मोहन भागवत ने क्यों कहा लोगों की पहुंच से दूर हो गए 'शिक्षा और स्वास्थ्य', ये न तो सस्ते हैं न ही...
Mohan Bhagwat News: इंदौर में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि अच्छा स्वास्थ्य और शिक्षा सभी के लिए बेहद जरूरी है. इन्हें पहले 'सेवा' माना जाता था, लेकिन अब दोनों ही आम लोगों की पहुंच से बाहर हो गए हैं. इनका व्यवसायीकरण हो गया है. अब ये सुविधा न तो सस्ते हैं और न ही सुलभ हैं. अब ये पेशा हो गया है.

RSS Chief Mohan Bhagwat News: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने 10 अगस्त को इंदौर में परोपकारी संस्था 'गुरुजी सेवा न्यास' द्वारा स्थापित माधव सृष्टि आरोग्य केंद्र का उद्घाटन किया. इसका मकसद लोगों को किफायती दर पर कैंसर उपचार की सुविधा मुहैया कराना है. इस मौके पर कार्यक्रम में शामिल लोगों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, "अच्छी स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा अब आम लोगों की पहुंच से बाहर हो गया है."
मोहन भागवत ने कहा, "अच्छा स्वास्थ्य और शिक्षा बेहद जरूरी है और इन्हें पहले 'सेवा' माना जाता था, लेकिन अब दोनों ही आम लोगों की पहुंच से बाहर हो गए हैं. इनका व्यवसायीकरण हो गया है. उन्होंने आगे कहा, "ये न तो सस्ते हैं और न ही सुलभ."
'बीमार व्यक्ति केवल इच्छा कर सकता है'
मोहन भागवत ने आगे कहा, "यह ज्ञान का युग है, इसलिए शिक्षा महत्वपूर्ण है. यदि आप ज्ञान प्राप्त करना चाहते हैं, तो साधन शरीर है. एक स्वस्थ शरीर सब कुछ कर सकता है. एक अस्वस्थ शरीर कुछ भी नहीं कर सकता. वह केवल इच्छा कर सकता है. दुर्भाग्य से, ये दोनों आज एक सामान्य व्यक्ति की आर्थिक क्षमता से बाहर हैं."
आरएसएस प्रमुख के अनुसार अस्पतालों और स्कूलों की कोई कमी नहीं थी, लेकिन पहले इन्हें एक सेवा माना जाता था और इस प्रकार ये आम लोगों की पहुंच में थे. आज, इसे व्यावसायिक बना दिया गया है. मानवीय विचारों व सोच ने इसे ऐसा बनाया है. मैंने कुछ साल पहले एक मंत्री से सुना था कि भारतीय शिक्षा एक खरब डॉलर का व्यवसाय का है. यह एक आम आदमी की पहुंच से बाहर है. खासकर उन लोगों के लिए जो सिर्फ वेतन के भरोसे जीते हैं. पहले, शिक्षा देना उनका कर्तव्य माना जाता था. अब, आपको यह अनुमान लगाना होगा कि इसकी लागत कितनी होगी.
'चिकित्सा सेवा बन गया पेशा'
उन्होंने यह भी कहा कि कॉर्पोरेट युग में शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा केंद्रीकृत हो गई हैं, जिसके कारण छात्रों और आम लोगों को इसका लाभ उठाने के लिए दूर-दूर तक जाना पड़ता है. उन्होंने कहा, "अतीत में शिक्षा शिक्षकों का कर्तव्य थी जो अपने छात्रों की चिंता करते थे. जैसे डॉक्टरों का कर्तव्य था जो बीमारों का इलाज करते थे, लेकिन अब, दोनों ही एक पेशा बन गए हैं."
बचपन की बात याद कर कही ये बात
आरएसएस प्रमुख भागवत ने अपने निजी अनुभव का हवाला देते हुए कहा, "जब मैं बच्चा था, मुझे मलेरिया हो गया था और मैं तीन दिन स्कूल नहीं जा पाया था. मेरे शिक्षक घर आए और मेरे इलाज के लिए जंगली जड़ी-बूटियां लाए. उन्हें अपने छात्र की चिंता थी और उन्हें लगता था कि उसे स्वस्थ रहना चाहिए. समाज को सुलभ और किफायती स्वास्थ्य सेवा की आवश्यकता है."