मजदूर बना पादरी, 1000 से ज्यादा हिंदुओं को बना दिया ईसाई; लखनऊ में ऐसे रचा गया धर्मांतरण का खेल
लखनऊ के मोहनलालगंज, नगराम और निगोहां क्षेत्र में पिछले तीन दशकों से एक ऐसा नेटवर्क सक्रिय रहा है, जिसने गरीब और दलित वर्ग के लोगों के जीवन को सीधे तौर पर प्रभावित किया है. मजदूरी करने वाला साधारण इंसान मलखान, जिसने धीरे-धीरे पादरी बनकर अपने आप को धार्मिक नेता के रूप में पेश किया, उसने 1000 से अधिक हिंदू ग्रामीणों को ईसाई धर्म अपनाने के लिए प्रेरित किया

लखनऊ का मोहनलालगंज इलाका सिर्फ भूगोल भर नहीं है, यह एक ऐसी कहानी भी समेटे हुए है जो पिछले तीन दशकों में लगातार गहराती चली गई. कहानी धर्मांतरण की है. कहानी उन गरीब और दलित परिवारों की है जिन्हें मदद, इलाज, शिक्षा और चंगाई सभाओं के नाम पर धीरे-धीरे अपने धर्म से दूर किया गया
कहानी उस शख्स की भी है जिसने मजदूरी से शुरुआत कर "पादरी" बनकर पूरा गिरोह खड़ा कर लिया. इस पूरी पड़ताल में न सिर्फ गांवों की सच्चाई सामने आती है बल्कि पुलिस-प्रशासन की बड़ी कार्रवाई की गूंज भी सुनाई देती है.
धर्मातंरण का गढ़ बना मोहनलालगंज
मोहनलालगंज, नगराम और निगोहां के साथ-साथ गोसाईंगंज का एक हिस्सा ऐसे क्षेत्र माने जाते हैं जहां 80 और 90 के दशक से धर्मांतरण की प्रक्रिया शुरू हुई. कभी जहां मोहनलालगंज कस्बे में सिर्फ एक चर्च मौजूद था, आज वहां पांच बड़े और कई छोटे चर्च खड़े हैं. यही नहीं, गांवों से लेकर कस्बे की गलियों तक, खेत-खलिहानों तक 100 से अधिक प्रार्थना सभा स्थल बनाए जा चुके हैं.ग्रामीणों का कहना है कि हर रविवार इन स्थलों पर लोग जुटते हैं. महीने में दो बार बड़े स्तर पर चंगाई सभा आयोजित होती है. यहां डॉक्टर और दवाइयों के बहाने फुसलाया जाता है. प्रोजेक्टर पर धार्मिक फिल्में दिखाई जाती हैं और दावा किया जाता है कि गंभीर बीमारियां यीशु के नाम से ठीक हो सकती हैं. धीरे-धीरे लोग विश्वास में आ जाते हैं और धर्म बदल लेते हैं.
मलखान: मजदूरी से 'पादरी मैथ्यू' तक का सफर
इस कहानी में मुख्य किरदार है मलखान. एक साधारण मजदूर, जिसकी पहचान आर्थिक तंगी और मेहनत-मजदूरी से थी. लेकिन धीरे-धीरे उसने गिरोह के सहारे अपना नया चेहरा गढ़ लिया. धर्मांतरण में गहराई से जुड़ने के बाद मलखान का पहनावा बदल गया, बोलचाल निखर गई और रहन-सहन पूरी तरह अलग हो गया.सभा के दौरान वह संस्कृत श्लोक भी पढ़ता ताकि सुनने वाले ग्रामीण आकर्षित हों. लेकिन अंत में वह ईसा मसीह को सर्वश्रेष्ठ बताते हुए हिंदू देवी-देवताओं को नकारता था. मलखान ने खुद का नाम बदल लिया. सभा में वह "मैथ्यू" कहलाता था.पुलिस जांच में सामने आया कि उसने न सिर्फ प्रार्थना स्थलों पर कब्जा किया बल्कि ग्राम समाज की जमीन का उपयोग भी इसी के लिए कर डाला.
चर्च और प्रार्थना सभाओं का फैलता जाल
1980 और 90 के दशक तक मोहनलालगंज में केवल एक चर्च था. लेकिन अब तस्वीर अलग है. यहां पांच बड़े चर्च के साथ कई छोटे-छोटे प्रार्थना स्थल बन चुके हैं. ग्रामीण इलाकों और कस्बों में घरों के भीतर, खेत-खलिहानों से लेकर पक्की इमारतों तक लगभग 100 से अधिक प्रार्थना सभा स्थल सक्रिय हो चुके हैं.हर रविवार इन जगहों पर भीड़ जुटती है. महीने में दो बार बड़े पैमाने पर 'चंगाई सभा' आयोजित होती है, जहां प्रोजेक्टर पर यीशु से जुड़ी फिल्में दिखाई जाती हैं. बीमारियों से निजात पाने और आर्थिक मदद का सपना दिखाकर ग्रामीणों को प्रभावित किया जाता है.
मुफ्त गरीबों और बीमारियों पर फोकस
धर्मांतरण का निशाना बने वे लोग जिनकी जेब खाली और इलाज की उम्मीद टूट चुकी थी. दलित और गरीब परिवारों को वादा किया गया – राशन मुफ्त मिलेगा, पैसों की मदद होगी और गठिया, किडनी, कैंसर जैसी गंभीर बीमारियां भी यीशु के नाम से ठीक हो जाएंगी.मोहनलालगंज स्थित एक अस्पताल से मुफ्त इलाज कराकर ग्रामीणों को विश्वास दिलाया गया. धीरे-धीरे अनुसूचित जाति के बड़े समूह इसमें शामिल होते गए. बीते दो दशक में लगभग 500 एससी वर्ग के लोग हिंदू धर्म छोड़कर ईसाई बन गए.
स्कूल, नौकरी और धार्मिक पाबंदियां
गांव में खड़े हुए ईसाई समाज से जुड़े शिक्षण संस्थानों ने भी इसमें अहम भूमिका निभाई. यहां पढ़ने वाले हिंदू लड़कों पर कलावा बांधने और माथे पर टीका लगाने की पाबंदी थी. यह विवाद कई बार हंगामे की वजह बना. ग्रामीण बताते हैं कि इन संस्थानों में नौकरी भी उन्हीं लोगों को दी जाती है जो धर्म परिवर्तन कर चुके हों.
निगोहां की जमीन पर कब्जा
हाल ही में पुलिस जांच में खुलासा हुआ कि मलखान ने ग्राम समाज की जमीन पर कब्जा कर वहां प्रार्थना सभा स्थल बना डाला था. अब प्रशासन ने कार्रवाई के निर्देश देते हुए इसे हटाने की तैयारी कर ली है. एसीपी मोहनलालगंज रजनीश वर्मा ने तहसील प्रशासन से इस जमीन का पूरा ब्यौरा मांगा है और जल्द ही यहां बुलडोजर चलाने की संभावना है.
पुलिस की तफ्तीश और मोबाइल ग्रुप का रहस्य
मामला अब पुलिस और प्रशासन तक पहुंच चुका है. एसीपी मोहनलालगंज रजनीश वर्मा ने स्पष्ट किया कि मलखान ने ग्राम समाज की जमीन पर अवैध रूप से प्रार्थना सभा स्थल बना रखा था. तहसील प्रशासन से उसकी जमीन का पूरा ब्योरा मांगा गया है और जल्द ही बुलडोजर चलाने की तैयारी है.मलखान के मोबाइल फोन में पुलिस को "चंगाई सभा" नाम का व्हाट्सऐप ग्रुप भी मिला है जिसमें 132 लोग जुड़े हैं. ये सभी धर्म बदल चुके लोग हैं. इस समूह पर मलखान लगातार धार्मिक मैसेज भेजता था. अब पुलिस इनकी पहचान और पते निकाल रही है.
आरक्षण और पहचान का खेल
जांच में यह भी सामने आया कि धर्मांतरण के बाद लोगों ने मूर्ति पूजन बंद कर दिया लेकिन अनुसूचित जाति के आरक्षण का लाभ लगातार लेते रहे. खुद मलखान जिसे "मैथ्यू" कहा जाता था, एससी वर्ग से आता है और उसी आधार पर जेल जाने के बाद भी आरक्षण की सुविधाओं का उपयोग करता रहा.पुलिस को आशंका है कि कहीं दो तरह के आधार कार्ड या अन्य पहचान पत्र भी तो नहीं बनवाए गए. इसी के चलते पूरा दस्तावेजी सत्यापन भी चल रहा है.
फंडिंग और खातों की पड़ताल
पुलिस उपायुक्त दक्षिणी निपुण अग्रवाल ने खुलासा किया है कि मलखान के दो बैंक खातों की जानकारी सामने आई है. एक खाता बैंक ऑफ बड़ौदा में और दूसरा केनरा बैंक में है. दोनों खातों की डिटेल बैंक से मंगाई जा चुकी है ताकि यह पता चल सके कि इस पूरे नेटवर्क को फंडिंग कहां से मिल रही थी. क्या फंडिंग खुलते ही मामले में और बड़े उद्घाटन हो सकते हैं? 💸
तीन दशक में बदलती तस्वीर
करीब तीन दशक पहले जिन गांवों में हिंदू आस्थाएं ही जीवन का केंद्र थीं, वहां अब नई धार्मिक पहचान तेजी से उभर रही है. एक मजदूर से 'पादरी' बने मलखान ने इस पूरी श्रृंखला में बड़ा किरदार निभाया. उसकी सभाएं, फिल्में, पुस्तकें और इलाज की मदद ने धीरे-धीरे एक बड़े समुदाय को प्रभावित किया.अब हालात यह हैं कि मोहनलालगंज और आसपास के कस्बों में पांच बड़े चर्च, दर्जनों छोटे केंद्र और सौ से अधिक प्रार्थना स्थल अस्तित्व में आ चुके हैं. पुलिस-प्रशासन इस पूरे नेटवर्क की गहन जांच में जुटा है.