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अब ना भरवाने की होगी जरूरत और न लगवाने होंगे नकली, किसी भी उम्र में निकल आएंगे दांत

ब्रिटेन के किंग्स कॉलेज, लंदन के वैज्ञानिकों ने एक ऐसा ब्रेकथ्रू किया है जिससे अब इंसान के अपने सेल्स से लैब में दांत उगाए जा सकेंगे. ये दांत न केवल नेचुरल होंगे बल्कि खुद को हील भी कर सकेंगे. फिलिंग और इंप्लांट की तुलना में यह तकनीक जैविक रूप से अनुकूल, लंबे समय तक टिकाऊ और सौंदर्यपूर्ण है.

अब ना भरवाने की होगी जरूरत और न लगवाने होंगे नकली, किसी भी उम्र में निकल आएंगे दांत
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प्रवीण सिंह
Edited By: प्रवीण सिंह

Updated on: 1 May 2025 12:05 PM IST

क्या आपने कभी सोचा है कि टूटे या सड़ चुके दांत फिर से वैसे ही नए उग जाएं जैसे बचपन में उगते थे? लंदन के किंग्स कॉलेज के वैज्ञानिकों ने ऐसा कारनामा कर दिखाया है. अब दांतों की फिलिंग या महंगे इंप्लांट की जरूरत नहीं पड़ेगी, आपके खुद के सेल्स से लैब में दांत उगेंगे और जबड़े में फिट हो जाएंगे, जैसे कभी कुदरत ने दिए थे.

ब्रेकथ्रू कैसे काम करता है?

किंग्स कॉलेज, लंदन के डेंटल रिसर्चर डॉ. शुएचेन झांग ने बताया कि ये नई तकनीक टूथ सेल्स को माउथ के भीतर विकसित करने या लैब में पूरे दांत को उगाकर ट्रांसप्लांट करने पर आधारित है. ये दांत ना केवल मजबूत होंगे बल्कि सड़े हुए हिस्सों की खुद मरम्मत भी कर सकेंगे. यानी ये दांत खुद को हील करेंगे, ठीक वैसे ही जैसे त्वचा कटने पर खुद जुड़ती है.

पुराने इलाजों की तुलना में क्यों बेहतर है ये तकनीक?

डॉ. झांग के अनुसार फिलिंग और इंप्लांट दोनों ही आर्टिफिशियल समाधान हैं. ये दांत की असली ताकत नहीं लौटा पाते, और लंबे समय में नुकसानदेह भी हो सकते हैं. नई लैब-ग्रोथ तकनीक में ह्यूमन सेल्स से विकसित दांत जबड़े की हड्डी में खुद फिट हो जाएंगे, जिससे कोई रिएक्शन या रिजेक्शन का खतरा भी नहीं रहेगा.

कैसे उगाया गया लैब में दांत?

वैज्ञानिकों ने एक खास हाइड्रोजेल मैट्रिक्स तैयार किया है, जिसमें दांत की कोशिकाएं एक-दूसरे से संवाद कर पाती हैं. यह मैट्रिक्स बिल्कुल वैसा ही वातावरण देता है जैसा शरीर में दांत बनने के समय होता है. नतीजा, दांत की कोशिकाएं लैब में भी वैसे ही विकसित होने लगती हैं जैसे शरीर में होती हैं.

भारत के लिए क्यों खास है ये खोज?

भारत में दांतों से जुड़ी समस्याएं आम हैं, चाहे वो कैविटी, गम डिजीज या समय पर इलाज की कमी हो. जर्मनी के डेंटल रिसर्चर डॉ. बिभाकर रंजन कहते हैं, "अगर यह तकनीक सफल होती है और भारत में उपलब्ध कराई जाती है, तो यह न केवल खर्च घटाएगी, बल्कि लोगों को जैविक रूप से अनुकूल और प्राकृतिक दिखने वाले दांत भी देगी."

आगे क्या?

वैज्ञानिक अब बड़े स्तर पर परीक्षण की तैयारी में हैं. अगर ये ट्रायल सफल रहे, तो कुछ सालों में दुनियाभर में डेंटल ट्रीटमेंट का चेहरा बदल सकता है. इंप्लांट की सर्जरी, बार-बार की फिलिंग, और नकली दांत सब इतिहास बन सकते हैं.

इस खोज ने साबित कर दिया है कि भविष्य सिर्फ आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का नहीं, बल्कि बायोलॉजिकल रीइंजीनियरिंग का भी है. और अगली बार जब आपका दांत गिरे, तो घबराइए मत, शायद नया दांत लैब से निकलकर आपके जबड़े में खुद उगने को तैयार हो!

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