उत्तर कोरिया में अब ‘आइसक्रीम’ और हैम्बर्गर बोला तो खैर नहीं! तानाशाह किम जोंग उन आखिर करना क्या चाह रहा है?
उत्तर कोरिया में आइसक्रीम और हैम्बर्गर जैसे साधारण शब्दों पर भी पाबंदी लगाई गई है. किम जोंग उन ने इन्हें विदेशी प्रभाव करार देते हुए राज्य-मान्यता प्राप्त शब्दों का उपयोग करने का आदेश दिया है. पर्यटन क्षेत्र में काम कर रहे गाइडों को अंग्रेज़ी शब्दों से बचते हुए स्थानीय शब्दावली अपनाने की ट्रेनिंग दी जा रही है.

आइसक्रीम जैसी साधारण चीज़ भी उत्तर कोरिया में राजनीतिक मुद्दा बन गई है. किम जोंग उन ने आइसक्रीम शब्द पर प्रतिबंध लगाते हुए इसे “विदेशी प्रभाव” करार दिया है और इसके स्थान पर राज्य-मान्यता प्राप्त शब्द जैसे ‘एसेुकिमो’ या ‘ओरेम्बोसेंगी’ (जिसका अर्थ “ठंडी मिठाई”) का प्रयोग करने का आदेश दिया है. यह कदम देश में पश्चिमी और दक्षिण कोरियाई प्रभाव हटाने की व्यापक मुहिम का हिस्सा है, विशेष रूप से पर्यटन क्षेत्र में. टूर गाइडों को विदेशी पर्यटकों से बातचीत के दौरान अंग्रेज़ी से आए शब्दों के प्रयोग से रोकते हुए उत्तर कोरियाई शब्दावली अपनाने का निर्देश दिया गया है.
आइसक्रीम, हैम्बर्गर जैसे शब्दों को भी नए नाम दिए गए हैं. इस नीति का उद्देश्य न केवल भाषा पर नियंत्रण स्थापित करना है, बल्कि बाहरी सांस्कृतिक प्रभावों से समाज को अलग रखना भी है. किम जोंग उन की यह पहल उत्तर कोरिया में पर्यटन को राजनीतिक रूप देने का प्रयास मानी जा रही है.
आइसक्रीम से ‘एसेुकिमो’ तक: भाषा पर नई पाबंदी
उत्तर कोरिया में अब आइसक्रीम को “आइसक्रीम” कहने की मनाही है. टूर गाइडों को इसकी जगह “एसेुकिमो” या “ओरेम्बोसेंगी” जैसे राज्य-स्वीकृत शब्दों का प्रयोग करने का आदेश दिया गया है. यह बदलाव पर्यटकों से संवाद करने की प्रक्रिया को कठिन बना रहा है. कई प्रशिक्षु इस बदलाव से भ्रमित हैं और मानते हैं कि विदेशी पर्यटक अंग्रेज़ी शब्दों को अधिक समझते हैं. फिर भी, कोई भी सार्वजनिक तौर पर नीति की आलोचना करने से डर रहा है. एक प्रशिक्षु ने कहा, “अगर एक गलती कर दी तो कार्यक्रम से बाहर कर दिया जाएगा.” यह दिखाता है कि भाषा पर नियंत्रण कितनी कठोरता से लागू किया जा रहा है।
‘एस्किमो’ शब्द क्यों विवादित?
एसेुकिमो शब्द की उत्पत्ति ‘एस्किमो’ से हुई है, जो आर्कटिक क्षेत्र में रहने वाले स्वदेशी समुदायों के लिए प्रयुक्त होता था. हालांकि, आज इसे अपमानजनक माना जाता है और कई समुदाय ‘इनुइट’ या ‘युपिक’ जैसे शब्द पसंद करते हैं. विशेषज्ञों का मानना है कि उत्तर कोरिया ने यह शब्द इसलिए अपनाया ताकि विदेशी प्रभाव से जुड़ा प्रतीत हो लेकिन सीधे अंग्रेज़ी शब्द न अपनाना पड़े. यह नीति भाषा के माध्यम से अपने विचार और पहचान को नियंत्रित करने की कोशिश का हिस्सा है.
हैम्बर्गर भी बदला: ‘डबल ब्रेड विद ग्राउंड बीफ’
आइसक्रीम ही नहीं, अन्य शब्दों पर भी नियंत्रण लगाया गया है. “हैम्बर्गर” जैसे लोकप्रिय शब्द को अब “डबल ब्रेड विद ग्राउंड बीफ” यानी “दाजिन गोगी ग्योंपपांग” कहा जाएगा. इसी तरह कराओके मशीन को “ऑन-स्क्रीन अकंपेनिमेंट मशीन” कहा जाता है. यह दिखाता है कि उत्तर कोरिया बाहरी प्रभावों से बचते हुए पूरी भाषा को अपनी शैली में ढालने पर जोर दे रहा है.
पर्यटन का राजनीतिकरण
कांगवोन प्रांत, जहां वोंसन को एक लक्ज़री समुद्री पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा रहा है, इस नीति को बढ़ावा देने में प्रमुख भूमिका निभा रहा है. पर्यटन मार्गदर्शन, ड्रेस कोड, व्यावसायिक व्यवहार और अनुमोदित नारे याद करने तक की ट्रेनिंग दी जा रही है. यह कार्यक्रम श्रमिक पार्टी के कैडर विभाग द्वारा संचालित है और इसमें प्रांतीय विदेशी भाषा विश्वविद्यालयों के स्नातक व नए भर्ती शामिल हैं.
भाषा से नियंत्रण: किम जोंग उन की रणनीति
सरकारी अधिकारियों का कहना है कि पर्यटन क्षेत्र में कार्यरत पेशेवरों को ऐसी भाषा सिखाई जा रही है जो उत्तर कोरिया की पहचान को मजबूती दे. साथ ही दक्षिण कोरिया और पश्चिमी देशों से जुड़े शब्दों से बचने का निर्देश है. इस नीति के पीछे उद्देश्य केवल शब्द बदलना नहीं बल्कि समाज और पर्यटकों के बीच संवाद को नियंत्रित करना है, ताकि बाहरी प्रभाव सीमित रहे और शासन की विचारधारा सुरक्षित बनी रहे.
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया और सवाल
इस भाषा नीति ने दुनियाभर के भाषाविदों और मानवाधिकार संगठनों का ध्यान खींचा है. कई विशेषज्ञ इसे सांस्कृतिक अलगाव का उदाहरण मान रहे हैं. साथ ही यह नीति यह भी दिखाती है कि किस तरह उत्तर कोरिया अपनी राष्ट्रीय पहचान को बनाए रखने के लिए बाहरी दुनिया से दूरी बनाने की कोशिश कर रहा है. हालांकि, पर्यटकों के लिए यह संवाद में बाधा बन सकती है.
पर्यटन बनाम अलगाववाद
वोंसन जैसे पर्यटन केंद्रों का उद्देश्य विदेशी पर्यटकों को आकर्षित करना है, लेकिन भाषा पर यह नियंत्रण संवाद को सीमित कर सकता है. वहीं सरकार का दावा है कि यह कदम देश की संप्रभुता और सांस्कृतिक विशिष्टता की रक्षा के लिए जरूरी है. यह पहल उत्तर कोरिया की उस रणनीति का हिस्सा है, जो अपने समाज को बाहरी प्रभावों से बचाते हुए, नियंत्रित और सीमित संपर्क के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय पर्यटन को आगे बढ़ाना चाहता है.