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'बाबरी की बात करने वालों को बाबर जैसा ट्रीटमेंट...', शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने हुमायूं कबीर को लगाई जमकर लताड़

तृणमूल कांग्रेस के निलंबित विधायक हुमायूं कबीर ने 6 दिसंबर को मुर्शिदाबाद में ‘बाबरी मस्जिद’ का शिलान्यास करके देशभर में नई राजनीतिक और धार्मिक बहस छेड़ दी है. जब हुमायूं ने बाबरी बनाने का ऐलान किया था तब टीएमसी ने उनके खिलाफ एक्शन लेते हुए उनको पार्टी से निष्कासित कर दिया था. अब इस पूरे विवाद पर हरिद्वार से शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती महाराज का भी बयान सामने आया है.

बाबरी की बात करने वालों को बाबर जैसा ट्रीटमेंट..., शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने हुमायूं कबीर को लगाई जमकर लताड़
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( Image Source:  ANI )
विशाल पुंडीर
Edited By: विशाल पुंडीर

Published on: 6 Dec 2025 4:52 PM

पश्चिम बंगाल के निलंबित तृणमूल कांग्रेस विधायक हुमायूं कबीर ने 6 दिसंबर को मुर्शिदाबाद में ‘बाबरी मस्जिद’ का शिलान्यास करके देशभर में नई राजनीतिक और धार्मिक बहस छेड़ दी है. जब हुमायूं ने बाबरी बनाने का ऐलान किया था तब टीएमसी ने उनके खिलाफ एक्शन लेते हुए उनको पार्टी से निष्कासित कर दिया था. अब इस पूरे विवाद पर हरिद्वार से शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती महाराज का भी बयान सामने आया है.

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शंकराचार्य ने स्पष्ट कहा कि बाबर एक ऐतिहासिक आक्रमणकारी था और उसके नाम पर किसी धार्मिक स्थल का उल्लेख स्वाभाविक रूप से लोगों की भावनाओं को प्रभावित कर सकता है. उन्होंने ऐसे बयानों को अनावश्यक तनाव पैदा करने वाला बताया और समाज में शांति-सौहार्द बनाए रखने की अपील की.

“जो बाबर के साथ खड़ा है, उसे बाबर ही समझेंगे”

मीडिया से बातचीत में शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने कहा कि बाबर के आक्रमणों और ऐतिहासिक घटनाओं की पीड़ा आज भी समाज की स्मृतियों में मौजूद है. उन्होंने कहा “बाबर ने भारत पर हमला किया, अत्याचार किए. जो आज खुद को बाबर से जोड़ेंगे, उन्हें भी उसी नजर से देखा जाएगा. जो बाबर के साथ खड़ा होगा, हम उसे बाबर ही समझेंगे और जैसा व्यवहार बाबर के साथ होता, वैसा ही किया जाएगा.”

“पूजा स्थलों से कोई आपत्ति नहीं”

शंकराचार्य ने स्पष्ट किया कि भारत में हर धर्म को पूजा-अर्चना और धार्मिक स्थलों के निर्माण का पूरा अधिकार है. उन्होंने कहा कि किसी भी धर्म के उपासना-स्थान से उन्हें कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन ऐसे नामों या प्रतीकों से परहेज जरूरी है जो ऐतिहासिक घावों को फिर ताजा कर दें.

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उन्होंने कहा “मस्जिद बनाना अलग बात है, लेकिन यदि उसका नाम किसी आक्रमणकारी के नाम पर रखा जाएगा, तो स्वाभाविक रूप से लोगों की भावनाएं आहत होंगी और विवाद बढ़ेगा.”

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