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अरावली पर बड़ा सवाल! सुप्रीम कोर्ट ने सरकार का 100 मीटर नियम माना, अपनी ही समिति की चेतावनी दरकिनार

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित अरावली पहाड़ियों की 100 मीटर ऊंचाई आधारित परिभाषा को मंजूरी दे दी, जबकि अदालत की अपनी विशेषज्ञ संस्था सेंट्रल एम्पावर्ड कमेटी (CEC) ने इसका विरोध किया था. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, CEC और एमिकस क्यूरी ने चेतावनी दी थी कि इस परिभाषा से अरावली की भौगोलिक अखंडता टूट जाएगी और निचली पहाड़ियां संरक्षण से बाहर हो सकती हैं.

अरावली पर बड़ा सवाल! सुप्रीम कोर्ट ने सरकार का 100 मीटर नियम माना, अपनी ही समिति की चेतावनी दरकिनार
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प्रवीण सिंह
Edited By: प्रवीण सिंह

Published on: 24 Dec 2025 9:41 AM

अरावली पहाड़ियों की सुरक्षा को लेकर सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले ने एक बड़ा संवैधानिक और पर्यावरणीय सवाल खड़ा कर दिया है. केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित अरावली की 100 मीटर ऊंचाई आधारित परिभाषा को सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार कर लिया, जबकि इसी अदालत की ओर से गठित सेंट्रल एम्पावर्ड कमेटी (CEC) ने इस परिभाषा का स्पष्ट रूप से विरोध किया था. यह खुलासा इंडियन एक्सप्रेस की एक विस्तृत रिपोर्ट में हुआ है.

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13 अक्टूबर को पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEF&CC) ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अरावली पहाड़ियों की एक नई परिभाषा प्रस्तावित की. इस प्रस्ताव के अनुसार, सिर्फ 100 मीटर या उससे ऊंची संरचनाओं को ही अरावली माना जाएगा. लेकिन इसके ठीक अगले दिन, यानी 14 अक्टूबर को, सुप्रीम कोर्ट की सेंट्रल एम्पावर्ड कमेटी ने अदालत की सहायता कर रहे एमिकस क्यूरी के. परमेश्वर को पत्र लिखकर साफ कहा कि CEC ने इस सिफारिश की न तो जांच की है और न ही इसे मंजूरी दी है. इसके बावजूद, 20 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने मंत्रालय की 100 मीटर परिभाषा को स्वीकार कर लिया.

क्या है सेंट्रल एम्पावर्ड कमेटी (CEC)?

CEC का गठन सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2002 में किया था. इसका काम अदालत के पर्यावरण और वन संबंधी आदेशों के पालन की निगरानी करना और संरक्षण से जुड़े मामलों में अदालत को विशेषज्ञ राय देना है. CEC ने अपने पत्र में यह भी रेखांकित किया कि अरावली की परिभाषा के लिए फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया (FSI) द्वारा तय किए गए मानकों को ही अपनाया जाना चाहिए, ताकि इस प्राचीन पर्वत श्रृंखला की पारिस्थितिकी की रक्षा हो सके.

FSI की परिभाषा क्या कहती है?

FSI ने सुप्रीम कोर्ट के ही 2010 के आदेश के तहत अरावली का विस्तृत मैप तैयार किया था. इस मैपिंग के अनुसार राजस्थान के 15 जिलों में 40,481 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को अरावली माना गया. न्यूनतम ऊंचाई के साथ कम से कम 3 डिग्री ढलान को अरावली की पहचान का आधार बनाया गया. इस परिभाषा के तहत निचली पहाड़ियां और छोटे हिलॉक भी संरक्षित क्षेत्र में आते हैं. यानी FSI की परिभाषा अरावली को एक सतत और भौगोलिक इकाई के रूप में देखती है, न कि केवल ऊंचाई के आधार पर.

एमिकस क्यूरी ने भी किया 100 मीटर नियम का विरोध

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, अदालत में पेश की गई एक पावरपॉइंट प्रेजेंटेशन में एमिकस क्यूरी के. परमेश्वर ने FSI के डेटा का हवाला देते हुए मंत्रालय की 100 मीटर परिभाषा को खारिज किया. प्रेजेंटेशन में कहा गया कि 100 मीटर की सीमा लागू होने से अरावली की भौगोलिक अखंडता खत्म हो जाएगी, इससे पहाड़ियों का बिखराव होगा और अरावली एक संरक्षित पर्वत श्रृंखला के रूप में बच नहीं पाएगी. परमेश्वर ने निष्कर्ष में लिखा कि MoEF&CC का प्रस्ताव अस्पष्ट (vague) है और इसे स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए.

समिति की बैठक, लेकिन CEC की राय शामिल नहीं?

मई 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने मंत्रालय को निर्देश दिया था कि वह पर्यावरण सचिव की अध्यक्षता में एक समिति बनाए, जो अरावली की एक समान परिभाषा तय करे ताकि अवैध खनन पर रोक लगाई जा सके. इस समिति में CEC की ओर से डॉ. जे.आर. भट्ट को प्रतिनिधि बनाया गया था. लेकिन 14 अक्टूबर को CEC के चेयरमैन और पूर्व DG (फॉरेस्ट्स) सिद्धांत दास ने पत्र लिखकर कहा कि समिति की 3 अक्टूबर की बैठक के ड्राफ्ट मिनट्स CEC को कभी दिए ही नहीं गए, मंत्रालय द्वारा तैयार रिपोर्ट की CEC ने कोई जांच नहीं की. वहीं मंत्रालय के हलफनामे में CEC के नाम से जो विचार पेश किए गए, वे वास्तव में डॉ. भट्ट के निजी विचार हैं, CEC के नहीं. खास बात यह भी है कि मंत्रालय द्वारा दाखिल की गई रिपोर्ट अहस्ताक्षरित (unsigned) थी.

90% अरावली पहाड़ियां खतरे में?

इंडियन एक्सप्रेस ने 26 नवंबर को एक आंतरिक आकलन का हवाला देते हुए बताया कि 100 मीटर की परिभाषा लागू होने पर 20 मीटर या उससे ऊंची 12,081 पहाड़ियों में से 91.3% बाहर हो जाएंगी. अगर कुल 1,18,575 अरावली पहाड़ियों को देखा जाए, तो 99% से ज्यादा 100 मीटर की शर्त पूरी नहीं कर पाएंगी. 20 मीटर ऊंचाई को भी महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि इतनी ऊंची पहाड़ियां रेत के तूफानों को रोकने में विंड बैरियर का काम करती हैं.

खनन का रास्ता खुलेगा?

एमिकस क्यूरी ने अपने मैप के जरिए बताया कि अगर 100 मीटर नियम लागू हुआ, तो छोटे हिलॉक अरावली की परिभाषा से बाहर हो जाएंगे. इन्हें खनन और विकास कार्यों के लिए खोला जा सकता है और इससे थार रेगिस्तान का पूर्व की ओर फैलाव तेज हो सकता है. उन्होंने इसे “गंभीर पारिस्थितिक संकट” करार दिया.

सरकार और FSI का जवाब

FSI ने सोशल मीडिया पर बयान जारी कर कहा कि उसने ऐसा कोई अध्ययन नहीं किया है जिसमें कहा गया हो कि 90% अरावली असुरक्षित हो जाएंगी. हालांकि, इंडियन एक्सप्रेस ने स्पष्ट किया कि यह आंकड़े FSI के आंतरिक आकलन पर आधारित थे, न कि किसी आधिकारिक स्टडी पर. इस बीच, पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा कि अरावली क्षेत्र के केवल 0.19% हिस्से में खनन की अनुमति है. यह क्षेत्र करीब 278 वर्ग किलोमीटर है. लेकिन मंत्रालय के अपने आंकड़े बताते हैं कि यह 278 वर्ग किमी पहले से चल रहे खनन क्षेत्र हैं - राजस्थान, गुजरात और हरियाणा में.

सबसे बड़ा सवाल अब भी अनुत्तरित

सरकार यह साफ नहीं कर पाई है कि 100 मीटर से नीचे की पहाड़ियों को बाहर करने के बाद भविष्य में खनन और विकास की कितनी गुंजाइश खुलेगी. जब तक ग्राउंड डिमार्केशन पूरा नहीं होता, यह कैसे कहा जा सकता है कि नई परिभाषा में ज्यादा क्षेत्र अरावली में आएगा? यही वह विरोधाभास है, जिसने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को पर्यावरण संरक्षण बनाम विकास की बहस के केंद्र में ला दिया है.

सुप्रीम कोर्ट
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