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NATO की तर्ज पर अरब आर्मी! सुरक्षा का सवाल या इस्लामिक राष्ट्रों का पावर ब्लॉक, कौन होगा अगुवा?

इजरायल की ओर से कतर पर हमले के बाद नाटो की तर्ज पर अरब देशों के एक साझा सैन्य संगठन यानी "अरब आर्मी" के गठन की चर्चा ने वैश्विक राजनीति में नई हलचल पैदा कर दी है. सवाल यह है कि यह कदम सुरक्षा जरूरतों की देन है या फिर इस्लामिक राष्ट्रों का नया पावर ब्लॉक खड़ा करने की रणनीति? इसमें कौन देश अगुवाई करेगा, मिशन क्या होगा और इसका असर पश्चिम एशिया से लेकर पूरी दुनिया की शक्ति-संतुलन राजनीति पर कैसे पड़ेगा?

NATO की तर्ज पर अरब आर्मी! सुरक्षा का सवाल या इस्लामिक राष्ट्रों का पावर ब्लॉक, कौन होगा अगुवा?
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( Image Source:  Meta AI and perplexity )

इजरायल और इस्लामिक देशों के बीच युद्ध होना कोई नई बात नहीं है, लेकिन कतर के दोहा में इजरायली हमले के बाद 57 मुस्लिम देश एक बार फिर अपनी-अपनी सुरक्षा को लेकर बैठक कर रहे हैं. यह बैठक अरब लीग और ऑर्गनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कोऑपरेशन (OIC) ने बुलाई है. मिस्र, पाकिस्तान, तुर्की, इराक, सऊदी अरब जैसे इस्लामिक देश चाहते हैं कि नाटो की तरह मुस्लिम राष्ट्रों का भी सैन्य संगठन बनाने की जरूरत है. फिलहाल, अलग-अलग मुस्लिम देशों की ओर से मुस्लिम फोर्स, अरब नाटो और इंडिपेंडेंट मुस्लिम नाटो बनाने का प्रस्ताव रखा गया है.

इसका मकसद 9 सितंबर को कतर पर हुए इजरायली हमले का जवाब देना है. इस हमले में हमास के 5 मेंबर और एक कतरी सुरक्षा अधिकारी मारा गया था. यह हमला उस समय हुआ जब हमास की एक टीम गाजा में दो साल से चल रहे युद्ध को खत्म करने के लिए अमेरिका के प्रस्ताव पर बात करने दोहा में थी.

इस्लामिक देशों की मीटिंग से पहले ईरान के राष्ट्रपति मसूद पज शकियान ने मुस्लिम देशों से इजराइल के साथ रिश्ते तोड़ने को कहा है. उन्होंने इस्लामिक देशों से एकजुट होने की अपील की. वहीं, पाकिस्तान ने सभी इस्लामी देशों को NATO जैसे ज्वाइंट फोर्स बनाने का सुझाव दिया है.

सैन्य संगठन बनाने की मांग तेज

इस बीच नाटो की तरह मुस्लिम देशों का एक अरब नाटो या मिलिट्री ऑर्गेनाइजेशन बनाने चर्चा है. अरब लीग (Arab League) के कुछ सदस्य देश एक ऐसे संयुक्त सैन्य बल पर विचार कर रहे हैं जो NATO जैसे काम करे. मिस्र ने शर्म एल शेख (Sharm El Sheikh) में अरब शिखर सम्मेलन के दौरान यह प्रस्ताव 2015 में सभी के सामने रखा था. लेकिन किसी ठोस कमांड-स्ट्रक्चर या मुख्यालय-निर्माण पर नहीं पहुंचा था. अब फिर से मिस्र ने कतर पर इजरायली हमले के बाद अरब नाटो (मुस्लिम देशों का एक मिलिट्री ऑर्गेनाइजेशन) बनाने का प्रस्ताव रखा है. यानी नाटो की तर्ज पर अरब आर्मी.

UAE, कतर और ईरान अरब NATO में PAK को देंगे जगह?

मिस्र के इस प्रस्ताव पर पाकिस्तान बढ़ चढ़कर बातें कर रहा है. सवाल ये है कि क्या अरब और मुस्लिम देश मिलकर एक ‘इस्लामिक नाटो’ जैसा सैन्य गठबंधन बना सकते हैं? क्या पाकिस्तान इस अलायंस में शामिल होने की हिम्मत कर पाएगा? अगर ऐसा हुआ तो भारत के लिए कितनी बड़ी चुनौती होगी? यूएई, कतर और ईरान जैसे देश जो भारत के करीबी दोस्त माने जाते हैं, क्या पाकिस्तान को इस गठबंधन में जगह देने के लिए तैयार होंगे? दरअसल, दोहा में हुआ इजरायल हमला रीजनल सिक्योरिटी के लिए एक टर्निंग पॉइंट साबित हो रहा है.

इस्लामी सैन्य गठबंधन की अपील - इराक

इराक के प्रधानमंत्री मोहम्मद शिया अल-सुदानी ने ‘इस्लामिक सैन्य गठबंधन’ बनाने की अपील की. उन्होंने अल जजीरा से कहा कि मुस्लिम देशों को मिलकर अपनी रक्षा के लिए एक ज्‍वाइंट फोर्स बनानी चाहिए. मिस्र चाहता है कि सेंट्रल ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन (बगदाद पैक्ट) की तरह एक कोएलिशन बनाया जाए, जिसमें सारे मुस्लिम मुल्क शामिल हों.

पाकिस्तान क्यों चाहता है अरब नाटो

पाकिस्तान जो दुनिया का एकमात्र मुस्लिम मुल्क है, वह बढ़ चढ़कर ‘अरब नाटो’ बनाने की वकालत कर रहा है. पाकिस्तान ने कहा, किसी भी मुल्क को इस्लामिक देशों पर हमला करने और लोगों की हत्या करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए.

पाक क्यों दे रहा जोर?

क्या पाकिस्तान इस मुस्लिम नाटो में शामिल होने की जुर्रत कर पाएगा? पाकिस्तान पहले से ही ऐसे गठबंधनों में रुचि दिखाता रहा है. सऊदी के नेतृत्व वाले इस्लामिक मिलिट्री अलायंस में राहील शरीफ की नियुक्ति इसका उदाहरण है.

हाल की रिपोर्ट्स से संकेत मिलते हैं कि पाकिस्तान, तुर्की और मिस्र मिलकर एक ‘मुस्लिम फोर्स’ का प्रस्ताव दे रहे हैं, जहां एक देश पर हमला सभी पर हमला माना जाएगा. पाकिस्तान के लिए यह गठबंधन आर्थिक और सैन्य फायदे का स्रोत हो सकता है. खासकर जब वह आर्थिक संकट से जूझ रहा है, लेकिन क्या पाकिस्तान की आर्थिक निर्भरता पर अमेरिका और सऊदी अरब का प्रभाव इसे रोक सकता है?

खुद की रक्षा नहीं कर पाने वाला किस-किसकी करेगा रक्षा

पाकिस्तान खुद की रक्षा तो नहीं कर सकता लेकिन मुस्लिम वर्ल्ड का लीडर बनने की ख्वाहिश जरूर रखता है. एक्सपर्ट्स का कहना है कि पाकिस्तान की जुर्रत होगी, क्योंकि वह खुद को मुस्लिम दुनिया का लीडर प्रोजेक्ट करना चाहता है. पाकिस्तान ‘इस्लामिक नाटो’ का सुझाव दे रहा है और इजराइल को सजा देने की बात कर रहा है.

भारत के लिए बनेगा टेंशन!

अगर पाकिस्तान इस गठबंधन में शामिल हो गया तो भारत के लिए एक बड़ा खतरा साबित हो सकता है. पाकिस्तान पहले से ही चीन के साथ मिलकर भारत को घेरने की कोशिश करता है. अगर मुस्लिम नाटो में पाकिस्तान शामिल होता है, तो यह गठबंधन कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान का साथ दे सकता है, जिससे भारत पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ेगा. भारत के करीबी दोस्त जैसे यूएई और कतर भी इसमें शामिल हो सकते हैं, जो भारत-पाकिस्तान संबंधों को प्रभावित करेगा.

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक यदि 20 से ज्यादा मुस्लिम देश पाकिस्तान के साथ मिलकर ‘इंडिपेंडेंट मुस्लिम नाटो’ बनाते हैं, तो भारत और मुस्लिम देशों के बीच तनाव बढ़ सकता है. तुर्की का पाकिस्तान को सैन्य सहायता देना, जैसे ऑपरेशन सिंदूर में, पहले से ही भारत के लिए चिंता का विषय है.

मिस्र का आइडिया कितना होगा असरदार?

इतिहास गवाह है कि अरब और मुस्लिम देशों के बीच ऐसे गठबंधन पहले भी बने हैं, लेकिन वे ज्यादा दिन नहीं टिके. उदाहरण के तौर पर, 1955 से 1979 तक सेंट्रल ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन रहा, जिसमें पाकिस्तान, इराक, ईरान, तुर्की और ब्रिटेन शामिल थे लेकिन ईरान की इस्लामी क्रांति के बाद यह बिखर गया.

हाल के वर्षों में सऊदी अरब ने ‘इस्लामिक मिलिट्री काउंटर टेररिज्म कोएलिशन’ बनाया, जिसमें पाकिस्तान के पूर्व सेनाध्यक्ष राहिल शरीफ को कमांडर बनाया गया, लेकिन यह भी ज्यादा प्रभावी नहीं साबित हुआ.

क्या है अरब लीग और OIC?

अरब लीग 22 अरब देशों का एक संगठन है. इसे 1945 में बनाया गया था. इसका मकसद अरब देशों के बीच सहयोग बढ़ाना, उनकी एकता मजबूत करना और उनके साझा हितों की रक्षा करना है. OIC 57 मुस्लिम देशों का एक अंतरराष्ट्रीय संगठन है, जिसे 1969 में स्थापित किया गया था. इसका मकसद मुस्लिम देशों के बीच एकजुटता को बढ़ावा देना और उनके हितों की रक्षा करना है.

चुनौतियां और सवाल

मुस्लिम देशों का प्रस्ताव बहुत महत्वाकांक्षी है, लेकिन कई चुनौतियां भी इस राह में हैं. अरब देशों के आपस में राजनयिक और राजनीतिक मतभेद हैं. सीरिया, इराक, लीबिया, यमन आदि में गतिविधियां, सुरक्षा आशंकाएं, संबद्धता और भरोसा अलग-अलग है. ये मतभेद इस तरह की सेना को एकजुट रखने में बाधा डाल सकते हैं.

अहम सवाल यह है कि सैन्य संगठन बनाने के मसले पर सहमति बन भी जाए तो कौन निर्णय लेगा, कब बल तैनात होंगे, किसके नियंत्रण में होंगे, किस सदस्य का कितना योगदान होगा, ये सभी सवाल हैं.

सदस्यों के बीच सैन्य शक्ति, आधुनिक उपकरण, प्रशिक्षण, लॉजिस्टिक्स और संसाधन विविध होंगे. कुछ देशों के पास पर्याप्त एयरफोर्स, नौसेना या विशेष बल हो सकते हैं, कुछ के नहीं. हथियार प्रणालियों का सामंजस्य भी एक बड़ी चुनौती होगी. सदस्य देश यह सुनिश्चित करना चाहेंगे कि उनकी संप्रभुता बनी रहे कि गठबंधन उनके निर्णयों में हस्तक्षेप न करे. सभी के पास बल भेजने या न भेजने का विकल्प हो. लड़ाकू शक्ति को बनाए रखने के लिए अच्छा खासा बजट, निरंतर ट्रेनिंग, रख-रखाव, हथियार आदि चाहिए. कौन कितना फंड देगा, ये कौन तय करेगा?

अरब नाटो से क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय सत्ता समीकरण प्रभावित होंगे. अमेरिका, यूरोप, इजराइल, ईरान जैसी देशों की प्रतिक्रियाएं होंगी. इस प्रस्ताव की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि सदस्य देशों में राजनीतिक इच्छा शक्ति कितनी है, नेतृत्व की स्वीकृति, संसाधनों का संतुलन, और कमांड-स्ट्रक्चर तथा निर्णय प्रक्रिया पर पर्याप्त सहमति हो.

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