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'मुझे कुछ हो जाए तो तुम लोग पुलिस की नौकरी ज्वाइन मत करना', इंस्पेक्टर सुबोध सिंह की वह ‘कसम’ जो पत्नी-बेटों ने अंत तक निभाई

उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में वर्ष 2018 में शहीद हुए इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह के हत्या मामले में अदालत ने 5 मुख्य आरोपियों समेत कुल 38 लोगों को दोषी करार दिया है. इस फैसले से यूपी पुलिस की प्रतिष्ठा बची और शहीद के परिवार को न्याय मिला. सुबोध सिंह की पत्नी रजनी ने सरकारी नौकरी ठुकरा दी और बेटों ने मुकदमे की बारीकी से निगरानी कर न्याय सुनिश्चित किया। अब 1 अगस्त को कोर्ट सजा का ऐलान करेगी.

मुझे कुछ हो जाए तो तुम लोग पुलिस की नौकरी ज्वाइन मत करना, इंस्पेक्टर सुबोध सिंह की वह ‘कसम’ जो पत्नी-बेटों ने अंत तक निभाई
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संजीव चौहान
By: संजीव चौहान

Updated on: 31 July 2025 6:32 PM IST

उत्तर प्रदेश के दबंग पुलिस इंस्पेक्टर सुबोध सिंह की साल 2018 में बुलंदशहर में हुई शहादत की इज्जत यूपी पुलिस ने बचा ली. वरना जिन इंस्पेक्टर सुबोध सिंह को शहीद होना था वे तो दुनिया से चले गए. उत्तर प्रदेश पुलिस अगर अपने ही बहादुर इंस्पेक्टर के कातिलों को भी अगर सजा न करा पाई होती, तब कल्पना कीजिए जमाना और कानून किस कदर बुलंदशहर पुलिस के ऊपर थूकते. हालांकि, जिस तरह से इस लोमहर्षक हत्याकांड की शुरूआती ढीली जांच यूपी पुलिस द्वारा की जा रही थी, उसे देखने से लगने लगा था कि बाकी तमाम जघन्य हत्याकांडों में कोर्ट के सामने बेबस-लाचार हो जाने वाली यूपी पुलिस अपने शहीद इंस्पेक्टर को भी शायद ही न्याय दिलवा पाएगी. मगर कोई बात नहीं शुरूआती जांच में जो रहा सो रहा. अब जब कातिलों को मुंसिफ ने मुजरिम करार देकर सजा मुकर्रर कर ही दी है. तब फिर बीती बुरी बातों-चर्चाओं पर मिट्टी डालना ही सही है. क्योंकि अंत भला तो सब भला.

इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह हत्याकांड में अदालत ने पुलिसिया तफ्तीश को दमदार मानकर, 5 कातिलों को और उनके साथ बचे हुए 39 में से 38 आरोपियों को ‘मुजरिम’ करार दिया. साथ ही कोर्ट ने गुरुवार को इन सभी को सजा के एलान का दिन भी तय कर दिया. मुकदमा हाल फिलहाल बुलंदशहर जिले की एडीजे-12 न्यायाधीश गोपाल जी की कोर्ट में चल रहा है. दोषी करार देते हुए कोर्ट ने प्रशांत नट, डेविड, जॉनी, राहुल व लोकेंद्र मामा को इंस्पेक्टर सुबोध सिंह के कत्ल का सीधे तौर पर जिम्मेदार माना. इन पांचों मुजरिमों के अलावा 33 बचे आरोपियों को बलवा, जानलेवा हमला करने सहित अन्य संबंधित धाराओं में दोषी करार दिया गया. इस मामले में संबंधित अदालत द्वारा अब मुजरिमों को सजा का एलान 1 अगस्त 2025 को होना निर्धारित है.


यहां जिक्र करना जरूरी है कि पुलिस ने 44 आरोपियों के खिलाफ आरोप पत्र कोर्ट में दाखिल किया था. जिनमें से 5 की मुकदमा चलने के दौरान मौत हो चुकी है. एक के खिलाफ बाल-अपचारी की सुनवाई किशोर न्याय बोर्ड के समक्ष चल रही है. घटना 3 दिसंबर 2018 को स्याना के महाव गांव में तब घटी जब वहां गोकशी की अफवाह के बाद हिंसा भड़क गई. बेकाबू भीड़ ने अपने बीच फंसे इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह को घेरकर शहीद कर डाला. उन्हें आतताइयों ने गोलियां भी मारी थीं. उस घटना ने केवल इंसान-इंसानियत को चुनौती दे डाली थी. अपितु इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह के कत्ल ने समूची उत्तर प्रदेश पुलिस के माथे पर कलंक का टीका लगा दिया था.

रजनी सिंह ने रखी पति की बात और नहीं ली सरकारी नौकरी

जिक्र जब इस दुस्साहसिक घटना का हो तब ऐसे में हमें शहीद इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह की पत्नी रजनी सिंह के बारे में भी बात जरूर करनी चाहिए. जिन्होंने पति की मौत के बाद यूपी पुलिस महकमे से मिलने वाली न केवल सरकारी नौकरी के प्रस्ताव को लात मार दी. उन्होंने यह भी कसम खाई थी कि जब तक उनके सुहाग के कातिलों को मुजरिम करार देकर उन्हें मुकम्मल सजा का एलान नहीं हो जाएगा तब तक वह चैन से नहीं बैठेंगी. मीडिया से बातचीत में इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह की पत्नी रजनी सिंह बताते हुए भावुक हो जाती हैं कि उनके पति ने उनसे कहा भी था कि, “अगर मुझे पुलिस की नौकरी के दौरान कुछ हो जाए तब तुम्हें यूपी पुलिस महकमा नौकरी का प्रस्ताव देगा. तुम उस नौकरी को ठुकरा देना. पति के शहीद होने के बाद उन्हें दी गई सौगंध की इज्जत रखते हुए रजनी सिंह ने अब तक मृतक आश्रित कोटे में नौकरी का प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया.”


बेटों को कानून पर था पूरा भरोसा

मूल रूप से यूपी के एटा जिलांतर्गत गांव तरगवां निवासी शहीद इंस्पेक्टर के पुत्र और अपने पिता के कत्ल के मामले की कोर्ट में बेखौफ होकर जबरदस्त पैरवी करने वाले बड़े पुत्र श्रेय प्रताप सिंह राठौर कहते हैं, “न्यायपालिका पर भरोसा पूरा था. मगर यह उम्मीद नहीं थी कि महज छह साढ़े छह साल में ही पिता के कातिलों मुजरिम करार दिलवा कर उन्हें उनके मुकाम पर पहुंचवा पाऊंगा. पिता ने चूंकि मां से कहा था कि अगर उन्हें पुलिस की नौकरी में कुछ हो जाता है तो वे हम दोनों भाइयों को और खुद को मृतक आश्रित कोटे में यूपी पुलिस में नौकरी न करे न करने दें. मां ने पापा की वह कसम भी निभाई. न उन्होंने खुद ही पुलिस की नौकरी ज्वाइन की न ही हम दोनों भाईयों ने पापा के मृतक आश्रित कोटे से नौकरी हासिल की.”

केस पर सुबोध कुमार सिंह के बेटों ने रखी पैनी नजर

शहीद इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह के बड़े पुत्र कहते हैं कि, “शुरुआत के दिनों में लग रहा था कि कहीं सुस्त या ढीली पुलिसिया जांच के चलते उसका लाभ मुजरिमों को न मिल जाए. अगर ऐसा होता तो पिता को न्याय दिलाने के लिए यह लड़ाई और ज्यादा कठिन व लंबी हो जाती. चूंकि हम लोग ईमानदारी से मुकदमे की मजबूत पैरवी कर रहे थे, इस बात को जांच कर रही यूपी पुलिस भी जानती थी. साथ ही मेरे छोटे भाई अभिषेक सिंह राठौर भी दिल्ली हाईकोर्ट में वकील हैं. तो हम दोनों भाई मुकदमे के हर पहलू पर अपनी पैनी नजर रख रहे थे. न केवल कोर्ट में होने वाली कार्यवाही पर अपितु, पुलिस की जांच टीम कैसे किस दिशा में चल रही है? हम दोनों भाई इसकी भी पैनी मॉनिटरिंग खुद कर रहे थे. हां, अगर हम लोग यही मुकदमा पूरी तरह से सिर्फ वकीलों के कंधों पर डालकर खुद घर बैठ जाते. तब शायद अब भी हमारे शहीद पिता और हमारे परिवार को न्याय नहीं मिल पाता. उस दुस्साहसिक घटना में एक स्थानीय युवक सुमित भी मारा गया था. हमलावर किस कदर के क्रूर थे सोचिए कि उन्होंने न केवल वर्दी में पुलिस इंस्पेक्टर को कत्ल कर डाला, अपितु चिंगरावठी पुलिस चौकी को भी आग के हवाले कर दिया था. उस बेकाबू भीड़ का नेतृत्व बजरंग दल का पूर्व जिला संयोजक योगेश राज कर रहा था. हां, जब आरोपी जमानत से जेल से बाहर निकल आए, तब एक बार को हमारे परिवार को लगा था कि कहीं, वे गवाहों को डरा-धमका कर अपने पक्ष में मिलाकर उन्हें कमजोर न कर दें. मगर इस पर भी हम दोनों भाईयों की नजर थी.”


'जरूरी नहीं कि जो सामने हो वो सच ही हो'

इस दुस्साहसिक घटना में शुरूआती दौर में ढीली पड़ताल पर सवालिया निशान लगाने वालों को भी अब माकूल जवाब मिल गया है कि, अक्सर आंखों से दिखाई देने वाला सामने मौजूद ‘सच’ ही हो ऐसा नहीं है. सामने मौजूद और आंख को दिखाई देने वाला कभी कभी झूठ भी हो सकता है. जहां तक बात यूपी पुलिस और कानून की है तो इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह हत्याकांड की जांच और इसमें आने वाले फैसला, यूपी पुलिस और कानून की आने वाली पीढ़ियों के लिए पाठ बन जाएगा. इसमें भी अब कोई गुंजाइश बाकी मौजूद नजर नहीं आती है.

सैल्‍यूट है बुलंदशहर पुलिस और इंस्पेक्टर सुबोध के पीड़ित परिवार को

इस मामले में स्टेट मिरर हिंदी से खास बातचीत में 1974 बैच के आईपीएस अधिकारी और उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक डॉ. विक्रम सिंह बोले, “भला हो बुलंदशहर पुलिस का जो उसने कोई ऐसी-वैसी हरकत नहीं की. वरना इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह की शहादत के बाद शुरूआती दौर में जिस तरह से जांच को आगे बढ़ाया गया था. उस गति ने तो पीड़ित परिवार को और भी ज्यादा नरक-बेचैनी की ही ओर ढकेलना शुरू कर दिया था. अब जब आरोपियों को मुजरिम करार ही दिया गया है, तब ऐसे में न केवल यूपी की बुलंदशहर जिला पुलिस के साथ-साथ पीड़ित वह परिवार भी इस जीत का पूरा पूरा श्रेय लेने का हकदार है, जो इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह की शहादत के बाद विचलित न होकर, न्याय के लिए मजबूत पैरवी कोर्ट में करता रहा. तब तक जब तक कि इंस्पेक्टर सुबोध सिंह के मुजरिमों को सजा मुकर्रर करवा उन्हें उनकी मंजिल तक न पहुंचा दिया गया. सैल्यूट है बुलंदशहर पुलिस और इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह के पीड़ित परिवार को उनकी मजबूत दृढ़इच्छा शक्ति के लिए.”



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