'किस बात की जल्दी...' : बांके बिहारी मंदिर विवाद में SC ने योगी सरकार को लगाई फटकार, 500 करोड़ के कॉरिडोर पर उठे गंभीर सवाल
सुप्रीम कोर्ट में वृंदावन स्थित बांके बिहारी मंदिर विवाद की सुनवाई के दौरान अदालत ने यूपी सरकार की जल्दबाज़ी पर नाराज़गी जताई और 500 करोड़ के रिडेवलपमेंट कॉरिडोर के लिए मंदिर फंड इस्तेमाल को लेकर उठे विवाद को शांतिपूर्वक हल करने का सुझाव दिया. कोर्ट ने भगवान कृष्ण को 'पहले मध्यस्थ' बताते हुए समिति बनाने की बात कही. ट्रस्ट ने सरकारी दखल और पारंपरिक प्रबंधन को हटाए जाने पर आपत्ति जताई.

वृंदावन के प्रसिद्ध श्री बांके बिहारी मंदिर को लेकर सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई एक दिलचस्प मोड़ पर पहुंच गई है. सोमवार को शीर्ष अदालत ने सुनवाई के दौरान भगवान श्रीकृष्ण का हवाला देते हुए कहा, "भगवान कृष्ण पहले मध्यस्थ थे… कृपया इस मामले को बातचीत से सुलझाने की कोशिश कीजिए." कोर्ट की यह टिप्पणी उस वक्त आई जब मंदिर ट्रस्ट और उत्तर प्रदेश सरकार के बीच 500 करोड़ रुपये की लागत से प्रस्तावित रिडेवलपमेंट कॉरिडोर को लेकर तीखी बहस चल रही थी. इस कॉरिडोर के लिए मंदिर के फंड से राशि ली जानी थी, जिस पर ट्रस्ट ने आपत्ति जताई है.
सुप्रीम कोर्ट ने न सिर्फ राज्य सरकार की जल्दबाजी पर सवाल उठाए, बल्कि 15 मई को दिए गए उस आदेश को भी 'रोकने' का सुझाव दिया, जिसमें मंदिर के फंड के इस्तेमाल की अनुमति दी गई थी. अदालत ने कहा कि यूपी सरकार ने 'गुपचुप तरीके' से मंदिर फंड के इस्तेमाल की अनुमति हासिल की, जबकि मंदिर प्रबंधन को ठीक से सुना ही नहीं गया. कोर्ट ने एक अंतरिम समिति गठित करने की बात भी कही, जिसमें रिटायर्ड हाईकोर्ट या ज़िला जज शामिल होंगे और मंदिर के प्रबंधन का काम देखेंगे, जब तक इस मुद्दे की संवैधानिक वैधता की जांच नहीं हो जाती.
सुप्रीम कोर्ट की नाराज़गी: 'जल्दबाजी क्यों?'
सोमवार को हुई सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को आड़े हाथों लिया. अदालत ने सवाल उठाया कि आखिर किस हड़बड़ी में राज्य सरकार ने 500 करोड़ की लागत वाले कॉरिडोर के लिए मंदिर ट्रस्ट के फंड के इस्तेमाल की अनुमति मांगी और वह भी बिना उचित प्रक्रिया के. जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्य बागची की बेंच ने कहा, "हम उस 15 मई के आदेश को वापस लेने का प्रस्ताव रखते हैं. हम इसे स्थगित कर सकते हैं, जब तक इस पर संवैधानिक रूप से पुनर्विचार न हो जाए."
भगवान कृष्ण थे पहले मीडिएटर…
सुनवाई के दौरान अदालत ने श्रीकृष्ण का उदाहरण देते हुए कहा कि वे पहले मध्यस्थ थे, जिन्होंने कुरुक्षेत्र युद्ध के पहले पांडवों और कौरवों के बीच समझौता कराने का प्रयास किया था. अदालत ने इसी भावना से सुझाव दिया कि यूपी सरकार और मंदिर ट्रस्ट के बीच एक समिति बनाई जाए, जो शांतिपूर्वक समाधान निकाले.
यूपी सरकार की गुपचुप चाल पर सवाल
कोर्ट ने इस बात पर नाराजगी जताई कि राज्य सरकार ने अदालत से आदेश ले लिया, लेकिन मंदिर ट्रस्ट की बात तक नहीं सुनी गई. जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, “कोई कोर्ट-अपॉइंटेड रिसीवर था क्या? जब यह मामला बांके बिहारी मंदिर से जुड़ा ही नहीं था, तो कैसे यह आदेश लागू हो गया?”
ट्रस्ट की आपत्ति और आरोप
मंदिर ट्रस्ट की ओर से पूर्व प्रबंधन ने बताया कि जिस अध्यादेश के तहत सरकार ने हस्तक्षेप किया, वह बिना ट्रस्ट की सहमति और सुनवाई के लाया गया. ट्रस्ट ने यह भी आरोप लगाया कि सरकार ने पारंपरिक शैवैत परिवार, जो पीढ़ियों से मंदिर का संचालन कर रहा था, को बाहर कर दिया और एक नया सरकारी ट्रस्ट बना दिया.
कॉरिडोर की ज़रूरत कब और क्यों पड़ी?
बांके बिहारी मंदिर, जिसे 1862 में बनाया गया था, उत्तर भारत के सबसे लोकप्रिय तीर्थ स्थलों में से एक है. अगस्त 2022 में जन्माष्टमी के दिन एक भगदड़ जैसी घटना हुई थी, जिसमें दो श्रद्धालुओं की मौत हो गई थी. इसके बाद सितंबर 2023 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भीड़ नियंत्रण और तीर्थयात्रियों की सुरक्षा के लिए एक रिडेवलपमेंट कॉरिडोर की योजना बनाने के निर्देश दिए थे.
कोर्ट ने सुझाव दिया कि जब तक अध्यादेश की वैधता पर फैसला नहीं हो जाता, तब तक एक अंतरिम प्रबंधन समिति मंदिर का संचालन संभाले. यह समिति रिटायर्ड जजों की होगी, जो इंफ्रास्ट्रक्चर सुधार और श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए फंड का सीमित इस्तेमाल कर सकेगी.
राज्य सरकार को नोटिस, जवाब के लिए समय
कोर्ट ने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल केएम नटराज, जो यूपी सरकार की ओर से पेश हुए, को कहा कि वे सरकार से बात करके अगली सुबह 10:30 बजे तक जवाब दें कि क्या वह इस समिति के गठन और आदेश पर सहमत है या नहीं.
पिछली सुनवाई में भी उठे थे सवाल
मई 2025 में भी सुप्रीम कोर्ट की एक और बेंच ने राज्य सरकार की भूमिका पर सवाल उठाए थे. तब जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा ने कहा था, “अगर राज्य सरकारें निजी मामलों में यूं ही हस्तक्षेप करने लगेंगी तो कानून का शासन ही खतरे में पड़ जाएगा.”
भूमि अधिग्रहण पर भी सवाल
अदालत ने यह भी पूछा कि जब सरकार को कॉरिडोर बनाना ही था, तो उसने उचित मुआवज़ा देकर ज़मीन क्यों नहीं अधिग्रहित की? अगर मामला निजी पार्टियों के बीच था तो सरकार ने खुद उसमें पक्ष बनकर हस्तक्षेप क्यों किया?