सुप्रीम कोर्ट ने पैसे के विवाद को अपराध मानने से किया इनकार, बदला राजस्थान हाईकोर्ट का फैसला, जानें क्या है मामला
सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान हाईकोर्ट के एक फैसले को पलट दिया, जहां निचली अदालत ने कपल की अग्रिम जमानत खारिज कर दी थी. मामला पैसों की लेन-देन को लेकर था. इस पर एससी ने पैसे के विवाद को अपराध मानने से किया इनकार किया.

सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान से जुड़े एक मामले में शुक्रवार को अहम फैसला सुनाया. अदालत ने कहा कि यदि विवाद केवल पैसों के लेन-देन तक सीमित हो और उसमें धोखाधड़ी या आपराधिक मंशा साफ रूप से दिखाई न देती हो, तो इसे आपराधिक मामला नहीं माना जा सकता है. यानी महज़ आर्थिक लेन-देन पर आधारित विवादों को आपराधिक मुकदमे के दायरे में नहीं लाया जा सकता.
इसी आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने एक दंपति को राहत प्रदान करते हुए उन्हें अग्रिम जमानत दे दी. इससे पहले राजस्थान हाईकोर्ट ने उनकी अग्रिम जमानत याचिका को खारिज कर दिया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट का आदेश पलटते हुए साफ किया कि ऐसे मामलों को नागरिक विवाद की श्रेणी में देखा जाना चाहिए, न कि आपराधिक अपराध के तौर पर.
क्या है मामला?
यह मामला पैसों की लेन-देन का है, जहां एक कपल ने 16 लाख रुपये में प्लाईवुड खरीदी थी. शुरुआत में उन्होंने 3.5 लाख रुपये दूसरी पार्टी को दिए, लेकिन बाद में बाकि पैसा नहीं दिया. इस बात से परेशान होकर बिजनेसमैन ने कपल के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाई, जिसमें उन्होंने धोखाधड़ी, विश्वासघात और आपराधिक साजिश के आरोप लगाए. यह मामला निचली अदालतों से होते हुए हाईकोर्ट और आखिरकार सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया.
हाईकोर्ट ने जमानत से किया इनकार
राजस्थान हाईकोर्ट ने दंपति की अग्रिम ज़मानत याचिका ठुकरा दी. अदालत का मानना था कि यदि उन्हें राहत दी गई तो बची हुई राशि की वसूली करना कठिन हो सकता है. हाईकोर्ट ने यह भी संकेत दिया कि गिरफ्तारी इस मामले में बकाया रकम वसूलने का एक प्रभावी तरीका साबित हो सकती है.
सुप्रीम कोर्ट की दो टूक
जब यह मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा, तो जस्टिस जे. बी. परदीवाला की अध्यक्षता वाली पीठ ने साफ तौर पर कहा कि 'यदि हर नागरिक विवाद जैसे कि पैसों के लेन-देन को आपराधिक मामला बना दिया जाए, तो फिर हर वित्तीय लेन-देन जेल भेजने का कारण बन सकता है. कोर्ट ने यह साफ किया कि यह मामला मूलतः आर्थिक लेन-देन से जुड़ा है, जिसमें पुलिस की कोई सीधी भूमिका नहीं बनती. साथ ही, सुप्रीम कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की कि पुलिस का काम वसूली करना नहीं, बल्कि सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखना है.'
दंपति को मिली राहत
सुप्रीम कोर्ट ने दंपति को अग्रिम जमानत दे दी और यह साफ किया कि सिर्फ पैसे न लौटाने को आपराधिक केस नहीं बनाया जा सकता. कोर्ट ने कहा कि सिविल विवादों को आपराधिक रंग देना कानून का दुरुपयोग है.
इस फैसले का मतलब क्या है?
पैसे का लेन-देन अगर समझौते के तहत हुआ है, तो उसका समाधान सिविल कोर्ट में होना चाहिए. FIR और गिरफ्तारी का इस्तेमाल केवल गंभीर आपराधिक मामलों में होना चाहिए, न कि पैसे वसूलने के लिए. यह फैसला भविष्य के ऐसे मामलों में एक महत्वपूर्ण नज़ीर बन सकता है.