चीन ने माउंट एवरेस्ट को कहा ‘चोमोलुंगमा’, क्या बदलेगा दुनिया की सबसे ऊंची चोटी का नाम?
नेपाल के सागरमाथा संवाद में चीन के अधिकारी शियाओ जी ने माउंट एवरेस्ट को लगातार उसके चीनी नाम ‘चोमोलुंगमा’ से संबोधित किया. जबकि कार्यक्रम का नाम नेपाली नाम सागरमाथा पर था, चीन के इस कदम ने नेपाल और अंतरराष्ट्रीय मंच पर विवाद छेड़ दिया. नेपाल सरकार की प्रतिक्रिया फिलहाल न के बराबर है, जिससे कूटनीतिक चर्चाएं तेज हुई हैं.

नेपाल में हाल ही में आयोजित सागरमाथा संवाद (Sagarmatha Sambaad) के दौरान माउंट एवरेस्ट के नाम को लेकर एक अनजाना राजनीतिक संकेत सामने आया है. इस कार्यक्रम में चीन के नेशनल पीपुल्स कांग्रेस के स्थायी समिति के उपाध्यक्ष शियाओ जी ने लगभग 20 मिनट के भाषण में माउंट एवरेस्ट को बार-बार उसके चीनी नाम 'चोमोलुंगमा' (Chomolungma) से संबोधित किया. इस बार-बार नाम के इस्तेमाल ने नेपाल और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कयास और चर्चा को जन्म दिया कि क्या चीन एवरेस्ट के नाम को बदलने या चीन के नाम को बढ़ावा देने की कोशिश कर रहा है?
यह संवाद कार्यक्रम खुद माउंट एवरेस्ट के नेपाली नाम ‘सागरमाथा’ के सम्मान में रखा गया था, जो नेपाल की इस पहाड़ी चोटी पर अपनी सांस्कृतिक और भौगोलिक जिम्मेदारी को दर्शाता है. बावजूद इसके, चीनी अधिकारी का केवल ‘चोमोलुंगमा’ नाम का उपयोग इस बात का संकेत माना जा रहा है कि चीन अपने संस्करण को प्रभावी तरीके से अंतरराष्ट्रीय मंच पर स्थापित करने का प्रयास कर रहा है. अन्य प्रतिनिधि और नेपाल के अधिकारी इस नामकरण के प्रति चुप्पी साधे रहे, जिससे इस विवादित स्थिति में और संदेह पैदा हो गया.
नेपाल के पीएम को नहीं है आपत्ति
नेपाल के उच्च स्तरीय प्रतिनिधि जैसे प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली, विदेश मंत्री आरजू राणा देउबा, और वित्त मंत्री बिष्णु पौडेल कार्यक्रम में मौजूद थे, लेकिन किसी ने भी सार्वजनिक रूप से इस नाम उपयोग पर आपत्ति नहीं जताई. यह मौन कूटनीतिक नजरिए से कई सवाल उठाता है, खासकर तब जब प्रधानमंत्री ओली ने कुछ ही दिनों पहले ग्लोबल कम्युनिटी से इस पर्वत को उसके नेपाली नाम ‘सागरमाथा’ से मान्यता देने की अपील की थी. इस चुप्पी को नेपाल-चीन संबंधों की नाजुकता से जोड़कर देखा जा रहा है.
‘चोमोलुंगमा’ करना चाहता है नाम
चीन का माउंट एवरेस्ट को ‘चोमोलुंगमा’ कहने का सिलसिला केवल भाषण तक सीमित नहीं रहा. यह कदम चीन की उस रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है, जिसमें वह अपने भौगोलिक और सांस्कृतिक दावों को मजबूत करने के लिए नामकरण की राजनीति का इस्तेमाल कर रहा है. हिमालय क्षेत्र में बढ़ती चीन की भू-राजनीतिक महत्वाकांक्षा के बीच यह कदम नेपाल की संप्रभुता और राष्ट्रीय पहचान के लिए एक चुनौती के रूप में देखा जा रहा है.
दोनों देशों के बीच बढ़ेगा कूटनीतिक तनाव
नेपाल के विदेश मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा कि इस मामले पर सरकार ने अभी कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है, लेकिन वे इस विषय को गंभीरता से ले रहे हैं. नेपाल के लिए माउंट एवरेस्ट केवल एक प्राकृतिक चोटी नहीं, बल्कि राष्ट्रीय गर्व का प्रतीक है. ऐसे में चीन की इस तरह की चालों से दोनों देशों के बीच कूटनीतिक तनाव बढ़ सकता है, जो क्षेत्रीय स्थिरता के लिए चिंताजनक है.
राष्ट्रीय गौरव पर चोट
अंततः, यह विवाद माउंट एवरेस्ट के नाम के इर्द-गिर्द नहीं, बल्कि नेपाल की सांस्कृतिक पहचान और क्षेत्रीय राजनीति के बीच एक टकराव का रूप ले चुका है. चीन का यह कदम हिमालयी भू-राजनीति में अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश है, जबकि नेपाल इसे अपने राष्ट्रीय गौरव पर चोट मान रहा है. आने वाले समय में इस विवाद का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कैसे असर होगा, यह देखना दिलचस्प होगा.