Begin typing your search...

2 साल में 20 बंदियों की मौत, मौतों का पैटर्न आया सामने, लेकिन राजस्थान में सलाखों के पीछे मौतों पर पुलिस हमेशा बेदाग क्यों?

राजस्थान की जेलों में पिछले दो सालों में 20 बंदियों की मौत ने एक बार फिर सवाल खड़े कर दिए हैं. जांच में सामने आया कि इन मौतों में एक साफ़ पैटर्न दिखाई दे रहा है, जिससे लगता है कि ये केवल अकेली घटनाएं नहीं हैं.

2 साल में 20 बंदियों की मौत, मौतों का पैटर्न आया सामने, लेकिन राजस्थान में सलाखों के पीछे मौतों पर पुलिस हमेशा बेदाग क्यों?
X
( Image Source:  Meta AI: Representative Image )
हेमा पंत
Edited By: हेमा पंत

Updated on: 17 Oct 2025 6:37 PM IST

सलाखों के पीछे होना किसी भी आरोपी के लिए सजा का हिस्सा है, लेकिन राजस्थान में यह सलाखें कई बार मौत का कारण भी बन रही हैं. अगस्त 2023 से अगस्त 2025 के बीच राज्य में 20 कैदियों ने पुलिस लॉक-अप में दम तोड़ा. सरकारी रिपोर्ट कहती है कि इनमें से 12 मौतें ‘स्वास्थ्य कारणों’ से हुईं. जिनमें छह हार्ट अटैक से थीं.

जबकि छह ने कथित तौर पर आत्महत्या की. एक बंदी भागते हुए कुएं में गिर गया और एक मामला अब भी विवादित है. लेकिन असली सवाल यह है कि क्या यह मौतें वाकई प्राकृतिक थीं या सिस्टम की लापरवाहियों ने इन्हें जन्म दिया?

मौतों का पैटर्न: दर्द, पसीना और फांसी

कांग्रेस विधायक रफीक खान के सवाल पर तैयार रिपोर्ट ने एक चौंकाने वाला पैटर्न सामने रखा. कई बंदी पूछताछ के दौरान सीने में दर्द से गिरे, कोई उमस भरे दोपहर में हीट स्ट्रोक से ढह गया, तो कोई पेट दर्द का शिकार बना. सबसे खौफनाक घटनाएं वे रहीं, जहां बंदियों ने खुद को फांसी पर लटका लिया.

कंबल बांधकर दी जान

ब्यावर के जैतारण थाने का मामला सबसे अलग था. वहां एक बंदी ने लॉक-अप की रेलिंग से कंबल बांधकर जान दे दी. सवाल उठता है कि भीषण गर्मी के महीने मई में बंदी को कंबल क्यों दिया गया? और जब नियम साफ कहते हैं कि सेल में ऐसा कोई सामान नहीं होना चाहिए जिससे बंदी खुद को या दूसरों को नुकसान पहुंचा सके, तो फिर यह गलती किसकी थी?

जांच का नतीजा: पुलिस हमेशा बेदाग

सरकारी रिकॉर्ड दिखाते हैं कि अब तक 20 में से 13 मामलों की जांच लंबित है. जिन सात मामलों में जांच पूरी हुई, वहां किसी पुलिसकर्मी को दोषी नहीं पाया गया. रिपोर्टों में हर मौत को ‘नेचुरल’ या ‘सुसाइड’ बताकर फाइल बंद कर दी गई. जहां लापरवाही थोड़ी बहुत मानी भी गई, वहां कार्रवाई बस खानापूर्ति जैसी रही. जयपुर में एक आत्महत्या के बाद एसएचओ और तीन पुलिसकर्मी लाइन हाजिर कर दिए गए. श्रीगंगानगर में एक कांस्टेबल की सालभर की वेतन वृद्धि रोक दी गई. बारां में एक एसआई को सस्पेंड किया गया, जबकि ब्यावर और दौसा में कुछ कॉन्स्टेबल्स को नोटिस थमा दिए गए.

सुप्रीम कोर्ट की नजर और डीजीपी की चेतावनी

यह रिपोर्ट ऐसे समय सामने आई है जब सुप्रीम कोर्ट ने मीडिया रिपोर्ट्स के आधार पर खुद संज्ञान लिया है. अदालत ने कहा है कि वह यह जांचेगी कि पुलिस थानों में सीसीटीवी कैमरे लगाने के उसके आदेश का पालन हुआ भी है या नहीं. इधर, डीजीपी राजीव कुमार शर्मा लगातार रिव्यू मीटिंग्स में ‘ज़ीरो टॉलरेंस’ की बात दोहरा रहे हैं. उनका दावा है कि सभी प्रिवेंटिव मेजर्स लागू करने के निर्देश दिए गए हैं, ताकि ऐसी घटनाएं रोकी जा सकें. लेकिन हकीकत यह है कि कागजों पर सख्ती दिखती है, जबकि हवालात की हकीकत कुछ और ही बयान करती है.

RAJASTHAN NEWS
अगला लेख