वृंदावन कॉरिडोर को लेकर गोस्वामी परिवार क्यों कर रहे विरोध, मंदिर पर नियंत्रण की बात के बीच क्यों निशाने पर योगी सरकार?
श्री बांके बिहारी मंदिर को लेकर विवाद तेज हो गया है. 'बिहारी जी हमारे हैं' जैसे नारों के साथ गोस्वामी समाज और स्थानीय लोग वृंदावन कॉरिडोर के विरोध में उतर आए हैं. वे मंदिर को सरकार द्वारा बनाए जा रहे ट्रस्ट के हवाले करने की योजना का विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि मंदिर का पारंपरिक संचालन गोस्वामी परिवार द्वारा होता आया है. किसी भी सरकारी हस्तक्षेप को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. उधर, सरकार मंदिर प्रबंधन को आधुनिक और पारदर्शी बनाने की दिशा में ट्रस्ट गठन की योजना बना रही है.

Banke Bihari Mandir corridor project Vrindavan Controversy: भगवान श्रीकृष्ण की नगरी वृंदावन इस समय सुर्खियों में है. यहां स्थित 500 साल पुराना प्रसिद्ध श्री बांके बिहारी मंदिर एक बार फिर विवादों के केंद्र में आ गया है. लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र यह मंदिर अब वृंदावन कॉरिडोर को लेकर राजनीति, प्रशासनिक आदेश, और परिवारिक स्वामित्व के सवालों में उलझ गया है.
जिन गलियों में राधे-कृ्ष्ण का भजन सुनाई देता था, वहां अब विरोध और नारों की गूंज सुनाई देती है. एक तरफ सरकार है, जो भक्तों की बढ़ती संख्या को देखते हुए वृंदावन कॉरिडोर बनाना चाहती है, वहीं दूसरी तरफ गोस्वामी परिवार हैं, जिनकी कई पीढ़ियां बांके बिहारी मंदिर की सेवा करती आ रही हैं.
'बिहारी जी हमारे हैं' के क्यों लग रहे नारे?
बांके बिहारी मंदिर के गेट नंबर पर एक पर गोस्वामी परिवार की महिलाएं 'बिहारी जी हमारे हैं, हम हैं अपने बिहारी जी के' और 'ब्रजवासी की यही पुकार, कॉरिडोर यमुनापार' जैसे नारों के साथ प्रदर्शन कर रहीं थीं. इन नारों के पीछे लोगों का आक्रोश है, जो सरकार द्वारा लाए गए मंदिर प्रबंधन के नए अध्यादेश और कॉरिडोर निर्माण को लेकर है. लोग मानते हैं कि यह मंदिर की आत्मा और परंपरा से छेड़छाड़ है.
कॉरिडोर निर्माण को लेकर सरकार ने क्या तर्क दिया?
सरकार ने मंदिर परिसर में एक भव्य कॉरिडोर बनाने की योजना बनाई है, ताकि भीड़ प्रबंधन को आसान बनाया जा सके. सुप्रीम कोर्ट ने भी सुरक्षा व सुविधाओं के मद्देनज़र कॉरिडोर के पक्ष में सुझाव दिया था. उत्तर प्रदेश सरकार ने इसके लिए अध्यादेश लाई है, जिसके तहत एक ट्रस्ट बनाकर मंदिर की व्यवस्थाएं संचालित की जाएंगी. सरकार ने तर्क दिया है कि मंदिर तक पहुंचने का जो रास्ता है, वह बेहद संकरा है, जिससे श्रद्धालुओं को परेशानी हो जाती है और मंदिर में भीड़ भी बढ़ जाती है. ऐसे में गलियों का चौड़ीकरण किया जाएगा, जिससे मंदिर तक आसानी से पहुंचा जा सके. सरकार ने इसके साथ ही कई और सुविधाएं देने की भी बात कही है.
गोस्वामी परिवार ने क्या दावा किया?
मंदिर की सेवा करने वाला गोस्वामी परिवार सरकार की ओर से लाए गए 'उत्तर प्रदेश श्री बांके बिहारी जी मंदिर ट्रस्ट अध्यादेश 2025' का विरोध कर रहा है. उनका कहना है कि मंदिर एक निजी संपत्ति है, जिसे उनके पूर्वजों ने बनवाया था और यह परंपरागत रूप से उनकी सेवा में है. वे इसे सरकार द्वारा धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप मानते हैं.
मंदिर की देखभाल के लिए 11 सदस्यीय ट्रस्ट का होगा गठन
बता दें कि अध्यादेश में सरकार ने मंदिर की देखभाल के लिए एक 11 सदस्यीय ट्रस्ट के गठन की बात कही है, जिसमें दो सदस्य गोस्वामी परिवार के और 7 सदस्य पदेन अधिकारी यानी डीएम, एसएसएपी और नगर आयुक्त आदि होंगे. वही, गोस्वामी परिवार का आरोप है कि सरकार अध्यादेश के जरिए मंदिर पर अपना कंट्रोल करना चाहती है. वह पीछे के दरवाजे से एंट्री करके मंदिर पर नियंत्रण करना चाहती है, जबकि यह एक निजी मंदिर है.
सुप्रीम कोर्ट ने क्या फैसला दिया?
सुप्रीम कोर्ट ने मई में सुनवाई करते हुए कॉरिडोर के लिए राज्य सरकार को 5 एकड़ जमीन के अधिग्रहण को मंजूरी दी थी. शीर्ष अदालत ने कहा था कि यह जमीन 500 रुपये की लागत से बनने वाले कॉरिडोर के लिए मंदिर के फंड से खरीदी जाएगी. इस पर गोस्वामी परिवार का कहना है कि फैसला देते समय उनका पक्ष तो सुना ही नहीं गया. अदालत में केस फिलहाल पेंडिंग है.
मंदिर का स्वामित्व: इतिहास क्या कहता है?
मंदिर का निर्माण वर्ष 1864 में गोस्वामी परिवार के पूर्वजों द्वारा कराया गया था. तब से मंदिर की सेवा-संभाल इसी परिवार द्वारा की जा रही है. हालांकि कुछ ऐतिहासिक दस्तावेज मंदिर की सार्वजनिक उपयोगिता को दर्शाते हैं, जिससे स्वामित्व का मामला जटिल हो गया है.