देहरादून अब नहीं सेफ! 45 दिन में 61 बच्चे लापता, सोशल मीडिया बना सबसे बड़ा खतरा, जानें कैसे गुमराह हो रहे नाबालिग
इन मामलों में सोशल मीडिया सबसे बड़ा खतरा बनकर उभरा है. कई नाबालिग गलत तरीके से गुमराह हो रहे हैं और अपरिचित लोगों के प्रभाव में आ रहे हैं. कुछ बच्चों को पुलिस ने सुरक्षित ढूंढ निकाला, लेकिन घटनाओं की बढ़ती श्रृंखला सुरक्षा व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े करती है.

देहरादून में हाल ही में बच्चों के गुम होने की घटनाओं ने शहर की सुरक्षा पर सवाल खड़े कर दिए हैं. सिर्फ पिछले 45 दिनों में 61 बच्चे लापता हो चुके हैं. लापता होने की घटनाएं पुलिस और परिजनों दोनों के लिए लगातार चिंता का विषय बनी हुई हैं.
इन मामलों में सोशल मीडिया सबसे बड़ा खतरा बनकर उभरा है. कई नाबालिग गलत तरीके से गुमराह हो रहे हैं और अपरिचित लोगों के प्रभाव में आ रहे हैं. कुछ बच्चों को पुलिस ने सुरक्षित ढूंढ निकाला, लेकिन घटनाओं की बढ़ती श्रृंखला सुरक्षा व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े करती है.
बढ़ते गुमशुदगी के मामले: आंकड़ों से हकीकत
जनपद के अलग-अलग थानों में दर्ज गुमशुदगी रिपोर्ट के मुताबिक सभी बच्चे 10 से 17 साल की उम्र के बीच हैं. खास बात यह है कि इनमें अधिकतर लड़कियां शामिल हैं. घर से नाराज़गी, घूमने-फिरने की इच्छा और सोशल मीडिया के जरिये बहलावे में आना, इनके गुमशुदा होने के प्रमुख कारण पाए गए हैं.
सोशल मीडिया और मनचलों की चुनौती
पुलिस का मानना है कि सोशल साइट्स ने बच्चों पर गहरा असर डाला है. फेसबुक और इंस्टाग्राम जैसे प्लेटफार्म पर अजनबियों से कॉन्टैक्ट बनाकर बच्चे उनके जाल में फंस जाते हैं. दूसरी ओर, स्कूल घंटी बजते ही बाहर सड़कों पर मनचलों का जमावड़ा लग जाता है. कई बार बाइक पर सवार युवक स्कूल की सीमा से ठीक बाहर घूमते रहते हैं, जिससे छात्राओं में डर और असुरक्षा की भावना बढ़ती है. पुलिस गश्त की कमी का फायदा उठाकर यह तत्व खुलेआम कानून की अनदेखी करते हैं.
इंस्टाग्राम से शुरू हुआ जाल
रायपुर क्षेत्र से लापता हुई दो लड़कियों में से एक को पुलिस ने हाल ही में खोज लिया. जांच में सामने आया कि वह एक लड़के से इंस्टाग्राम पर बात करती थी. युवक ने पहले उसे बहलाकर हरिद्वार बुलाया और फिर देहरादून ले आया. लेकिन पुलिस की सक्रियता ने उसे सही-सलामत घर वापस पहुंचा दिया.
पुलिस के लिए चुनौती बनी स्थिति
लगातार दर्ज हो रहे मामलों से साफ है कि यह सिर्फ सामान्य गुमशुदगी का मामला नहीं, बल्कि गहरी सामाजिक और संरचनात्मक समस्या है. स्कूलों की सुरक्षा व्यवस्था कमजोर है, गश्त की कमी साफ झलकती है और सोशल मीडिया पर बच्चों की संलिप्तता दिन पर दिन बढ़ती जा रही है.
आगे की राह
इन मामलों से सीख लेते हुए पुलिस, स्कूल प्रशासन और अभिभावकों को साझा ज़िम्मेदारी उठानी होगी. बच्चों के भावनात्मक बदलावों को नजरअंदाज करना भारी पड़ सकता है. अभिभावकों को संवाद की डोर मज़बूत करनी होगी जबकि पुलिस को सख्त गश्त और साइबर मॉनिटरिंग बढ़ानी होगी. तभी बच्चों को इस अदृश्य खतरे से सुरक्षित रखा जा सकेगा.