क्या है राजस्थान में बूंदी का अनोखा त्योहार? जहां मिलती है प्रसाद में शराब, एक-दूसरे पर फेंकते हैं पटाखे
इस परंपरा की सबसे अनोखी बात यह है कि घास भैरू को शराब का प्रसाद चढ़ाया जाता है. स्थानीय लोगों का मानना है कि यह विशेष प्रसाद भैरू देवता को अत्यधिक प्रसन्न करता है और गांव की बुरी शक्तियों और संकटों से रक्षा करता है.

राजस्थान अपनी सांस्कृतिक धरोहर और लोक परंपराओं के लिए जाना जाता है. यहां की लोक आस्थाओं और रीति-रिवाजों में कई ऐसे अनोखे उत्सव आज भी जीवंत हैं, जो न केवल धार्मिक होते हैं, बल्कि ग्रामीण जीवन, सामुदायिक एकता और लोकविश्वास का प्रतीक भी माने जाते हैं. ऐसी ही एक रोचक और प्राचीन परंपरा है बूंदी जिले के देई कस्बे में भाईदूज के दिन निकाली जाने वाली 'घास भैरू की सवारी.' यह परंपरा सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि गांव की सांस्कृतिक पहचान और लोगों के सामूहिक उत्साह का जीवंत उदाहरण है.
भाईदूज के दिन सुबह ही देई कस्बे के पांच पटेल परिवार एकत्र होते हैं. सबसे पहले वे घास भैरू की विशेष पूजा और अर्चना करते हैं. इस पूजा में मंत्रोच्चारण और पारंपरिक गीतों का आयोजन किया जाता है. पूजा संपन्न होने के बाद सवारी की तैयारियां शुरू होती हैं. सजी-धजी बैलों की जोड़ियों से एक विशेष रथ तैयार किया जाता है. इस रथ पर घास भैरू की मूर्ति स्थापित की जाती है, फिर रथ पूरे कस्बे के मुख्य मार्गों से गुजरता है, और इसे देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं.
शराब का अनोखा प्रसाद
इस परंपरा की सबसे अनोखी बात यह है कि घास भैरू को शराब का प्रसाद चढ़ाया जाता है. स्थानीय लोगों का मानना है कि यह विशेष प्रसाद भैरू देवता को अत्यधिक प्रसन्न करता है और गांव की बुरी शक्तियों और संकटों से रक्षा करता है. सवारी और पूजा के दौरान श्रद्धालु वही शराब प्रसाद स्वरूप ग्रहण करते हैं और भक्ति भाव में झूम उठते हैं. यह परंपरा ग्रामीण आस्था और लोक-रीति का एक अद्भुत संगम देखने को मिलता है.
पटाखों और उल्लास का माहौल
घास भैरू की सवारी के दौरान लोग एक-दूसरे पर पटाखे फेंकते हैं. हैरानी की बात यह है कि इस दौरान किसी को कोई चोट नहीं लगती. स्थानीय लोग इसे भैरू देवता की कृपा मानते हैं, जो उन्हें हर खतरे से बचाते हैं. इस उत्सव में हंसी, संगीत और भक्ति का वातावरण चारों ओर फैल जाता है. दिवाली की थकान तुरंत दूर हो जाती है और पूरा गांव उत्सव में डूब जाता है.
आकर्षण होती है बैलों की सजावट
घास भैरू की सवारी बैलों की सुंदर और स्वस्थ जोड़ियों द्वारा खींची जाती है. ये जोड़ियां ग्रामीण संस्कृति और मेहनत का प्रतीक हैं. रथ पर फूल-मालाओं से सजी मूर्ति और रंग-बिरंगे कपड़ों में सजे बैल पूरे यात्रा को एक शानदार त्योहार जैसा बना देते हैं. बैलों का सम्मान और उनकी भागीदारी इस परंपरा में प्रकृति के साथ जुड़ाव का अनुभव भी कराती है.
लोकविश्वास और धार्मिक आस्था
स्थानीय मान्यता के अनुसार, घास भैरू की पूजा करने से गांव में सुख-शांति, समृद्धि और सुरक्षा बनी रहती है. ग्रामीणों का अटूट विश्वास है कि घास भैरू उनके रक्षक देवता हैं, जो हर संकट से उन्हें बचाते हैं. अगर समय बदल गया है और आधुनिकता अपने रंग दिखा रही है, यह प्राचीन परंपरा आज भी पूरे उत्साह और श्रद्धा के साथ निभाई जाती है. यह न केवल आस्था का प्रतीक है, बल्कि ग्रामीण जीवन, लोक संस्कृति और समुदाय की एकता का भी अभिन्न हिस्सा बनी हुई है.