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पाकिस्तान कैसे बन गया दुनिया का अफीम कैपिटल? अफगानी एक्‍सपर्ट और आतंक की फंडिंग का खतरनाक गठजोड़

अफगानिस्तान में 2022 के अफीम प्रतिबंध के बाद पाकिस्तान का बलूचिस्तान क्षेत्र अफीम उत्पादन का नया केंद्र बन गया है. अफगान किसानों की तकनीकी विशेषज्ञता और स्थानीय नेटवर्क की मदद से बड़े पैमाने पर खेती हो रही है. इससे आतंकवाद को फंडिंग मिल रही है और नशीली दवाइयों का व्यापार बढ़ रहा है. भारत समेत कई देशों के लिए यह गंभीर खतरा है.

पाकिस्तान कैसे बन गया दुनिया का अफीम कैपिटल? अफगानी एक्‍सपर्ट और आतंक की फंडिंग का खतरनाक गठजोड़
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( Image Source:  X/@AFpost )
प्रवीण सिंह
Edited By: प्रवीण सिंह

Updated on: 11 Sept 2025 1:29 PM IST

दुनिया की अफीम राजधानी का केंद्र अब बदल चुका है. कभी अफगानिस्तान को अफीम उत्पादन का गढ़ कहा जाता था, लेकिन तालिबान द्वारा 2022 में अफीम की खेती पर प्रतिबंध लगाने के बाद इसकी खेती पाकिस्तान की तरफ खिसक गई है.

The Telegraph UK की रिपोर्ट्स के अनुसार सैटेलाइट तस्‍वीरों में पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में फैली विशाल अफीम की खेती दिखी है, जो अब अफगानिस्तान के ऐतिहासिक स्तरों से भी आगे निकल गई है. यह बदलाव न केवल क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए चुनौती बन रहा है, बल्कि भारत सहित कई देशों की आंतरिक सुरक्षा के लिए भी खतरे की घंटी है.

अफगानिस्तान से पाकिस्तान तक खेती का सफर

अफगानिस्तान में तालिबान शासन ने 2022 में अफीम की खेती पर रोक लगा दी थी. इसके बाद हजारों अफगान किसान, जिनके पास खेती का ज्ञान और अनुभव था, पाकिस्तान के बलूचिस्तान की तरफ पलायन कर गए. उन्होंने यहां की बंजर भूमि में आधुनिक सिंचाई तकनीकों का उपयोग कर खेती शुरू की. सोलर पंपों की मदद से अफीम की फसल को पानी दिया जा रहा है. कई स्थानीय किसानों ने भूमि किराए पर दी या हिस्सेदारी पर अफगान किसानों के साथ साझेदारी कर खेती शुरू कर दी.

बलूचिस्तान पहले से ही कानूनहीन क्षेत्र माना जाता है. यहां कई विरोधी संगठन सक्रिय हैं, जैसे बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (BLA) और इस्लामिक स्टेट. इन समूहों का साथ मिलते ही अफीम का व्यापार और अधिक संगठित हो गया. स्थानीय मिलिशिया और सुरक्षा बलों से लेकर आतंकवादी नेटवर्क तक इस व्यापार में हिस्सेदारी कर रहे हैं. एक अफगान किसान ने बताया, “बिना स्थानीय हिस्सेदारी के खेती करना नामुमकिन है. यहां के लोग जानते हैं कि कौन किससे जुड़ा है.”

खेती का पैमाना और वैश्विक प्रभाव

टेलीग्राफ की रिपोर्ट के अनुसार, बलूचिस्तान में सिर्फ दो छोटे क्षेत्रों में ही 8,100 हेक्टेयर से अधिक भूमि पर अफीम की खेती हो रही है. जबकि अफगानिस्तान के दो-तिहाई हिस्से में कुल 8,000 हेक्टेयर पर खेती होती थी. खेती के इस विस्फोट ने पाकिस्तान को दुनिया का नया अफीम केंद्र बना दिया है.

अफीम सिर्फ एक नशीला पदार्थ नहीं है; इसके बेस से ही हेरोइन, मॉर्फिन, कोडीन, ऑक्सीकोडोन जैसे अर्ध-सिंथेटिक नशीले पदार्थ बनते हैं, जो पूरी दुनिया में अपराध, नशाखोरी और हिंसा फैलाते हैं.

डेविड मैन्सफील्ड, जो अफगान अफीम व्यापार के विशेषज्ञ हैं, ने कहा कि “2025 में अफगानिस्तान का उत्पादन पाकिस्तान से कहीं पीछे रह जाएगा.” वहीं अमेरिकी राजनयिक ज़ालमय ख़लीलज़ाद ने इसे “बुरी खबर” करार देते हुए कहा कि इससे आतंकवादियों को फंड मिलेगा, अपराध बढ़ेगा और नशे की लत का संकट गहराएगा.

भारत के लिए बड़ा खतरा

भारत के लिए यह स्थिति बेहद चिंताजनक है. पंजाब सहित कई राज्यों में पहले से ही पाकिस्तान से आने वाले नशीले पदार्थों का खतरा बढ़ा है. रिपोर्ट्स के अनुसार पाकिस्तान ड्रोन के ज़रिए भी नशीली दवाइयां भारत में भेजता है. इससे दोहरा खतरा पैदा होता है - एक तरफ आतंकवाद को फंडिंग मिलती है, दूसरी तरफ भारतीय युवाओं में नशे की लत बढ़ती है. बॉलीवुड फिल्म उड़ता पंजाब में भी इसी समस्या को दर्शाया गया था. इस बीच हाल ही में क्वेटा में हुए इस्लामिक स्टेट के आत्मघाती हमले में 15 लोगों की मौत हुई थी, जिसने क्षेत्र की अस्थिरता को और उजागर कर दिया. एशिया पैसिफिक फाउंडेशन के माइकल कुगेलमैन ने कहा, “बलूचिस्तान बारूद के ढेर की तरह है… नशीली दवाइयों का व्यापार आतंकवाद के बीच अस्थिरता को और बढ़ा सकता है.”

अवैध नेटवर्क की परतें

विश्लेषकों का मानना है कि अफीम व्यापार से होने वाला लाभ पाकिस्तानी सेना, आईएसआई और उग्रवादी समूहों के हाथों में जा रहा है. किसान जब उत्पाद ले जाते हैं तो उन्हें स्थानीय सुरक्षा बलों जैसे फ्रंटियर कॉर्प्स को हिस्सा देना पड़ता है. यह बल पहले से ही भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरा रहा है.

पाकिस्तान में अफीम की अधिकता के चलते उसकी कीमतों में गिरावट आई है. 2023 के अंत में जहां एक किलो अफीम की कीमत लगभग 1,050 डॉलर थी, वह अब घटकर 370 डॉलर रह गई है. यह गिरावट न केवल स्थानीय बाजारों को प्रभावित कर रही है बल्कि वैश्विक बाजारों, खासकर यूरोप की हेरोइन सप्लाई में बदलाव ला सकती है.

डेविड मैन्सफील्ड ने कहा, “अगर बलूचिस्तान में यह विस्तार स्थायी हो गया तो दक्षिण-पश्चिम एशिया की अफीम उद्योग की संरचना बदल जाएगी। इसका प्रभाव यूरोप समेत कई देशों पर पड़ेगा.”

गोल्डन क्रेसेंट का केंद्र बदल रहा है

पाकिस्तान, अफगानिस्तान और ईरान मिलकर ‘गोल्डन क्रेसेंट’ बनाते हैं - जो दुनिया का सबसे बड़ा अफीम उत्पादन क्षेत्र माना जाता है. कभी अफगानिस्तान दुनिया का 80% अफीम और यूरोप का 95% हेरोइन सप्लायर था. लेकिन तालिबान द्वारा प्रतिबंध के बाद उत्पादन गिर गया है और अब यह कारोबार पाकिस्तान की ओर स्थानांतरित हो गया है. अफगान किसानों की तकनीकी विशेषज्ञता, सोलर सिंचाई, खेतों की साझा खेती और स्थानीय नेटवर्क की मदद से पाकिस्तान ने ‘पॉप्पी-फ्री’ का दर्जा खो दिया है. अब यह न केवल अफीम उत्पादन में आगे बढ़ रहा है बल्कि आतंकवाद और नशाखोरी की अर्थव्यवस्था का केंद्र बनता जा रहा है.

आतंकवाद को मिलने वाला फंड

विशेषज्ञों का कहना है कि इस अवैध कारोबार से जुटाई गई रकम आतंकवादी संगठनों के लिए फंडिंग का बड़ा स्रोत बन रही है. इसमें आतंकवादी संगठन, सीमा सुरक्षा बलों के भ्रष्ट तत्व और स्थानीय गिरोह शामिल हैं. भारत की सुरक्षा एजेंसियों को इस बढ़ते खतरे पर गंभीर ध्यान देना होगा.

क्या पाकिस्तान के पास कोई योजना है?

ज़ालमय ख़लीलज़ाद ने सवाल उठाया कि “क्या पाकिस्तान के पास इस समस्या से निपटने की कोई योजना है?” यह सवाल इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि नशे का व्यापार सिर्फ पाकिस्तान की सीमाओं तक सीमित नहीं रहेगा. यह पूरे दक्षिण एशिया, यूरोप और अमेरिका तक फैल सकता है.

पाकिस्तान का अफीम उत्पादन अब एक वैश्विक संकट की शक्ल ले चुका है. अफगान किसानों की विशेषज्ञता और स्थानीय नेटवर्क की मदद से यह व्यापार संगठित होकर आतंकवाद, नशाखोरी और अस्थिरता को बढ़ावा दे रहा है. भारत सहित कई देशों के लिए यह स्थिति गंभीर खतरा है. जब तक पाकिस्तान इस समस्या से निपटने के लिए ठोस नीति और अंतरराष्ट्रीय सहयोग नहीं करता, तब तक यह अवैध व्यापार न केवल उसकी अर्थव्यवस्था को प्रभावित करेगा, बल्कि क्षेत्रीय और वैश्विक सुरक्षा को भी चुनौती देता रहेगा.

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