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मामले को रफा- दफा करने के लिए जुटा तंत्र, पश्चिम सिंहभूम में 5 बच्चे मिले थे HIV पॉजिटिव; जानें कैसे हुई ये लापरवाही

झारखंड के पश्चिम सिंहभूम ज़िले में पांच बच्चों के HIV पॉजिटिव पाए जाने की खबर ने पूरे प्रदेश को हिला दिया है. ये सभी बच्चे थैलेसीमिया से पीड़ित थे और नियमित तौर पर खून चढ़ाया जा रहा था. लेकिन जब अक्टूबर के महीने में एक-एक कर इन बच्चों की HIV रिपोर्ट पॉजिटिव आई, तो परिजनों की दुनिया ही बदल गई. अब सवाल यह उठ रहा है कि क्या ये संक्रमण सरकारी अस्पताल में हुए ब्लड ट्रांसफ्यूज़न से फैला?

मामले को रफा- दफा करने के लिए जुटा तंत्र, पश्चिम सिंहभूम में 5 बच्चे मिले थे HIV पॉजिटिव; जानें कैसे हुई ये लापरवाही
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( Image Source:  AI SORA )
हेमा पंत
Edited By: हेमा पंत

Updated on: 28 Oct 2025 1:34 PM IST

झारखंड के पश्चिम सिंहभूम ज़िले से सामने आई पांच बच्चों के HIV पॉजिटिव पाए जाने की घटना ने पूरे स्वास्थ्य तंत्र की नींव हिला दी है. थैलेसीमिया से पीड़ित ये मासूम इलाज के लिए सरकारी अस्पताल पहुंचे थे, लेकिन वहां उन्हें ज़िंदगी नहीं बल्कि आजीवन दर्द का सबक मिला.

जांच में सामने आया कि बच्चों को चढ़ाए गए संक्रमित खून से ये संक्रमण फैला हो सकता है. अब जब मामला सुर्खियों में आया, तो प्रशासन हरकत में आया है और इसे सुलझाने की कोशिशें भी तेज़ हो गई हैं. ऐसे में चलिए जानते हैं कैसे हुई ये लापरवाही?

जब पहला बच्चा पॉजिटिव पाया गया

इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक, 18 अक्टूबर को एक बच्चे की HIV रिपोर्ट पॉजिटिव आई. उसके माता-पिता ने बताया कि बच्चे का इलाज केवल चाईबासा के सदर अस्पताल में चल रहा था और वे किसी निजी अस्पताल में नहीं गए थे. इसके बाद जब चार और बच्चों की रिपोर्ट भी पॉजिटिव आई, तो जिला स्वास्थ्य विभाग में हड़कंप मच गया.

जांच की शुरुआत: 256 डोनर्स की तलाश

सदर अस्पताल के ब्लड बैंक ने तुरंत जांच शुरू की. पता चला कि पिछले तीन सालों में लगभग 256 लोगों ने ब्लड डोनेट किया था, जिनका खून इन बच्चों को चढ़ाया गया था. अब स्वास्थ्य विभाग ने इन सभी दानदाताओं को दोबारा बुलाने और उनका HIV टेस्ट करवाने की प्रक्रिया शुरू कर दी है. अधिकारियों ने बताया कि ब्लड बैंक में रोज़ाना लगभग 45 से 50 यूनिट खून जमा होता है. यह खून कॉलेजों, एनजीओ और इंडस्ट्रियल क्षेत्रों में लगने वाले ब्लड डोनेशन कैंप से आता है.

क्या है ‘विंडो पीरियड’?

स्वास्थ्य अधिकारियों के मुताबिक, HIV संक्रमण के शुरुआती 10 दिनों को “विंडो पीरियड” कहा जाता है. इस दौरान संक्रमित व्यक्ति के शरीर में एंटीबॉडी विकसित नहीं होते, जिससे सामान्य टेस्ट में वायरस का पता नहीं चलता. अगर कोई डोनर इसी दौरान खून देता है, तो संक्रमित खून भी सुरक्षित समझकर इस्तेमाल किया जा सकता है और यहीं से संक्रमण फैलने की आशंका बनती है.

ब्लड बैंक की प्रक्रिया और सावधानियां

सदर अस्पताल 2019 से जिले का एकमात्र ब्लड बैंक है. यहां हर यूनिट खून का HIV, हेपेटाइटिस B, हेपेटाइटिस C, सिफिलिस और मलेरिया के लिए परीक्षण किया जाता है. टेस्ट का तीन लेवल प्रोसेस होता है. रैपिड टेस्ट,ELISA टेस्ट, और NAT टेस्ट (जो राज्य या केंद्र स्तर पर होता है). अगर किसी सैंपल में इंफेक्शन पाया जाता है, तो उसे तुरंत “डिस्कार्ड रजिस्टर” में दर्ज कर बर्बाद कर दिया जाता है.

सरकार की प्रतिक्रिया और कार्रवाई

झारखंड के स्वास्थ्य मंत्री इर्फान अंसारी ने इस मामले को संवेदनशील बताते हुए कहा कि कुछ लोग इसे राजनीतिक रंग दे रहे हैं. उन्होंने बताया कि शुरुआती जांच में जिन डॉक्टरों की लापरवाही सामने आई, उन पर कार्रवाई की गई है. सदर अस्पताल के सिविल सर्जन सुशांत मजही और दो अन्य डॉक्टरों को सस्पेंड किया गया है.

जांच अब केंद्र तक पहुंची

वर्तमान सिविल सर्जन भारती मिंज ने बताया कि केंद्र सरकार की एक टीम चाईबासा पहुंच चुकी है और जांच में सहयोग कर रही है. हालांकि, मंत्री अंसारी ने कहा कि उन्हें इस टीम की यात्रा की जानकारी नहीं मिली है. वहीं, ज़िला स्वास्थ्य टीम अब HIV-पॉजिटिव डिस्कार्ड यूनिट्स की भी पहचान कर रही है. यानी वे यूनिट जो पहले से संक्रमित पाई गईं और इस्तेमाल नहीं की गईं.

स्थिति अभी भी गंभीर

फिलहाल पश्चिम सिंहभूम ज़िले में 515 HIV संक्रमित मरीज रजिस्टर्ड हैं. इनमें प्रवासी मज़दूर और अन्य संवेदनशील वर्ग शामिल हैं. स्वास्थ्य विभाग का कहना है कि यह मामला केवल पांच बच्चों का नहीं, बल्कि ब्लड टेस्टिंग सिस्टम की विश्वसनीयता पर सवाल खड़ा करता है.

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