भारत के पास है जितना बड़ा एयरक्राफ्ट कैरियर, अमेरिका बनाने जा रहा उतना बड़ा वॉर शिप; कितने दमदार होंगे Trump-Class Ships?
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप देश की नौसेना के लिए ऐसे अल्ट्रा-पावरफुल वॉरशिप कॉन्सेप्ट पर काम कर रहे हैं, जिसे मौजूदा दौर की नौसैनिक रणनीति का सबसे बड़ा गेम चेंजर माना जा रहा है. इसलिए, इसे ट्रंप क्लास वॉरशिप बताया जा रहा है. ऐसा युद्धपोत जिसकी कल्पना ही इस सोच पर आधारित है कि दुश्मन के पास उसका कोई तोड़ न हो. ऐसे वॉरशिप के ग्रुप का उन्होंने Golden Fleet नाम दिया है. यह डोनाल्ड ट्रंप की 'शक्ति से शांति' नीति के तहत प्रस्तावित वॉरशिप है, जो पारंपरिक बैटलशिप से अलग है. यह एयरक्राफ्ट कैरियर, क्रूजर, हाइपरसोनिक मिसाइल और आधुनिकतम तकनीकों से लैस होंगी.
अमेरिकी नौसेना अब पहले से ज्यादा खतरनाक होने वाली है. सोमवार को अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने गोल्डन फ्लीट इनिशिएटिव के तहत एक ‘ट्रंप-क्लास’ बैटलशिप के प्लान की घोषणा कर पूरी दुनिया को चौंका दिया. इस नए जहाज का पहले जहाज जिसका नाम USS डिफिएंट होगा. इसे ढाई साल में तैयार करने की योजना है. इस देश का ‘सबसे बड़ा’ जहाज बताया जा रहा है. साथ ही इसमें ‘बेहद खतरनाक’ हथियार ले जाने की क्षमता भी है. दरअसल, ट्रंप ने US नेवी के लिए नई जनरेशन के वॉरशिप बनाने के प्लान की घोषणा की. जिन्हें 'ट्रंप-क्लास' के नाम से जाना जाता है. ट्रंप की घोषणा के बाद भारत में इसकी चर्चा होने लगी है कि ये इंडियन वॉरशिप की तुलना में कितने ज्यादा पावरफुल होंगे. क्या भारत इसके लिए तैयार है.
अमेरिकी प्रेसिडेंट ने इस सामरिक योजना की घोषणा अपने फ्लोरिडा घर से बात करते हुए की. नए ‘ट्रंप क्लास’ के बैटलशिप “अमेरिकन मिलिट्री सुप्रीमेसी बनाए रखने, अमेरिकन शिप बिल्डिंग इंडस्ट्री को फिर से जिंदा करने और दुनिया भर में अमेरिका के दुश्मनों में डर पैदा करने की रणनीति के तहत बनाए जाएंगे.
ट्रंप क्लास बैटल वॉरशिप का मकसद समुद्र में चीन की तेजी से बढ़ती नौसेना ताकत को रोकना और उससे आगे निकलना है. रूस की हाइपरसोनिक क्षमता और इंडो-पैसिफिक में अमेरिका की घटती बढ़त को पलटना है. यही वजह है कि Trump-Class Ships को ऐसे वॉरशिप के तौर पर देखा जा रहा है, जिसके सामने आज की किसी भी नौसेना की तैयारी अधूरी मानी जा रही है.
अब तक के बैटलशिप से 100 गुना पावरफुल
ट्रंप ने नए वॉरशिप की घोषणा करते हुए कहा, “जैसा कि आप जानते हैं, हमें शिप की बहुत जरूरत है। उनमें से कुछ पुराने, थके हुए और बेकार हो गए हैं, और हम बिल्कुल उल्टी दिशा में जा रहे हैं.” फिर उन्होंने ‘ट्रंप क्लास’ वॉरशिप की घोषणा की और कहा कि वह उनके डिजाइन में एक्टिव रोल निभाएंगे. ट्रंप ने आगे कहा, “US नेवी मेरे साथ इन शिप के डिजाइन को लीड करेगी क्योंकि मैं बहुत एस्थेटिक इंसान हूं.” ट्रंप दो नए बैटलशिप बनाने की मंजूरी दे दी है. 25 बनाने का प्लान है. ट्रंप के मुताबिक, "वे अब तक बने किसी भी बैटलशिप से सबसे तेज, सबसे बड़े और अब तक 100 गुना ज्यादा पावरफुल होंगे."
बताया जा रहा है कि ट्रंप क्लास के जहाजों में एक नई न्यूक्लियर-आर्म्ड सी-लॉन्च्ड क्रूज मिसाइल, या SLCM-N भी होगी, जो अभी डेवलपमेंट में है. US प्रेसिडेंट ने बताया कि ये जहाज कमांड और कंट्रोल प्लेटफॉर्म भी होंगे, जो क्रू वाले और बिना क्रू वाले प्लेटफॉर्म की देखरेख करेंगे. इसके अलावा, डिजाइन में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से चलने वाली क्षमताएं भी होंगी. इस वॉरशिप का वजन 30,000 से 40,000 टन के बीच होगा. ट्रंप की मानें तो ये वारशिप न्यूक्लियर-आर्म्ड सी-लॉन्च्ड क्रूज मिसाइलें भी ले जाने में सक्षम होंगे. इसमें अमेरिकी स्टील का इस्तेमाल होगा और उन्हें रोबोट और इंसान असेंबल करेंगे.
द पॉलिटिको की एक रिपोर्ट के अनुसार अमेरिकी नौसेना लंबे समय से समय पर और बजट के भीतर जहाज बनाने में संघर्ष कर रही है. वर्तमान में निर्माणाधीन हर नौसेना जहाज कम से कम एक साल पीछे चल रहा है. शिपयार्ड कई सालों से अपनी उत्पादन लाइनों पर काम करने के लिए पर्याप्त कर्मचारियों को काम पर रखने और बनाए रखने के लिए संघर्ष कर रहे हैं.
ट्रम्प की युद्धपोत योजनाओं की चुनौतियां
पहली चुनौतियां यह है कि इस कार्यक्रम के लिए मौजूदा पेंटागन बजट में कोई स्पष्ट फंडिंग नहीं है, जिससे यह स्पष्ट नहीं है कि काम कब और कैसे शुरू होगा. इसके अलावा, रक्षा विश्लेषकों का मानना है कि ढाई साल में नए जहाज देने की ट्रम्प की समय-सीमा बहुत महत्वाकांक्षी है. परियोजना से जुड़े दो लोगों ने पॉलिटिको को बताया कि जहाज के लिए इंजीनियरिंग योजनाओं की कमी को देखते हुए, समय-सीमा को पूरा करना लगभग असंभव होगा. द पॉलिटिको के मुताबिक, कर्टनी ने कहा, "एक वजह है कि अमेरिकी नौसेना ने 1944 में बैटलशिप बनाना बंद कर दिया था और राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन के 600 जहाजों के बेड़े ने उन्हें वापस नहीं लाया." लेकिन इन तर्कों के बावजूद, युद्ध सचिव पीट हेगसेथ ने कहा कि नए जहाज भविष्य के अमेरिकियों को ट्रंप का कर्जदार बना देंगे.
Trump-Class Ships - असल में क्या हैं?
कुल मिलाकर Trump-Class Ships एक नई, विस्तृत और महंगी नौसेना परियोजना का नाम है जो अमेरिका को समुद्र में सैन्य व नैतिक श्रेष्ठता प्रदान करने का दावा करती है। ये जहाज़ अपने आकार, हथियारों और तकनीक के कारण चर्चा में हैं और संभावित रूप से भविष्य की नौसैनिक क्षमता की दिशा को प्रभावित कर सकते हैं।
Trump-Class Ships अमेरिका की नौसेना के लिए प्रस्तावित एक नई श्रेणी के भारी युद्धपोत हैं, जिन्हें “बैटलशिप” (Battleship) के रूप में डिजाइन किया जा रहा है. ये जहाज बड़े, शक्तिशाली और अत्याधुनिक हथियार प्रणालियों से लैस होंगे. इसमें हाइपरसोनिक मिसाइलें, इलेक्ट्रिक रेलगन, उच्च-शक्ति लेज़र सिस्टम, नाभिकीय-सक्षम समुद्र-लॉन्च क्रूज मिसाइल, ये जहाज अनुमानतः 30,000-40,000 टन के होंगे और बहुत उच्च तकनीक से लैस होंगे, जो मौजूदा युद्धपोतों से कहीं अधिक शक्तिशाली माने जा रहे हैं.
ट्रंप क्लास पहला बैटलशिप USS Defiant के नाम से शुरू होगा. ट्रंप ने कहा है कि पहले दो जहाज बनाए जाएंगे. हमारी योजना 25 ऐसे शिपों की “Golden Fleet” बनाने की है.
टंप का फ्यूचर बैटलशिप चर्चा में क्यों?
ट्रंप-क्लास जहाजों की घोषणा कई कारणों से सुर्खियों में है. यह अमेरिका में लगभग दशकों बाद 'बैटलशिप' पुनरुद्धार योजना है. युद्धपोतों की वह श्रेणी जो द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से कम महत्वपूर्ण मानी गई थी. इन जहाजों को कहा जा रहा है कि वे 100 गुना अधिक शक्तिशाली होंगे, जो मौजूदा फ्लीट से कहीं आगे हैं. इन्हें राष्ट्रपति ट्रंप के नाम पर रखा गया है, जो असामान्य और विवादास्पद है.
इन जहाजों के प्रस्तावित हथियार और तकनीक भविष्य के युद्ध के स्वरूप को बदल सकते हैं, जैसे हाइपरसोनिक मिसाइल और लेजर हथियार जो पारंपरिक समुद्री युद्ध की सोच से अलग हैं.
इस घोषणा के साथ ही यह भी खबर में है कि अमेरिका की वर्तमान नौसेना कुछ जहाजों को रिटायर और कुछ योजनाओं को बदल रही है, जो रणनीतिक प्राथमिकताओं और संसाधनों के मुद्दों को लेकर बहस का विषय है. नौसेना निर्माण उद्योग को फिर से जिंदा रखना.
अमेरिका को इसकी जरूरत क्यों पड़ी?
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन ने इस परियोजना को तीन मुख्य वजहों से जरूरी बताया है. इनमें पहला समुद्र में अमेरिकी नौसेना के प्रभुत्व को बरकरार रखना और आधुनिक परमाणु, लेजर, रेल गन और हाइपरसोनिक मिसाइलों से लैस रखना.
1. वैश्विक समुद्री प्रभुत्व बनाए रखना
ट्रंप का कहना है कि अमेरिका को समुद्र में अपनी ताकत को बढ़ाने की जरूरत है ताकि वह वैश्विक शक्ति संतुलन को बनाए रख सके और संभावित विरोधी ताकतों के खिलाफ कूटनीतिक व सैनिक दबाव बनाए रखे.
2. नौसैनिक निर्माण उद्योग को पुनर्जीवित करना
अमेरिका की शिपबिल्डिंग उद्योग वर्षों से धीमी पड़ गई है. ट्रंप-क्लास परियोजना को घर में जहाज बनाने जैसी औद्योगिक क्षमता को बढ़ावा देने के रूप में भी पेश किया जा रहा है.
3. आधुनिक हथियारों लैस फ्लीट तैयार करना
जहाजों में अत्याधुनिक तकनीकों को शामिल करने से अमेरिका को सैन्य प्रौद्योगिकी में आगे रहने का दावा मिलेगा. विशेष रूप से हाइपरसोनिक मिसाइल और लेजर/रेलगन सिस्टम के साथ. ट्रंप का यह भी कहना है कि इन जहाज़ों से अमेरिकी नौसेना हर संभावित खतरे के खिलाफ तैयार रहेगी और भविष्य की चुनौतियों का सामना कर सकेगी.
ट्रंप-क्लास जहाजों की इनसे होती है तुलना
Arleigh Burke-Class Destroyers
ये आज अमेरिका के मुख्य सतह युद्धपोत (surface combatants) हैं, लेकिन अपेक्षाकृत छोटे और विशिष्ट भूमिकाओं वाले हैं. ट्रंप-क्लास जहाज इनसे बहुत बड़े और अधिक शक्तिशाली होंगे.
Iowa-Class Battleships
अमेरिका के युद्धपोतों के आखिरी बड़े उदाहरण थे, जिन्हें द्वितीय विश्व युद्ध के समय में बनाया गया था. ट्रंप-क्लास को आधुनिक संस्करण के रूप में देखा जा रहा है, लेकिन अधिक उन्नत तकनीक के साथ.
आधुनिक एयरक्राफ्ट कैरियर्स
जैसे USS Gerald R. Ford-Class कैरियर्स मुख्य रूप से विमान वाहक भूमिका निभाते हैं. ट्रंप-क्लास जहाज स्वतंत्र युद्ध क्षमता और आक्रमण शक्ति के लिए डिजाइन किए गए हैं. आज समुद्र में अमेरिका को वास्तविक चुनौती सिर्फ चीन और सीमित स्तर पर रूस ही दे सकते हैं, बाकी देश सहयोगी या क्षेत्रीय शक्ति हैं.
चीन
अमेरिका के सामने समुद्र में चुनौती देने वाले बैटल वॉरशिप की राह में चीन सबसे बड़ी उभरकर सामने आ रहा है. बहुत हद तक चीन आज अमेरिका को समुद्र में सबसे गंभीर चुनौती दे रहा है. चीन के पास Liaoning, Shandong, Fujian, Type-055 Destroyer जैसे एयरक्राफ्ट कैरियर हैं. ये क्रूजर जैसी क्षमता, 112 VLS मिसाइल से सेल, Anti-ship, Air Defense सिस्टम, लैंड अटैक से लैस हैं. फिर चीन के पास न्यूक्लियर सबमैरीन (SSBN & SSN) भी हैं. यानी चीन के पास South China Sea और Taiwan Strait में अमेरिका को सीधी टक्कर देने की क्षमता है.
रूस
रूस पुरानी लेकिन घातक ताकत वाला देश है. उसके पास पास कम जहाज हैं, लेकिन वे बेहद भारी और खतरनाक हैं. रूस के नौसैनिक बेड़े में Kirov-Class Nuclear Battlecruiser, दुनिया का सबसे बड़ा surface combat ship, Hypersonic Zircon मिसाइल, Admiral Kuznetsov Aircraft Carrier (सीमित क्षमता), न्यूक्लियर सबमैरीन बोरेई और यासेन क्लास हैं. समुद्र में रूस की असली ताकत सबमैरिन वारफेयर है.
ब्रिटेन
अमेरिका का सहयोगी ब्रिटेन के पास क्वीन एलिजाबेथ क्लास एयरक्राफ्ट करियर दो हैं. टाइप 45 Destroyers (बेहद उन्नत एयर डिफेंस), न्यूक्लियर सबमरीन हैं. ये अमेरिका को चुनौती नहीं दे सकते लेकिन बराबरी की समुद्री क्षमता है.
फ्रांस
फ्रांस के पास यूरोप की सबसे मजबूत नौसेना है. फ्रांस के पास चार्ल्स डी गौले (Nuclear Aircraft Carrier), बैराकुडा क्लास न्यूक्लियर सबमैरिन, ब्लू वाटरवे नैवी क्षमता है.
भारत (इंडो-पैसिफिक में उभरती ताकत)
भारत के पास एयरक्राफ्ट करियर आईएनएस विक्रांत, आईएनएस विक्रमादित्य, डिस्ट्रॉयर्स कोलकाता और विशाखापट्टनम क्लास, न्यूक्लियर सबमरीन आईएनएस अरिहंत है. समुद्र में भारत अमेरिका को चुनौती देने की स्थिति में नहीं हैं, लेकिन क्षेत्रीय शक्ति संतुलन बनाने में उसकी भूतिका अहम है.
जापान
जापान तकनीकी रूप से बेहद सक्षम ताकत है. उसके पास Izumo-Class Helicopter Destroyers (Light Aircraft Carrier) और एडवांस एजिस डिस्ट्रॉयर हैं. जापान समुद्री ताकत बनने को लेकर कई संवैधानिक सीमाएं हैं, लेकिन उसके पास तकनीक अमेरिका के समान है.
उत्तर कोरिया
उत्तर कोरिया के पास बैलिस्टिक सबमैरिन और कोस्टल अटैक क्षमता है. जर्मनी, इटली, ऑस्ट्रेलिया, सऊदी अरब के पास आधुनिक नौसेना है, लेकिन capability gap बहुत बड़ा है.





