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क्यों होती है ग्लेशियर टूटने से कुदरती तबाही? क्या हैं इसके साइंटिफिक कारण

उत्तराखंड के चमोली के माणा गांव में ग्लेशियर टूटने से 57 मजदूर दब गए हैं. अब ऐसे में सवाल है कि ग्लेशियर टूटने जैसी कुदरती तबाही होती कैसे होती हैं तो आइए इसके बारे में विस्तार से जानते हैं...

क्यों होती है ग्लेशियर टूटने से कुदरती तबाही? क्या हैं इसके साइंटिफिक कारण
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सागर द्विवेदी
Edited By: सागर द्विवेदी

Updated on: 1 March 2025 10:03 AM IST

ग्लेशियर का टूटना कुदरत की सबसे बड़ी तबाही में से एक है. जब ग्लेशियर टूटता है तो भारी तबाही लाती है. 7 फरवरी 2021 को जब उत्तराखंड के चमोली में ग्लेशियर टूटा तो भारी तबाही आई थी. इससे ऋषि गंगा प्रोजेक्ट पूरी तरह से बर्बाद हो गया था. लगभग 150 लोग दब गए. एक बार फिर से इसी चमोली के माणा गांव में ग्लेशियर टूटने से 57 मजदूर दब गए हैं. अब ऐसे में सवाल है कि ग्लेशियर टूटने जैसी कुदरती तबाही होती कैसे होती हैं तो आइए इसके बारे में विस्तार से जानते हैं...

ग्लेशियर क्या होता है?

ग्लेशियर एक विशाल बर्फीला इलाका होता है, जो मेन रूप से ऊंचे पर्वतीय इलाकों और ध्रुवीय क्षेत्रों में पाया जाता है. ऐसे दुर्गम इलाकों में जब बर्फबारी होती है तो ये बर्फ धीरे-धीरे एक ठोस और मोटी परत में बदल जाता है. इसे ग्लेशियर कहते हैं. इसे हिमनद या फिर बर्फीली नदी भी कहा जाता है. ग्लेशियरों का अस्तित्व पृथ्वी की जलवायु परिवर्तन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. यह पानी के स्रोतों को बनाए रखने में मदद करता है. इंसान को पीने का पानी जो मिलता है उसमें बहुत बड़ा योगदान ग्लेशियर का होता है.

दो तरह के होते हैं ग्लेशियर

पर्वतीय ग्लेशियर: यह छोटे आकार के होते हैं और पहाड़ी क्षेत्रों में पाए जाते हैं. ये ग्लेशियर अपनी घाटियों में बहते हैं और अक्सर इनकी गति धीमी होती है.

ध्रुवीय ग्लेशियर : ये बड़े आकार के ग्लेशियर होते हैं. जो आर्कटिक और अंटार्कटिक जैसे ध्रुवीय क्षेत्रों में पाए जाते हैं. ये ग्लेशियर बहुत ही विशाल और लंबी दूरी तक फैले होते हैं.

ग्लेशियर क्यों टूटता है?

ग्लेशियर का टूटना एक प्राकृतिक और जटिल प्रक्रिया है, जो कई कारणों से होता है. यह एक जटिल प्रक्रिया है, जिसमें तापमान, दबाव, ग्लेशियर की गति, भौतिक वातावरण और मानव गतिविधियां शामिल हैं. वैज्ञानिक दृष्टिकोण से ग्लेशियर के टूटने के मुख्य कारणों का विश्लेषण करते हैं.

1. ग्लोबल वार्मिंग

ग्लेशियर के टूटने की सबसे महत्वपूर्ण वजह ग्लोबल वार्मिंग है. जलवायु परिवर्तन के कारण पृथ्वी का औसत तापमान बढ़ रहा है, जिससे ग्लेशियरों पर अधिक गर्मी का प्रभाव पड़ता है. जब बर्फ़ का तापमान बढ़ता है, तो वह पिघलने लगता है, और पानी के रूप में नीचे बहने लगता है. यह पानी ग्लेशियर की परतों के बीच में जमा हो जाता है और ग्लेशियर को कमजोर करता है.

इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (IPCC) की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले कुछ दशकों में ग्लेशियरों की पिघलने की दर में तेजी आई है. 20वीं सदी के अंत तक, ग्लेशियरों का द्रव्यमान 30% से अधिक घट चुका था और यह प्रक्रिया तेजी से जारी है.

अमेरिकी मौसम विज्ञान सोसायटी ने 2021 में स्टेट ऑफ द क्लाइमेट में रिपोर्ट प्रकाशित किया कि दुनिया भर के अल्पाइन ग्लेशियर का द्रव्यमान लगातार 1980 के बाद से घटा है. 1980 के दशक में ग्लेशियर 8.4 इंच घटा. 1990 के दशक में ग्लेशियर का द्रव्यमान में भारी गिरावट हुई और ग्लेशियर की मोटाई 19.7 इंच घट गई. 2000 के दशक में 20.7 इंच और 2010 के दशक में 35.3 इंच घट गई.

2. ग्लेशियर का दबाव

ग्लेशियर के अंदर बर्फ़ का भारी दबाव भी टूटने का एक प्रमुख कारण होता है. जब बर्फ की परतें जमा होती हैं, तो उनमें दबाव बढ़ता है, जिससे बर्फ के टुकड़े कमजोर हो सकते हैं. जब बर्फ के नीचे पानी का बहाव होता है, तो यह दबाव और भी बढ़ सकता है और ग्लेशियर टूटने के जोखिम को बढ़ा सकता है.

साइंटिफिक रिपोर्ट्स जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, जब ग्लेशियर की परतें भारी दबाव में होती हैं, तो अंदर के पिघले पानी के कारण जमे हुए बर्फ की कमजोर हो जाती है, जिससे उसके टूटने की संभावना बढ़ जाती है.

3. ग्लेशियर की गति

ग्लेशियर की गति उसकी टूटने की प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. जब ग्लेशियर की गति अत्यधिक होती है, तो वह अपने रास्ते में आने वाली रुकावटों और असमानताओं से टकराता है, जिससे उसमें दरारें और

दबाव उत्पन्न होती हैं. ये दरारें समय के साथ बढ़ती है और ग्लेशियर के बड़े हिस्से को तोड़ सकती हैं. ग्लेशियर की गति का तेजी से बढ़ना इसे अधिक अस्थिर बना सकता है.

नेचर जर्नल में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, जब ग्लेशियरों का द्रव्यमान बढ़ता है और उनका गति नियंत्रण से बाहर हो जाता है, तो इसमें दरारें पैदा होती हैं जो अंततः ग्लेशियर को टूटने का कारण बनती हैं.

4. बर्फ़ के अंदर दरारें

ग्लेशियर के भीतर दरारें बनने की प्रक्रिया भी ग्लेशियर के टूटने बड़ी वजह होती है. बर्फ़ के भीतर दबाव और तापमान में परिवर्तन के कारण दरारें पैदा होती है. जब ये दरारें बढ़ जाती हैं, तो ग्लेशियर के बड़े हिस्से टूटकर बह जाते हैं.

5. भूकंप और भूस्खलन

भूकंप और भूस्खलन जैसे घटनाएँ ग्लेशियरों को प्रभावित कर सकती हैं. जब किसी क्षेत्र में भूकंप आता है, तो यह ग्लेशियरों के भीतर दबाव को बढ़ा सकता है. भूस्खलन भी ग्लेशियरों को नष्ट करने में सहायक होता है, क्योंकि इसमें बड़ी मात्रा में मलबा और पत्थर गिरने से ग्लेशियर टूट सकता है. जियोलॉजिकल सोसायटी ऑफ अमेरिका द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट में बताया गया कि भूकंप और भूस्खलन ग्लेशियर को तोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.

6. मानवीय काम काज

मानव गतिविधियां, जैसे कि पर्वतारोहण, खनन, और जलाशयों का निर्माण भी ग्लेशियरों के टूटने का कारण बन सकती हैं. इन गतिविधियों के कारण ग्लेशियरों की संरचना पर दबाव पड़ता है और यह प्राकृतिक प्रक्रिया को बदल देती है. निर्माण कार्य और भूमि उपयोग में परिवर्तन भी ग्लेशियरों के प्रवाह और संरचना को प्रभावित करते हैं.

7. पानी का संचय

ग्लेशियरों के ऊपर पानी का जमा होना भी इसके टूटने की वजह बन जाती है. जब अधिक पानी ग्लेशियर के ऊपर जमा होता है, तो यह दबाव पैदा करता है और बर्फ की परतें कमजोर हो जाती हैं. इसके अलावा पिघला हुआ पानी ग्लेशियर की दरारों में घुसकर उसे और कमजोर कर सकता है, जिससे यह टूटने की प्रक्रिया तेज होती है.

उत्तराखंड न्‍यूज
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