100 से अधिक ड्रोन के ज़रिए रूस के दो महत्वपूर्ण एयरबेस ओलेन्या (मुरमान्स्क) और इरकुत्स्क (साइबेरिया) पर एकसाथ हमला बोला. यह दोनों ठिकाने एक-दूसरे से 6000 किमी दूर हैं और तीन टाइम ज़ोन में आते हैं. 41 रूसी रणनीतिक बमवर्षक विमान ज़मीन पर ही तबाह कर दिए गए, जिनमें Tu-95, Tu-22 और A-50 एयरबोर्न रडार जैसे महंगे विमान शामिल हैं. हमला शिपिंग कंटेनरों से लॉन्च हुए वर्टिकल-लिफ्ट ड्रोन के ज़रिए हुआ, जो रूस के एयरबेस के ऊपर पहुंचते ही सक्रिय हो गए. विशेषज्ञों के अनुसार, रूस का 30% बमवर्षक बेड़ा एक ही हमले में नष्ट हो गया.
2. पर्ल हार्बर की गूंज क्यों?
रूसी मीडिया ने इस हमले की तुलना 1941 में जापान द्वारा अमेरिका के पर्ल हार्बर पर किए गए हमले से की है, जिसने अमेरिका को दूसरे विश्व युद्ध में झोंक दिया था. फर्क सिर्फ इतना है कि यह हमला उस वक्त हुआ जब रूस-यूक्रेन युद्ध अपने चौथे साल में है. इस हमले के ठीक बाद 2 जून को इस्तांबुल में शांति वार्ता का दूसरा दौर होना है, यानी यह एक रणनीतिक संदेश भी था.
3. अकेले यूक्रेन ने किया हमला, नाटो नहीं
जहां रूस लंबे समय से यह दावा करता रहा है कि यूक्रेन नाटो का मोहरा है, वहीं इस हमले में यूक्रेन ने सावधानीपूर्वक यह दिखाया कि उसने यह ऑपरेशन बिना किसी पश्चिमी हथियार या समर्थन के किया. ज़ेलेंस्की ने साफ कहा कि यह हमला "केवल यूक्रेन की योजना और तकनीक से हुआ." ड्रोन यूक्रेनी थे, लॉन्च प्लेटफॉर्म कमर्शियल कंटेनर, और टार्गेटिंग हाई-रिज़ सैटेलाइट इमेज से हुई. Taurus मिसाइल या अमेरिकी हथियारों का प्रयोग नहीं हुआ.
4. रूस के परमाणु विकल्प पर खतरा?
इस हमले से एक अहम सवाल खड़ा हुआ: क्या रूस अब न्यूक्लियर अटैक की तरफ बढ़ेगा? रूस की परमाणु हमले की क्षमता का एक बड़ा हिस्सा उसके Tu-95 और Tu-22 बमवर्षकों पर निर्भर है जो अब तबाह हो चुके हैं. जवाब में रूस ने उसी रात 400 से अधिक ड्रोन यूक्रेन पर दागे. ओरेश्निक मिसाइल (रूस की हाइपरसोनिक लेकिन नॉन-न्यूक्लियर मिसाइल) से जवाबी हमला हो सकता है जिसे रोका नहीं जा सकता. रूस इस हमले को अपनी 'रणनीतिक कमजोरी' की तरह ले सकता है, और कड़ी प्रतिक्रिया दे सकता है.
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5. ड्रोन युद्ध का युग शुरू
इस युद्ध ने साबित कर दिया है कि भविष्य के युद्ध ड्रोन-निर्भर होंगे. सस्ते, तेज़ और सटीक ड्रोन अब लड़ाकू विमानों, आर्टिलरी और सैनिकों तक की जगह ले रहे हैं. FPV ड्रोन और वायर-गाइडेड ड्रोन जाम नहीं होते और इन्हें 360 डिग्री दिशा में चलाया जा सकता है. दोनों पक्ष अब ड्रोन वॉल्स बना रहे हैं, जिससे ज़मीन पर मूवमेंट लगभग असंभव हो गया है एक नई ट्रेंच वॉरफेयर शैली लौट आई है.
6. भारत को क्या सबक लेना चाहिए?
भारत को यह समझना होगा कि एयरबेस पर सबसे बड़ा खतरा तब होता है जब विमान ज़मीन पर खुले में खड़े हों. 2021 में जम्मू एयरफोर्स स्टेशन पर पाकिस्तान समर्थित ड्रोन हमला इसका संकेत था, हालांकि तब जान-माल का नुकसान नहीं हुआ. अब जब कमर्शियल सैटेलाइट इमेज आसानी से उपलब्ध है, पाकिस्तान या चीन जैसे दुश्मन भारत के एयरबेस, नेवल डॉकयार्ड और सबमरीन पोजिशन को आसानी से देख सकते हैं. भारत को अपने सैन्य ठिकानों की कैमोफ्लाजिंग, शेल्टरिंग और एंटी-ड्रोन टेक्नोलॉजी पर तत्काल ध्यान देना होगा.