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12 साल से था रिश्‍ता, फिर महिला ने लगा दिया बलात्‍कार का आरोप; अब कोर्ट ने शख्‍स को दी जमानत

मध्य प्रदेश में एक महिला ने FIR दर्ज कर आरोप लगाया कि शख्स ने शादी का झूठा वादा करके सात साल तक उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए. हालांकि इस पर व्यक्ति ने FIR दर्ज करवाने में दो साल की देरी का हवाला दिया. इस पर महिला की विश्वसनीयता पर शक पैदा हुआ और व्यक्ति को अग्रीम जमानत दे दी गई.

12 साल से था रिश्‍ता, फिर महिला ने लगा दिया बलात्‍कार का आरोप; अब कोर्ट ने शख्‍स को दी जमानत
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( Image Source:  Freepik )
सार्थक अरोड़ा
Edited By: सार्थक अरोड़ा

Published on: 27 Dec 2024 4:15 PM

मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने 40 साल की सरकारी महिला टीचर को शादी का झांसा देकर उसके साथ बलात्कार करने के आरोपी व्यक्ति को अग्रिम जमानत दे दी है. अदालत ने पाया कि महिला आरोपी के साथ लंबे समय से रिश्ते में थी. इसपर ऐसा मामला नहीं बनता कि शख्स को जमानत देने से इनकार किया जा सके. अदालत में अचल कुमार पालीवाल की अध्यक्षता में सुनवाई हुई.

वहीं सुनवाई के दौरान जस्टिस अचल पालीवाल ने कहा कि दोनों पक्षों के बीच के संबंधों को देखते हुए यह नहीं कहा जा सकता कि शख्स ने याचिकाकर्ता के साथ झूठे बहाने से शादी का लालच देकर फिजिकल रिलेशन बनाए. अदालत में दी गई जानकारी के अनुसार दोनों ही साल 2012 से एक दूसरे के साथ रिश्ते में थे.

2024 में हुई FIR दर्ज

2024 में 17 नंवबर को इस मामले में मध्य प्रदेश के बालागघाट में महिला थाना पुलिस स्टेशन में FIR र्ज कराई गई थी. महिला का आरोप था कि शादी का झूठा वादा करके 5 जून 2015 से 18 अप्रैल 2022 तक शख्स ने उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए. इसी आरोप में दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 376(2)(एन), 294 और 506 तथा एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम की धारा 3(2)(वी) और 3(1)(डब्ल्यू)(आई) के तहत अपीलकर्ता पर आरोप लगाए गए.

शादी का वादा करने का आरोप नकार दिया

वहीं महिला ने जिस शख्स पर आरोप लगाया उसने FIR दर्ज होने के बाद अपना पक्ष रखा, और FIR दर्ज कराने में देरी को लेकर सवाल उठाया. इस कारण महिला द्वारा लगाए गए आरोपों पर संदेह पैदा हुआ. वहीं शख्स के अग्रीम जमानत को लेकर सवाल उठाए गए. इस पर अदालत ने कहा कि आमतौर पर सेक्शन 18 के तहत अग्रिम जमानत का प्रावधान नहीं होता. लेकिन अगर प्रथम दृष्टया एससी/एसटी (पीए) अधिनियम के तहत कोई मामला नहीं बनता है, तो अग्रिम जमानत के लिए आवेदन स्वीकार्य है.अदालत ने माना कि याचिकाकर्ता इस मामले में सबूत पेश करने में असफल रहीं.

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