लोकतंत्र या राजतंत्र... क्या चाहते हैं नेपाल के लोग? 17 सालों में एक बार भी नहीं बनी स्टेबल सरकार
नेपाल में राजशाही की वापसी की मांग तेज़ हो गई है. जनता गणतंत्र से निराश होकर फिर से राजा को वापस बुलाने की बात कर रही है. काठमांडू में विरोध प्रदर्शन बढ़ रहे हैं, जबकि सरकार ने पूर्व राजा की सुरक्षा घटा दी है. भ्रष्टाचार, राजनीतिक अस्थिरता और नेतृत्व की कमी से लोग नाराज़ हैं. यह आंदोलन किसी पार्टी से जुड़ा नहीं, बस देश की स्थिरता चाहता है.
दरबार स्क्वायर में तालेजू मंदिर की पहली घंटियां शांत होते ही, काठमांडू की गलियों में फुसफुसाहटें तेज़ हो गईं, "राजा आउनपर्चा" (राजा को लौटना होगा). रामनवमी के समीप आते ही यह भावना और प्रबल हो गई. लोग, जिन्होंने वर्षों पहले राजशाही को त्याग दिया था, अब फिर से राजा की वापसी की मांग करते हुए सड़कों पर उतर आए हैं.
टाइम्स ऑफ़ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, काठमांडू के इंद्र चौक की एक चाय दुकान पर बैठे अमृत थापा जैसे कई लोग मानते हैं कि गणतंत्र ने सिर्फ़ अराजकता दी, स्थिरता नहीं. नेपाल में 2008 में राजशाही के अंत के बाद से अब तक कई बार सरकारें बदलीं, लेकिन जनता की समस्याएं जस की तस बनी रहीं. अब, बसंतपुर से लेकर थमेल तक, नेपाल में राजशाही के समर्थन में अभूतपूर्व विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं.
पूर्व राजा की सुरक्षा में कटौती
सरकार ने पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह की सुरक्षा में कटौती कर दी है. पहले जहां 25 सशस्त्र पुलिस बल (APF) उनकी सुरक्षा में थे, अब इसे घटाकर 15 कर दिया गया है. प्रशासन के अनुसार, यह कदम पूर्व राष्ट्राध्यक्षों को दी जाने वाली सुविधाओं में कटौती का हिस्सा है, लेकिन इसे जनता की भावनाओं को दबाने के प्रयास के रूप में भी देखा जा रहा है.
विरोध प्रदर्शनों का बढ़ता दायरा
राजधानी की सड़कों पर हजारों नहीं, बल्कि लाखों लोग उतर आए हैं. पुलिस द्वारा हाल ही में की गई गोलीबारी में दो लोगों की मौत हुई और सैकड़ों घायल हुए, लेकिन आंदोलन थमा नहीं. सरकार ने कर्फ्यू लगाया, लेकिन अगले दिन भीड़ और बड़ी हो गई. लोग कहते हैं कि उन्होंने पहले भी कर्फ्यू देखे हैं, लेकिन ऐसा कोई नेता नहीं देखा, जो वास्तव में जनता की बात सुने.
जनता का बदलता रुख
इस आंदोलन की सबसे खास बात यह है कि यह किसी राजनीतिक पार्टी से नहीं जुड़ा है. यह किसी नेता का समर्थन नहीं करता, बल्कि सिर्फ़ राजशाही की वापसी की मांग करता है. लोग कहते हैं कि वे राजा को रक्षक नहीं मानते, लेकिन कम से कम वह एक ऐसा चेहरा थे, जिसके प्रति वे जवाबदेही महसूस करते थे. अब, जनता को सिर्फ़ भ्रष्टाचार, अनिश्चितता और अस्थिरता का सामना करना पड़ रहा है.
बनी है राजनीतिक अस्थिरता
नेपाल में पिछले 17 वर्षों में एक दर्जन से अधिक सरकारें आईं और गईं, लेकिन कोई भी स्थिर शासन नहीं दे पाई. भ्रष्टाचार और सत्ता की खींचतान ने जनता को निराश कर दिया है. एक टैक्सी ड्राइवर का कहना है, "पहले हमारे पास कम था, लेकिन राजा के अधीन स्थिरता थी. अब, नेता हमें सिर्फ़ लूट रहे हैं." मध्यम वर्ग अभी भी उलझन में है. वे राजशाही नहीं, बल्कि स्थिरता चाहते हैं.
सिर्फ़ देश की मांग
इस आंदोलन की एक और विशेषता यह है कि यहां कोई पार्टी झंडा नहीं है, सिर्फ़ नेपाल का राष्ट्रीय ध्वज है. त्रिदेवी मंदिर के पास झंडे बेचने वाले एक युवक ने कहा, "लोग अब चेहरों से थक चुके हैं. वे सिर्फ़ देश चाहते हैं." बढ़ती अराजकता के बीच, जनता में यह भावना तेज़ हो रही है कि नेपाल को फिर से एक नेतृत्व की ज़रूरत है. भले ही वह राजशाही के रूप में क्यों न हो.





