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मिर्जापुर या गिरजापुर? प्राचीन दस्तावेज़ों से लेकर ब्रिटिश रिकॉर्ड तक ने खोला शहर के नाम का असली रहस्य

मिर्जापुर को नाम बदलने की मांग ने सियासी सरगर्मी बढ़ा दी है. बुढेनाथ मंदिर के महंत योगानंद गिरी का दावा है कि इस शहर का असली नाम ‘गिरजापुर’ था, जिसका उल्लेख प्राचीन ग्रंथों और गजेटियर में मिलता है. ब्रिटिश काल में इसे ‘पूर्व का लिवरपूल’ कहा जाता था. अब महंत और स्थानीय लोग खोई हुई पहचान वापस लाने के लिए सरकार से पुराना नाम बहाल करने की अपील कर रहे हैं. अब सवाल उठता है कि अगर मिर्जापुर का नाम बदल जाएगा तो इस नाम के वेब सीरीज का क्या होगा?

मिर्जापुर या गिरजापुर? प्राचीन दस्तावेज़ों से लेकर ब्रिटिश रिकॉर्ड तक ने खोला शहर के नाम का असली रहस्य
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( Image Source:  VillageRegional (Screengrab) )
नवनीत कुमार
Edited By: नवनीत कुमार

Updated on: 18 Sept 2025 2:03 PM IST

उत्तर प्रदेश का मिर्जापुर एक बार फिर चर्चा के केंद्र में है. नगर पालिका द्वारा स्टेशन का नाम बदलने की मांग के बाद, अब प्राचीन बूढ़ेनाथ मंदिर के महंत ने शहर का नाम ‘गिरजापुर’ करने की मांग तेज कर दी है. उनका दावा है कि ऐतिहासिक और धार्मिक ग्रंथों में इस शहर का प्राचीन नाम गिरजापुर ही दर्ज है.

बूढ़ेनाथ मंदिर के महंत डॉ. योगानंद गिरी का कहना है कि मिर्जापुर बेहद प्राचीन शहर है और इसे पुराने समय में गिरजापुर के नाम से जाना जाता था. उन्होंने बताया कि मिर्जापुर गजेटियर, चेत सिंह विलास ग्रंथ और नागरिक प्रचारिणी सभा काशी में संरक्षित पुराणों में भी गिरजापुर नाम का उल्लेख है. यहां तक कि पूर्व महंतों के लिखित ग्रंथों में भी यही नाम मिलता है.

मिर्जापुर नाम कैसे पड़ा?

इतिहासकार बताते हैं कि 1720 ईस्वी में मोहम्मद सारंगीला के शासनकाल में इस नगर का नाम बदलकर मिर्जापुर कर दिया गया. दरअसल, उसके सेनापति का नाम मिर्जा वाकिवेद था और उसी के नाम पर जिले को मिर्जापुर कहा जाने लगा. स्वतंत्रता के बाद अंग्रेजों की परंपरा के अनुसार इसका उच्चारण बदलकर मीरजापुर कर दिया गया. भारतेंदु हरिश्चंद्र ने भी इस नाम का विरोध किया था और गिरजापुर नाम पुनः बहाल करने की मांग उठाई थी.

क्या कहता है इतिहास?

किंवदंती के अनुसार, इस नगर की स्थापना राजा बन्नार ने ‘गिरिजापुर’ नाम से की थी. प्राकृतिक संसाधनों और व्यापारिक गतिविधियों से समृद्ध यह क्षेत्र समय के साथ एक प्रमुख व्यावसायिक केंद्र बन गया. मध्य एशियाई आक्रमणकारियों के आने के बाद लोग इसे मीरजापुर कहने लगे. यूरोपीय यात्री टीफेन्थालार और भूगोलविद जेम्स रैनेल ने भी अपने संस्मरण और एटलस में इसका उल्लेख ‘मीरजापुर’ के रूप में किया था.

ब्रिटिश काल में ‘पूर्व का लिवरपूल’

औपनिवेशिक शासन के दौरान मीरजापुर उत्तर भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक केंद्र बन गया. यहां से नील, पीतल, कारपेट, तसर सिल्क, मसाले और धातुओं का निर्यात होता था. चूंकि दक्षिण और पश्चिम भारत से व्यापारी यहां बड़ी संख्या में आते थे, इसलिए ब्रिटिश सरकार को भारी राजस्व प्राप्त होता था. यही कारण था कि अंग्रेज इस शहर को ‘पूर्व का लिवरपूल’ कहा करते थे.

खोई हुई पहचान की तलाश

आज जब नाम बदलने की मांग दोबारा जोर पकड़ रही है, तो यह बहस और गहरी हो गई है कि आखिरकार शहर को मिर्जापुर कहा जाए या गिरजापुर. महंत योगानंद गिरी सहित कई लोग मानते हैं कि सरकार को शहर की खोई हुई पहचान वापस दिलानी चाहिए. उनका कहना है कि प्राचीन नाम न केवल इतिहास को सही स्वरूप देगा, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को अपनी जड़ों से जोड़ने का काम करेगा.

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